सीमा के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों की वर्दी, उपकरणों, राशन की आपूर्ति समय पर हो: पीएसी

लोकसभा में पेश लोक लेखा समिति की 55वीं रिपोर्ट में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों को सर्दी के कपड़े की ख़रीद और उनकी आवासीय स्थिति में सुधार की परियोजनाओं को लागू करने में देरी की ओर इशारा किया गया है. ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि कपड़ों की ख़रीद में चार साल तक की देरी के उदाहरण सामने आए हैं. आयुध कारखानों से अनुबंधित वस्तुओं को पाने में भी अत्यधिक देरी हुई.

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(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

लोकसभा में पेश लोक लेखा समिति की 55वीं रिपोर्ट में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों को सर्दी के कपड़े की ख़रीद और उनकी आवासीय स्थिति में सुधार की परियोजनाओं को लागू करने में देरी की ओर इशारा किया गया है. ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि कपड़ों की ख़रीद में चार साल तक की देरी के उदाहरण सामने आए हैं. आयुध कारखानों से अनुबंधित वस्तुओं को पाने में भी अत्यधिक देरी हुई.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

नई दिल्ली: संसद की एक उच्चस्तरीय समिति ने कहा है कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों एवं कठिन मौसमी परिस्थितियों में देश की सीमाओं की सुरक्षा करने वाले सैनिकों को वर्दी, उपकरण, राशन और आवासीय जरूरतों की आपूर्ति में किसी तरह की कमी नहीं होनी चाहिए.

लोकसभा में बुधवार को पेश लोक लेखा समिति (पीएसी) की 55वीं रिपोर्ट में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों को सर्दी के कपड़े की खरीद और उनकी आवासीय स्थिति में सुधार की परियोजनाओं को लागू करने में देरी की ओर इशारा किया गया.

कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी की अध्यक्षता वाली इस उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए कपड़े, राशन और आवास सुविधाओं, उपकरणों आदि की खरीद के तौर-तरीकों में बदलाव करने की जरूरत बताई गई है.

पीएसी ने 2015-16 से 2017-18 की बीच की अवधि के लिए सैनिकों के लिए कपड़े, उपकरण, राशन और आवास के प्रावधान और खरीद और इन्वेंट्री के प्रबंधन पर कैग की रिपोर्ट की जांच की है.

समिति ने कहा कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के कपड़ों, उपकरणों, राशन की खरीद एवं आपूर्ति के समय में कोई देरी नहीं होनी चाहिए.

लद्दाख सहित कई अग्रिम चौकियों पर सर्दियों के दौरान तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है.

समिति को ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि कपड़ों की खरीद में चार साल तक की देरी के उदाहरण सामने आए हैं. आयुध कारखानों से अनुबंधित वस्तुओं को पाने में भी अत्यधिक देरी हुई.

समिति ने ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों के लिए कपड़ों की तेजी से खरीद के लिए पूर्ण वित्तीय शक्तियों के साथ वर्ष 2007 में अधिकार सम्पन्न समिति गठित करने का उल्लेख भी किया.

इसमें कहा गया है कि कठिन मौसमी परिस्थितियों में इन क्षेत्रों में तैनात सैनिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पृथक वित्तीय संसाधन आवंटित किए जाने की जरूरत है.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘आयुध कारखाने से अनुबंध से जुड़ीं सामग्रियों की पावती प्राप्त होने में भी काफी देरी हुई. ऑडिट के अनुसार खरीद के कार्य में देरी और अनुबंध से जुड़ी सामग्री की पावती में देरी के कारण आवश्यक कपड़ों और उपकरणों की काफी कमी सामने आई और इससे सैनिकों के समय पर इनका उपयोग करने का उद्देश्य प्रभावित हुआ.’

इसमें कहा गया है कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों का स्वास्थ्य एवं हाइजीन भी खरीद में देरी से प्रभावित हुआ.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि लद्दाख और सियाचिन जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए विशेष कपड़े, उपकरण, राशन और आवास की खरीद के लिए कोई विशेष बजट नहीं था और खर्च ‘जनरल स्टोर और कपड़ों’ से किया जाता है, जो पूरी सेना के लिए होता है. समिति ने इसके लिए एक अलग बजट की सिफारिश की है.

रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) जैसी एजेंसियों द्वारा निर्मित खराब उपकरणों के कई उदाहरणों को चिह्नित करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘रक्षा प्रयोगशालाओं द्वारा अनुसंधान और विकास की कमी और स्वदेशीकरण में विफलता के परिणामस्वरूप आयात पर लंबे समय तक और निरंतर निर्भरता बनी रही.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि सैनिकों को उच्च ऊंचाई वाले दुर्गम परिस्थितियों में सामना करना पड़ता है. ऐसे में कुछ मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्थितियों को कम करने के लिए सैनिकों को विशेष राशन दिया जाना था.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘हालांकि, ऑडिट रिपोर्ट के निष्कर्षों से पता चला है कि स्केल किए गए आइटमों के बदले लागत-दर-लागत आधार पर विकल्प दिए गए, जिसने सैनिकों के कैलोरी सेवन की मात्रा को प्रभावित किया.’

रिपोर्ट में पाया गया कि दुर्गम सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों के लिए आवास ‘एडहॉक’ तरीके से प्रदान किया जा रहा था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, यह भी कहा गया, ‘सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति कभी नहीं ली गई और यहां तक कि पायलट परियोजना को भी चरणों में मंजूरी दी गई. 274 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद पायलट प्रोजेक्ट सफल नहीं हो सका. वार्षिक योजनाएं बनाई जा रही थीं और आवश्यकताओं के सही और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के बिना कार्य स्वीकृत किए जा रहे थे. सबसे विकट जलवायु परिस्थितियों में सैनिकों को उपयोग के लिए कार्यों के निष्पादन और बाद में संपत्ति सौंपने में अत्यधिक देरी हुई.’

हालांकि, समिति ने उल्लेख किया है कि गलवान में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच जून 2020 की झड़पों के बाद 2020-21 में पूर्वी लद्दाख में 10,000 सैनिकों के लिए आवास का निर्माण किया गया था और 18,000 सैनिकों के लिए आवास का एक और सेट क्षेत्र में निर्माणाधीन है.

सिस्टम में पूरी तरह से बदलाव का आह्वान करते हुए रिपोर्ट में सिफारिश की गई है, ‘भारत के लिए तेजी से विकसित और चुनौतीपूर्ण भू-राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए समिति महसूस करती है कि उच्च ऊंचाई वाले स्थानों के लिए सेना के कपड़ों, उपकरणों, राशन और आवास सुविधाओं की खरीद और जारी करने की दिशा में एक समग्र और व्यापक तरीके से तत्काल सुधार की आवश्यकता है.’

समिति ने सेना मुख्यालय रिजर्व फॉर एक्सट्रीम कोल्ड क्लोथिंग एंड इक्विपमेंट (ECC&C) और स्पेशल क्लोदिंग एंड माउंटेनियरिंग इक्विपमेंट (SCME – सियाचिन और लद्दाख में इस्तेमाल होने वाले) की कुछ कमांड्स में 100 प्रतिशत कमी की ओर भी इशारा किया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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