आज़म ख़ान ने अपने ख़िलाफ़ लंबित आपराधिक मामलों को कथित उत्पीड़न के आधार पर उत्तर प्रदेश के बाहर ट्रांसफर करने की मांग की थी. उन्होंने आरोप लगाया है कि यूपी पुलिस द्वारा सैकड़ों एफ़आईआर दर्ज कर उन्हें ‘परेशान’ किया जा रहा है. निचली अदालत उनके द्वारा उठाई गईं आपत्तियों पर विचार किए बिना मामले में आगे बढ़ रही है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने रामपुर की एक विशेष अदालत में समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों को कथित ‘उत्पीड़न’ के आधार पर उत्तर प्रदेश के बाहर ट्रांसफर करने से बुधवार को इनकार कर दिया.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि खान के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों को ट्रांसफर करने के लिए अधिक ठोस कारणों की जरूरत है.
सपा नेता आजम खान, जो वर्तमान में आपत्तिजनक भाषण, भ्रष्टाचार और चोरी से संबंधित लगभग 90 मामलों का सामना कर रहे हैं, ने आरोप लगाया कि उन्हें उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं मिलेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि आपराधिक मामलों में मुकदमे को राज्य में रामपुर जिले के बाहर ट्रांसफर करने की याचिका के साथ खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख करने की अनुमति दी.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘आप सीआरपीसी की धारा 482 (आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की अदालत की शक्ति) के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख कर सकते हैं. आज सुनवाई हो रही है और गवाहों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं. यह ट्रांसफर का आधार नहीं है. क्या आप इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते? आप हमेशा यूपी राज्य के किसी भी अन्य जिले से पहले ट्रांसफर के लिए कह सकते हैं, लेकिन आप कह रहे हैं कि वे राज्य में कहीं भी आपकी गुहार नहीं सुनेंगे! माफ कीजिएगा, हम ट्रांसफर नहीं कर सकते हैं.’
आजम खान की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने उनके हवाले से कहा, ‘मामलों को दूसरे जिले में स्थानांतरित करना मददगार नहीं होगा. मुझे राज्य में न्याय नहीं मिलेगा. मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है. यह न्यायाधीश के बारे में नहीं, यह राज्य के बारे में है. राज्य में कहीं भी स्थिति ऐसी ही रहेगी.’
इस जवाब से सीजेआई सहमत नहीं हुए उन्होंने कहा, ‘जब हम कोई मामला ट्रांसफर करते हैं, तो हमें इसके लिए कहीं अधिक ठोस कारणों की आवश्यकता होती है. हम आपको इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने की अनुमति देते हैं, लेकिन हम मामला ट्रांसफर नहीं कर सकते.’
इससे पहले सिब्बल ने तर्क दिया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज सैकड़ों एफआईआर के माध्यम से आजम खान को ‘परेशान’ किया जा रहा है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि पुलिस जाली दस्तावेज बना रही है और निचली अदालत उनके द्वारा उठाई गईं आपत्तियों पर विचार किए बिना मामले में आगे बढ़ रही है.
सिब्बल ने दावा किया कि राज्य में निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकेगी और आजम खान के खिलाफ कथित पक्षपात की अपनी बात को साबित करने के लिए सिब्बल ने तर्क दिया था कि उन्हें एक मामले में दोषी ठहराया गया था, जब दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 (आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अदालत की शक्ति) के तहत अतिरिक्त साक्ष्य मांगने वाली याचिका हाईकोर्ट के समक्ष लंबित थी.
सिब्बल ने कहा कि सजा के परिणामस्वरूप उन्हें रामपुर सदर विधानसभा सीट छोड़नी पड़ी थी.
मालूम हो कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को सात नवंबर 2022 को खारिज कर दिया था, जिसमें आजम खान के बेटे मोहम्मद अब्दुल्ला आजम खान का 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव रद्द करने का आदेश दिया गया था.
यह मामला अब्दुल्ला आजम के दो जन्म प्रमाण पत्रों से संबंधित है. अब्दुल्ला ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र दायर करते समय कथित तौर पर गलत जन्मतिथि बताई थी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अब्दुल्ला आजम को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया था, क्योंकि उनकी उम्र 25 वर्ष से कम थी. उन्होंने 2017 में स्वार निर्वाचन क्षेत्र से सपा उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दायर किया था.
आजम खान को हाल ही में आपत्तिजनक भाषण से संबंधित एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया था और राज्य विधानसभा में एक विधायक के रूप में उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था.
गौरतलब है कि 27 अक्टूबर 2022 को उत्तर प्रदेश में रामपुर की एमपी/एमएलए अदालत ने आजम खान को भड़काऊ भाषण देने के मामले में दोषी करार देते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई थी. उसके बाद उनकी उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी.
आजम खान पर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मिलक कोतवाली इलाके के खातानगरिया गांव में जनसभा को संबोधित करने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने और जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों को भला-बुरा कहने पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था.
भड़काऊ भाषण देने के मामले में विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने आजम को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 153-क (धार्मिक भावनाएं भड़काना), 505-क (विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करने के आशय से असत्य कथन) और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 (चुनाव के सिलसिले में विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्य बढ़ाना) के तहत दोषी करार देते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई थी.
गौरतलब है कि 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से आजम खान के खिलाफ चोरी से लेकर भ्रष्टाचार तक के 87 मामले दर्ज किए गए.
जमीन कब्जाने से संबंधित मामले में वे करीब दो सालों तक जेल में रहे थे. इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट अंतरिम जमानत मिलने के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)