आरबीआई अग्रिम ‘सिक लीव’ से गर्भावस्था की जटिलताएं बाहर रखने की नीति पर पुनर्विचार करे: कोर्ट

भारतीय रिज़र्व बैंक में कार्यरत एक महिला कर्मचारी को गर्भावस्था से उत्पन्न जटिलताओं के कारण ‘बेड रेस्ट’ की सलाह दी गई थी. उन्होंने आरबीआई से अग्रिम ‘सिक लीव’ देने का अनुरोध किया, जिसे नियमों का हवाला देकर अस्वीकार कर दिया गया था.

(फोटो: रॉयटर्स)

भारतीय रिज़र्व बैंक में कार्यरत एक महिला कर्मचारी को गर्भावस्था से उत्पन्न जटिलताओं के कारण ‘बेड रेस्ट’ की सलाह दी गई थी. उन्होंने आरबीआई से अग्रिम ‘सिक लीव’ देने का अनुरोध किया, जिसे नियमों का हवाला देकर अस्वीकार कर दिया गया था.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने इस नियामक संस्था को अपने मास्टर सर्कुलर पर पुनर्विचार का निर्देश दिया है, जिसमें कर्मचारियों को बीमारी की अग्रिम छुट्टी देने में गर्भावस्था के कारण उत्पन्न होने वाली चिकित्सा जटिलताओं को बाहर रखा गया है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस ज्योति सिंह आरबीआई की एक सहायक प्रबंधक द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मांग की गई थी कि आरबीआई द्वारा 01/07/2020 को जारी मास्टर सर्कुलर के पैरा 6.5 के तहत गर्भावस्था से उत्पन्न होने वाली समस्याओं या जटिलताओं को कवर करने के निर्देश दिए जाएं.

याचिका में उनकी छुट्टी की अवधि के लिए उनकी अनुपस्थिति को समायोजित करने के बाद वेतन और भत्तों के परिणामी लाभों के साथ पैरा 6.5 के अनुसार, उन्हें सिक लीव देने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.

मास्टर सर्कुलर के पैरा 6.5 के अनुसार, बीमारी के वास्तविक मामले, जिनमें लंबे समय तक इलाज या अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है, में आरबीआई के पूर्णकालिक कर्मचारियों आधे अवकाश वेतन पर 180 दिनों तक की सिक लीव दी जा सकती हैं.

अदालत ने कहा कि कि पैरा 6.5 तपेदिक, मानसिक विक्षिप्तता आदि जैसी बीमारियों का उल्लेख करता है, हालांकि महत्वपूर्ण यह है कि ‘जैसे’ और ‘आदि’ शब्द भी उक्त पैराग्राफ में देखे जा सकते हैं, जो पैरा 6.5 के प्रावधानों के पीछे की मंशा को दर्शाते हैं कि उसमें उल्लिखित बीमारियों की सूची केवल समावेशी है और संपूर्ण नहीं है.

आरबीआई के वकील की इस दलील से सहमत होते हुए कि गर्भावस्था को बीमारी नहीं कहा जा सकता है, जस्टिस सिंह ने कहा कि हालांकि इस तथ्य को विवादित या अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि कुछ मामलों में गर्भावस्था के दौरान भी गंभीर चिकित्सा जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं, जिसके लिए सर्जरी या अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है.

अदालत ने कहा, ‘यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि पैरा 6.5 में ऐसी कोई रोक नहीं है जो प्रतिवादी को गर्भावस्था से उत्पन्न चिकित्सा जटिलताओं के चलते सिक लीव देने से रोकती है.’

इस मामले में आरबीआई द्वारा फिर से विचार करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए अदालत ने कहा, ‘वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दे को ध्यान में रखते हुए यह अदालत प्रतिवादी को मास्टर सर्कुलर के पैरा 6.5 पर पुनर्विचार करने का निर्देश देती है.’

याचिकाकर्ता का मामला यह था कि उसने अपने रिश्तेदार के खराब स्वास्थ्य के कारण 9 नवंबर 2020 से आकस्मिक अवकाश के लिए आवेदन किया था और शहर से बाहर चली गई थीं. हालांकि, वह खुद बीमार पड़ गईं और उन्हें भोपाल में इलाज कराना पड़ा, जिसके कारण वह 15 नवंबर 2020 को दिल्ली नहीं लौट सकीं.

याचिकाकर्ता ने 14 नवंबर 2020 से 27 नवंबर 2020 तक बीमारी की छुट्टी के लिए मंजूरी मांगी थी. बाद में वह और उनके परिवार के सदस्य कोविड-19 से संक्रमित हो गए और उन्हें 13 दिसंबर 2020 तक क्वारंटीन किया गया. गर्भावस्था से उत्पन्न जटिलताओं के कारण उन्हें बेड रेस्ट की भी सलाह दी गई थी.

उन्होंने घर से काम करने की पेशकश की, शेष छुट्टी के समायोजन के लिए अनुरोध किया और अग्रिम सिक लीव देने का अनुरोध किया, जिसे आरबीआई ने अस्वीकार कर दिया. 11 मार्च, 2021 को एक ई-मेल के माध्यम से अग्रिम सिक लीव के उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया था.

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