कश्मीर में हो रही हत्याओं को धर्म के आधार पर देखना बंद करें: एलजी मनोज सिन्हा

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एक कार्यक्रम में कहा कि कश्मीरी पंडित टारगेटेड हत्याओं का शिकार हैं, लेकिन देश को इन्हें धर्म के आधार पर देखना बंद करना चाहिए क्योंकि बहुत से अन्य लोग भी मारे गए हैं. बीते कई महीने से जम्मू में प्रदर्शनरत कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने इस पर रोष जताया है.

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जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा. (फोटो साभार: फेसबुक/@OfficeOfLGJandK)

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एक कार्यक्रम में कहा कि कश्मीरी पंडित टारगेटेड हत्याओं का शिकार हैं, लेकिन देश को इन्हें धर्म के आधार पर देखना बंद करना चाहिए क्योंकि बहुत से अन्य लोग भी मारे गए हैं. बीते कई महीने से जम्मू में प्रदर्शनरत कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने इस पर रोष जताया है.

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा. (फोटो साभार: फेसबुक/@OfficeOfLGJandK)

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि यह तथ्य है कि कश्मीरी पंडित निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं (टारगेटेड किलिंग) का शिकार हैं, लेकिन देश को इन्हें धर्म के आधार पर देखना बंद करना चाहिए क्योंकि बहुत से अन्य लोग भी मारे गए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीते शुक्रवार को इस अख़बार समूह के ‘आइडिया एक्सचेंज’ कार्यक्रम में सिन्हा ने कहा, ‘यह सच है कि कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई हैं और कश्मीरी पंडित लक्षित हमलों के शिकार हुए हैं, लेकिन एक दूसरा पक्ष भी है. इसे धर्म के आधार पर देखने की कोशिश देश को बंद कर देनी चाहिए. काफी संख्या में दूसरे लोग भी मारे गए हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं यह कहना चाहता हूं कि कश्मीर घाटी के लोग भी मारे गए हैं. इसके साथ ही बिहार, ओडिशा, झारखंड से सेब के सीज़न में आने वाले श्रमिक भी थे… दो-तीन घटनाएं हुई हैं लेकिन एक फर्जी नैरेटिव फैलाया जा रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘कुछ लोग हैं जो अपने आप को स्थानीय या बाहरी बताते हैं… हमें इसमें नहीं पड़ना चाहिए. जो लोग निवासी (डोमिसाइल) हैं उनका मानना ​​है कि केंद्रशासित प्रदेश की अर्थव्यवस्था में उनकी (मजदूरों की) बहुत बड़ी भूमिका है. उनकी इसके विकास में भूमिका है. जम्मू और कश्मीर भारत का हिस्सा है. कोई भी किसी भी राज्य में काम कर सकता है… उन्हें यहां काम करने का अधिकार है. वही बात कश्मीर के लिए है. कश्मीर में बहुसंख्यक हैं जो इसकी सराहना करते हैं और चाहते हैं कि दूसरे लोग आएं और काम करें. हम उनका (प्रवासियों का) ख्याल भी रखते हैं… उनके बीमा के लिए जोर देते हैं. सेब के सीजन के दौरान हमने उनकी वित्तीय और सामाजिक – दोनों तरह की सुरक्षा के संबंध में दिशानिर्देश भी दिए थे.’

कश्मीरी पंडितों के मसले पर उपराज्यपाल ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने पुनर्वास नीति की घोषणा की थी. पहले चरण में 3,000 नौकरियां, 3,000 घर शामिल थे. दूसरे चरण में भी वही था. कुल 6,000 घर बनाए जाने थे, लेकिन लगभग 700 घर ही पूरे हुए. जब मैं अगस्त 2020 में वहां पहुंचा, तब दूसरे चरण में प्रस्तावित नौकरियां पूरी नहीं भरी गई थीं और पहले चरण से भी कुछ रिक्तियां थीं. इन रिक्तियों को कुछ तकनीकी दिक्कतों का हवाला देकर स्वेच्छा से खाली रखा गया था. आज मैं कह सकता हूं कि 134 पदों को छोड़कर सभी पद भरे जा चुके हैं.’

ज्ञात हो कि सिन्हा ने अगस्त 2020 में उपराज्यपाल पद का कार्यभार संभाला था.

उन्होंने कहा कि यह सच है कि घरों के बिना कश्मीरी पंडितों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन आज सभी 6,000 घरों के लिए जमीन उपलब्ध करा दी गई है और दो को छोड़कर निर्माण के सभी टेंडर पूरे कर लिए गए हैं.

