निचली अदालतों ने पिछले वर्ष 165 दोषियों को सुनाई मौत की सज़ा; वर्ष 2000 के बाद सबसे अधिक: रिपोर्ट

राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के ‘प्रोजेक्ट 39ए’ के तहत जारी वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे अधिक मौत की सज़ा उत्तर प्रदेश में (100 दोषियों को) सुनाई गई. वहीं, गुजरात में 61, झारखंड में 46, महाराष्ट्र में 39 और मध्य प्रदेश में 31 दोषियों को मौत की सज़ा दी गई है.

(फोटो साभार: https://www.project39a.com)

राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के ‘प्रोजेक्ट 39ए’ के तहत जारी वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे अधिक मौत की सज़ा उत्तर प्रदेश में (100 दोषियों को) सुनाई गई. वहीं, गुजरात में 61, झारखंड में 46, महाराष्ट्र में 39 और मध्य प्रदेश में 31 दोषियों को मौत की सज़ा दी गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Lawmin.gov.in)

नई दिल्ली: देश भर की निचली अदालतों ने 2022 में 165 दोषियों को मौत की सजा सुनाई, जो वर्ष 2000 के बाद से सर्वाधिक है. यह खुलासा एक रिपोर्ट में किया गया है.

राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एनएलयू) की ‘प्रोजेक्ट 39ए’ के तहत नई दिल्ली में जारी वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, साथ ही 2022 के अंत तक 539 कैदी मौत की सजा सुनाई गई थी, जो वर्ष 2016 के बाद सबसे अधिक है.

साथ ही वर्ष 2015 के बाद जिन दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई, उन कैदियों की संख्या में 40 प्रतिशत वृद्धि हुई है.

‘भारत में मृत्युदंड, वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट-2022’ शीर्षक से यह रिपोर्ट जारी की गई है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘इस तरह के कैदियों की बड़ी संख्या इंगित करती है कि निचली अदालतों द्वारा बड़ी संख्या में मौत की सजा दी जा रही है, जबकि अपीलीय अदालतों में इनके निस्तारण की गति धीमी है.’

रिपोर्ट में कहा गया कि इस तरह की 50 प्रतिशत (51.28 प्रतिशत) सजा यौन अपराधों के मामलों में दोषियों को सुनाई गई है.

वर्ष 2022 में मृत्युदंड की सजा की संख्या को अहमदाबाद बम धमाके के मामले में 38 लोगों को सुनाई गई इस तरह की सजा ने प्रभावित किया है. वर्ष 2016 के बाद यह पहली बार हुआ है, जब एक ही मामले में इतने लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है.

रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने मौत की सजा के क्रमश: 11 और 68 मामलों का निस्तारण किया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च न्यायालयों द्वारा तय किए गए 68 मामलों में से, जिसमें 101 कैदी शामिल थे, तीन कैदियों की मौत की सजा की पुष्टि हुई थी, 48 की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था, 43 को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था और छह के मामले ट्रायल कोर्ट को भेज दिए गए थे.

इसमें कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने डकैती और हत्या के एक मामले में एक कैदी की आजीवन कारावास की सजा को बढ़ाकर मृत्युदंड कर दिया और 2016 के बाद से सजा बढ़ाने का यह दूसरा मामला है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए 11 मामलों में, जिसमें 15 कैदी शामिल थे, अदालत ने पांच कैदियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया, आठ कैदियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया और दो कैदियों की मौत की सजा की पुष्टि की थी.

रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत के बरी किए गए फैसलों में पुलिस, अभियोजन और निचली अदालतों द्वारा जांच की अनुचित प्रकृति और प्रक्रियात्मक विफलताओं का उल्लेख किया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि अपीलीय अदालतों ने वर्ष में तय की गई अधिकांश मौत की सजाओं को कम करना जारी रखा है, लेकिन चिंता की बात यह है कि इन कमियों के परिणामस्वरूप आजीवन कारावास की सजा में कमी आई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी आठ कैदियों के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई, जिनकी मौत की सजा कम कर दी गई थी, वहीं उच्च न्यायालयों ने 56.6 प्रतिशत से अधिक कैदियों के लिए इसे लागू किया.

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 2022 में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सजा कानून के अन्य पहलुओं के अलावा मौत की सजा के मामलों में सजा के लिए दिए जाने वाले समय के सवाल को एक संविधान पीठ के पास भेजा था.

सबसे अधिक मौत की सजा उत्तर प्रदेश में (100 दोषियों को) सुनाई गई. वहीं, गुजरात में 61, झारखंड में 46, महाराष्ट्र में 39 और मध्य प्रदेश में 31 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)