लिव इन संबंध घरेलू हिंसा क़ानून के प्रावधानों के दायरे में आते हैं: केंद्र सरकार

राज्यसभा में केंद्र सरकार ने लिव इन संबंधों को पंजीकृत करने के लिए कोई व्यवस्था शुरू करने और ऐसे रिश्तों में रहने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के बारे में पूछे गए एक सवाल का उत्तर देते हुए कहा कि लिव-इन संबंध, जो विवाह की प्रकृति के होते हैं, घरेलू हिंसा क़ानून के प्रावधानों के अंतर्गत आते हैं.

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(प्रतीकात्मक फोटो: wikihow.com)

राज्यसभा में केंद्र सरकार ने लिव इन संबंधों को पंजीकृत करने के लिए कोई व्यवस्था शुरू करने और ऐसे रिश्तों में रहने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के बारे में पूछे गए एक सवाल का उत्तर देते हुए कहा कि लिव इन संबंध, जो विवाह की प्रकृति के होते हैं, घरेलू हिंसा क़ानून के प्रावधानों के अंतर्गत आते हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: wikihow.com)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने राज्यसभा में सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि लिव इन संबंध, जो विवाह की प्रकृति के होते हैं, घरेलू हिंसा कानून के संरक्षण के प्रावधानों के अंतर्गत आते हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सदन में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री  किरेन रिजिजू से पूछा गया था कि क्या सरकार लिव इन संबंधों को ‘पंजीकृत’ करने के लिए कोई’ ‘व्यवस्था’ शुरू करने और ऐसे रिश्तों में रहने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के बारे में सोच रही है.

उनसे यह भी पूछा गया था कि क्या सरकार गैर-विषमलैंगिक (नॉन-हेट्रोसेक्सुअल) लिव इन संबंधों को मान्यता देने का इरादा रखती है.

अपने लिखित जवाब में मंत्री ने कहा, ‘जहां तक लिव इन रिलेशनशिप में लोगों की सुरक्षा की बात है, परिवार के भीतर होने वाली किसी भी प्रकार की घटना और उससे जुड़े या प्रासंगिक मामलों में हिंसा की शिकार किसी महिला के लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रावधान करता है.’

उन्होंने आगे कहा कि नवतेज जौहर और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि वयस्कों की सहमति से निजी जगहों पर बनाए जाने वाले यौन संबंध संवैधानिक हैं.

कानून के प्रावधानों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि ‘घरेलू संबंध’ का मतलब दो व्यक्तियों के बीच संबंध है, जो किसी भी समय एक साझा घर में साथ रहते हैं या रह चुके हैं, जब वे रक्त संबंध, शादी या विवाह की प्रकृति, गोद लेने के किसी रिश्ते से जुड़े होते हैं या संयुक्त परिवार के रूप में एक साथ रहने वाले परिवार के सदस्य होते हैं.

रिजिजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतों ने कई निर्णयों में यह माना है कि लिव इन-रिलेशनशिप, जो शादी की प्रकृति में है, इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत आते हैं.

उल्लेखनीय है कि समय-समय पर विभिन्न उच्च न्यायालय वयस्कों के अपनी इच्छानुसार साथ रहने के अधिकार की बात कह चुके हैं.

इसी साल फरवरी में एक अंतरधार्मिक जोड़े की साथ रहने की याचिका पर फैसला देते हुए कहा था कि दो बालिग शादी या लिव इन में साथ रहना चाहते हैं तो किसी को भी मोरल पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती.

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