सिब्बल का रिजिजू पर तंज़: क्या आपके विवादित बयान न्यायपालिका को मज़बूत करने के लिए हैं

राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल की यह टिप्पणी केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू के उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार और न्यायपालिका में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि दोनों एक-दूसरे पर हमले कर रहे हों और उनके बीच ‘महाभारत’ चल रहा हो.

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कपिल सिब्बल. (फोटो: पीटीआई)

राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल की यह टिप्पणी केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू के उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार और न्यायपालिका में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि दोनों एक-दूसरे पर हमले कर रहे हों और उनके बीच ‘महाभारत’ चल रहा हो.

कपिल सिब्बल. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राज्यसभा सदस्य और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने मंगलवार को केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू पर उनके उस बयान को लेकर तंज कसा, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार ने न्यायपालिका को कमजोर करने वाला एक भी कदम नहीं उठाया है.

सिब्बल ने सवाल किया कि क्या रिजिजू का ‘विवादास्पद बयान’ न्यायपालिका को मजबूत करने के लिए था. उनकी यह टिप्पणी रिजिजू के उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार और न्यायपालिका में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि दोनों एक-दूसरे पर हमले कर रहे हों और उनके बीच ‘महाभारत’ चल रहा हो.

दिल्ली में गणतंत्र दिवस से पहले तीस हजारी अदालत परिसर में आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए रिजिजू ने कहा था कि मोदी सरकार ने न्यायपालिका को कमजोर करने वाला एक भी कदम नहीं उठाया है.

कानून मंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए सिब्बल ने ट्वीट किया, ‘रिजिजू: एक और नायाब बयान. मोदी सरकार ने न्यायपालिका को कमजोर करने वाला एक भी कदम नहीं उठाया है.’

उन्होंने सवाल किया, ‘क्या आपके (रिजिजू के) सभी विवादास्पद बयान न्यायपालिका को मजबूत करने के लिए हैं? आप यकीन कर सकते हैं. पर हम वकील नहीं.’

इससे पहले बीते 15 जनवरी को कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया था कि सरकार न्यायपालिका पर ‘कब्जा’ करने का प्रयास कर रही है.

उन्होंने कहा था कि सरकार ऐसी स्थिति बनाने की पूरी कोशिश कर रही है, जिसमें एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में ‘दूसरे स्वरूप’ में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का परीक्षण किया जा सके.

दिसंबर 2022 में कपिल सिब्बल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि भले ही कॉलेजियम प्रणाली परफेक्ट नहीं है लेकिन यह सरकार द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति पर पूर्ण नियंत्रण होने से तो बेहतर है.

उन्होंने कहा था कि इस समय सारे सार्वजनिक संस्थानों पर मौजूदा सरकार का नियंत्रण है और यदि वह ‘अपने न्यायाधीशों’ की नियुक्ति करके न्यायपालिका पर भी कब्जा कर लेती है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा.

सिब्बल ने कहा था, ‘वे (सरकार) अपने लोगों को वहां (न्यायपालिका) चाहते हैं. अब विश्वविद्यालयों में उनके अपने लोग हैं, कुलपति उनके हैं, राज्यों में राज्यपाल उनके हैं – जो उनकी तारीफें करते नहीं थकते हैं. चुनाव आयोग के बारे में न ही बोलें तो बेहतर है. सभी सार्वजनिक संस्थान उनके द्वारा नियंत्रित होते हैं. ईडी में उनके अपने लोग हैं, आयकर में उनके लोग हैं, सीबीआई उनकी है, अब वे अपने जज भी चाहते हैं.’

उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध का विषय बनी हुई है, जहां कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.

दिसंबर 2022 में संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान रिजिजू सुप्रीम कोर्ट से जमानत अर्जियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी करने के साथ कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई थी.

इससे पहले भी रिजिजू कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान देते रहे हैं.

नवंबर 2022 में किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.

नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.

इसके बाद दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए ‘बाध्यकारी’ है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए.

वहीं, इसी महीने की शुरुआत में रिजिजू ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखते हुए कहा था कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट के कॉलेजियम में जगह दी जानी चाहिए. विपक्ष ने इस मांग की व्यापक तौर पर निंदा की थी.

बीते 22 जनवरी को ही रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आरएस सोढ़ी के एक साक्षात्कार का वीडियो साझा करते हुए उनके विचारों का समर्थन किया था. सोढ़ी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का ‘अपहरण’ (Hijack) किया है.

सोढ़ी ने यह भी कहा था कि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है. इसे लेकर कानून मंत्री का कहना था, ‘वास्तव में अधिकांश लोगों के इसी तरह के समझदारीपूर्ण विचार हैं. केवल कुछ लोग हैं, जो संविधान के प्रावधानों और जनादेश की अवहेलना करते हैं और उन्हें लगता है कि वे भारत के संविधान से ऊपर हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)