सिन्हा ने कहा, ‘लगभग 10 दिन पहले मैं व्यक्तिगत तौर पर दो स्थानों- बारामूला और बांदीपोरा में निरीक्षण के लिए गया था. अप्रैल में कश्मीरी पंडितों को 1,200 घर दिए जाएंगे; अगले दिसंबर तक 1,800 और मकान आवंटित होंगे. श्रीनगर में एक बड़ा हाउसिंग कॉम्प्लेक्स बनाया जा रहा है और हमारी प्राथमिकता काम जल्दी खत्म करना है. हमें उम्मीद है कि सभी 6,000 घर जल्द ही पूरे हो जाएंगे.’

कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्याओं पर सिन्हा ने कहा कि वह घाटी में उनके आक्रोश को समझ सकते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं सभी लोगों के साथ लगातार संपर्क में था. मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत से लोगों और कुछ संगठनों से मिला. मैंने उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश की. मैं यहां बड़ी जिम्मेदारी के साथ बोल रहा हूं, उन्होंने जो मुद्दे उठाए, मैंने व्यक्तिगत रूप से उन मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की.’

उन्होंने जोड़ा, ‘सबसे पहले वे सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित होना चाहते थे. धीरे-धीरे हम लोगों को जिला मुख्यालय में पोस्ट करने में कामयाब हो गए हैं. अब यदि कर्मचारी ग्रामीण विकास विभाग से है तो उनका शहर में तबादला नहीं किया जा सकता है. लिहाजा वह जिला मुख्यालय से सटे गांव में पोस्टेड हैं. कुछ तहसील मुख्यालय में हैं, लेकिन पुलिस का कहना था कि यह सुरक्षित है.’

गौरतलब है कि कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों समेत अन्य अल्पसंख्यकों की आतंकियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रहीं हत्याओं के विरोध में वहां कार्यरत कर्मचारी पिछले कई महीने से जम्मू में प्रदर्शन कर रहे हैं.

कश्मीरी पंडितों ने पुनर्वास के मुद्दे को लेकर सोमवार को भी जम्मू में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान उन्होंने घाटी में काम पर न लौटने की सूरत में वेतन रोकने संबंधी जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की टिप्पणी पर भी नाराजगी जाहिर की.

साथ ही सिन्हा की ‘हत्याओं को धर्म के आधार पर न देखने’ वाले बयान को लेकर कहा कि वे कश्मीरी पंडितों की हत्याओं को ‘सामान्य’ बताने की कोशिश कर रहे हैं.

प्रदर्शनकारियों में से एक ने कहा, ‘एलजी साहब स्वीकार करते हैं कि यह ‘टारगेट-किलिंग’ का एक उदाहरण है, लेकिन वह इसे ‘छिटपुट’ कहते हैं, जैसा असल में नहीं है.’ एक अन्य प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘हमारा विरोध 200 दिनों से अधिक समय से चल रहा है. हम उच्च अधिकारियों से संवेदनशीलता की उम्मीद करते हैं. लेकिन एलजी साहब की टिप्पणी अक्सर बदलती रहती है.’

इससे पहले बीते 21 दिसंबर को सिन्हा ने तबादले के लिए प्रदर्शन कर रहे कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारियों को कहा था कि काम पर न आने वालों को वेतन नहीं दिया जाएगा, जिसके बाद इस टिप्पणी से नाराज डोगरा और कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने अपना विरोध प्रदर्शन और तेज करते हुए जम्मू स्थित भाजपा कार्यालय पर प्रदर्शन किया था.

उल्लेखनीय है कि आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रहीं हत्याओं (Targeted Killings) के बाद से घाटी में प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत काम कर रहे अनेक कश्मीरी पंडित जम्मू जा चुके हैं और 200 से अधिक दिन से स्थान परिवर्तन की मांग के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं. वे जम्मू स्थित पुनर्वास आयुक्त कार्यालय के बाहर डेरा डाले हैं.

मई 2022 में कश्मीर में राहुल भट की हत्या के बाद से पिछले छह महीनों में प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत कार्यरत कश्मीरी पंडित जम्मू में पुनर्वास आयुक्त कार्यालय में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

इस बीच, सितंबर 2022 में सरकार ने संसद को सूचित किया था कि जम्मू-कश्मीर में अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से और इस साल जुलाई के मध्य तक पांच कश्मीरी पंडित और 16 अन्य हिंदुओं तथा सिखों सहित 118 नागरिक मारे गए थे.

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