भाजपा नेता की धर्मांतरण संबंधी याचिका को तर्कवादी समूह ने ‘वॉट्सऐप फॉरवर्ड’ आधारित बताया

केरल युक्तिवादी संघम ने सुप्रीम कोर्ट में भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा धर्मांतरण के मुद्दे पर लगाई गई याचिका में हस्तक्षेप करने के लिए आवेदन दिया है. संगठन का कहना है कि उपाध्याय की जनहित याचिका ‘सोशल मीडिया फॉरवर्ड, यूट्यूब वीडियो और वॉट्सऐप चैट’ पर आधारित है. इसमें किए गए दावों का कोई विश्वसनीय तथ्यात्मक आधार नहीं है

Representative image. A rally of Kerala Yukthivadi Sangham members. Photo: Official Facebook page.

केरल युक्तिवादी संघम ने सुप्रीम कोर्ट में भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा धर्मांतरण के मुद्दे पर लगाई गई याचिका में हस्तक्षेप करने के लिए आवेदन दिया है. संगठन का कहना है कि उपाध्याय की जनहित याचिका ‘सोशल मीडिया फॉरवर्ड, यूट्यूब वीडियो और वॉट्सऐप चैट’ पर आधारित है. इसमें किए गए दावों का कोई विश्वसनीय तथ्यात्मक आधार नहीं है

केरल युक्तिवादी संघम संगठन के सदस्यों द्वारा निकाली गई रैली. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: केरल की एक तर्कवादी संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में धर्मांतरण पर लगाई गई एक जनहित याचिका, जिसे शीर्ष अदालत ने सुनवाई योग्य माना है, में हस्तक्षेप करने के लिए आवेदन दिया है. संस्था का कहना है कि यह जबरन धर्मांतरण पर असत्य और उन्माद फैलाती है.

एक दिन पहले 5 दिसंबर को जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार ने उन हस्तक्षेपों पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा धोखे से कथित धर्मांतरण के खिलाफ दाखिल की गई याचिका को खारिज करने की मांग की गई थी. पीठ ने जोर देकर कहा कि यह मुद्दा ‘बहुत गंभीर’ है और कहा कि लालच देकर, खाद्यान्न और दवाइयां देकर धर्मांतरण गलत है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल युक्तिवादी संघम ने कहा कि वह सभी लोगों के बीच बंधुत्व और भाईचारे को लेकर बेहद चिंतित है, फिर वह चाहे किसी धर्म या आस्था के हों.

1969 में स्थापित संगठन राज्य के तर्कवादी आंदोलन का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य प्रतिष्ठित समाज सुधारक नारायण गुरु की विरासत का पालन करना है.

संगठन ने उपाध्याय की जनहित याचिका को ‘सोशल मीडिया फॉरवर्ड, यूट्यूब वीडियो और वॉट्सऐप’ पर आधारित बताया है.

इसने यह भी कहा है कि इसमें किए गए दावों का कोई विश्वसनीय तथ्यात्मक आधार नहीं है और कहा कि किए गए दावे ‘अतिशयोक्तिपूर्ण और चिंताजनक’ हैं. संगठन ने अपने आवेदन में उपाध्याय को ‘एक आस्था आधारित राजनीतिक दल का प्रमुख सदस्य’ भी बताया.

गौरतलब है कि उपाध्याय को दिल्ली के जंतर मंतर में मुसलमानों के खिलाफ नफरती भाषण देने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. वह धार्मिक और अन्य मामलों में लगातार याचिका लगाते रहे हैं.

उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकाएं दायर की हैं- लगभग सभी धर्म से जुड़ी हुई हैं- जिनमें समान नागरिक संहिता की मांग करना, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम की धाराएं रद्द करना और वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों को चुनौती देना शामिल है.

उपाध्याय ने देश भर में सभी समुदायों के लिए तलाक, गोद लेने और संरक्षकता के लिए एक समान आधार और प्रक्रिया की मांग करते हुए अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से पांच अलग-अलग याचिकाएं भी दायर की थीं.

केरल युक्तिवादी संघम समूह की ओर से पेश वकील चंदर उदय सिंह ने सोमवार को शीर्ष अदालत को बताया, ‘यह उपाध्याय द्वारा लगाई गई समान तरीके की चौथी याचिका है. यह याचिका अत्यधिक अतिश्योक्तिपूर्ण है. ऐसी कोई सामग्री नहीं दिखाई गई है जिससे पता चले कि कोई खतरनाक स्थिति है.’

समूह ने अपने आवेदन में यह भी कहा कि उपाध्याय द्वारा इसी विषय पर दायर पिछली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था. एक को 2021 में खारिज कर दिया गया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने भी 2020 में इसी तरह की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था.

लाइव लॉ के मुताबिक आवेदन में कहा गया, ‘इसलिए संगठन का तर्क है कि उपाध्याय विभिन्न पीठों के समक्ष अपनी किस्मत आजमा रहे हैं कि कहीं तो उनके पक्ष में फैसला आए.’

समूह ने भारत की धार्मिक संरचना पर प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Centre) की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें दिखाया गया है कि 2020 में देश में एक सर्वे किया गया है. इसमें शामिल वयस्कों में से बहुत कम लोगों ने धर्म परिवर्तन किया है.

अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीते 5 दिसंबर को कहा था कि धर्मार्थ कार्य (चैरिटी) का उद्देश्य धर्मांतरण नहीं होने पर बल देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सोमवार को कहा कि जबरन धर्मांतरण एक ‘गंभीर मुद्दा’ है और यह संविधान के विरूद्ध है.

उपाध्याय ने ‘डरा-धमकाकर, उपहार या पैसों का का लालच देकर’ किए जाने वाले कपटपूर्ण धर्मांतरण को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया है.

इससे पहले बीते 29 नवंबर को शीर्ष अदालत में केंद्र सरकार ने भी कहा था कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दूसरों का धर्मांतरण कराने का अधिकार शामिल नहीं है. इस तरह की प्रथाओं पर काबू पाने वाले कानून समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं.

बीते 14 नवंबर को इस मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि जबरन धर्मांतरण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है.

इसने केंद्र से इस ‘बहुत गंभीर’ मुद्दे से निपटने के लिए कदम उठाने और गंभीर प्रयास करने को कहा था.

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