अधिक तीर्थयात्रियों को भेजने के चक्कर में हम पवित्र स्थानों को नष्ट कर रहे हैं: लेखक अमिताव घोष

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक अमिताव घोष ने कहा कि जब जलवायु परिवर्तन असर दिखा रहा है, मानव हस्तक्षेप आपदा को और बढ़ा रहे हैं. जैसा कि जोशीमठ में हुआ. केदारनाथ और बद्रीनाथ की तीर्थ यात्रा पर जाने का पूरा मतलब यह है कि यह कठिन है. लोगों के वहां जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था करने का कोई मतलब नहीं है. जहां एक ओर पर्यावरण की रक्षा को लेकर बैठकें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर खनन के लिए जंगलों को खोला जा रहा है.

06 मई 2022 को केदारनाथ के कपाट खुलने के दौरान तीर्थयात्री. (फोटो: पीटीआई)

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक अमिताव घोष ने कहा कि जब जलवायु परिवर्तन असर दिखा रहा है, मानव हस्तक्षेप आपदा को और बढ़ा रहे हैं. जैसा कि जोशीमठ में हुआ. केदारनाथ और बद्रीनाथ की तीर्थ यात्रा पर जाने का पूरा मतलब यह है कि यह कठिन है. लोगों के वहां जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था करने का कोई मतलब नहीं है. जहां एक ओर पर्यावरण की रक्षा को लेकर बैठकें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर खनन के लिए जंगलों को खोला जा रहा है.

लेखक अमिताव घोष. (फोटो साभार: फेसबुक)

कोलकाता: ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक अमिताव घोष ने अफसोस व्यक्त किया कि अधिक तीर्थयात्रियों को भेजने की चाह में अधिकारी वास्तव में तीर्थ स्थलों को नष्ट कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के अलावा प्रकृति में मानव हस्तक्षेप उत्तराखंड के तीर्थनगर जोशीमठ में आई आपदा के लिए जिम्मेदार है, जहां भू धंसाव हो रहा है.

पर्यावरण के मुद्दे पर कई किताबें लिख चुके घोष ने कहा कि न केवल हिमालय की गोद में बसा जोशीमठ, बल्कि पश्चिम बंगाल का सुंदरबन भी इन्हीं कारणों से खतरे का सामना कर रहा है.

कोलकाता में हाल में आयोजित एक कार्यक्रम में घोष ने कहा कि इन जैसे स्थानों के भविष्य को लेकर वह ‘वास्तव में भयभीत’ हैं.

उन्होंने कहा, ‘जब जलवायु परिवर्तन असर दिखा रहा है, मानव हस्तक्षेप आपदा को और बढ़ा रहे हैं, जैसा कि जोशीमठ में हुआ. यह विरोधाभास है कि अधिक श्रद्धालुओं को भेजने की उत्सुकता की वजह से आप वास्तव में इन तीर्थ स्थलों को नष्ट कर रहे हैं.’

जोशीमठ भगवान बद्रीनाथ का शीतकालीन पीठ है, जहां पर आदि शंकराचार्य ने 8वीं सदी में चार में से एक मठ की स्थापना की थी.

घोष ने आरोप लगाया कि पर्यावरण नियमन को खत्म कर दिया गया है. उन्होने कहा कि पर्यावरण रक्षा की गतिविधियों से लोग मानते हैं कि संगठन पर्यावरण की रक्षा के लिए अधिक कार्य कर रहे हैं. जबकि वास्तविकता उससे अलग होती है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, लेखक ने कहा, ‘केदारनाथ और बद्रीनाथ की तीर्थ यात्रा पर जाने का पूरा मतलब यह है कि यह कठिन है. लोगों के वहां जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था करने का कोई मतलब नहीं है.’

अपने बचपन के दौरान उन पवित्र स्थानों की अपनी यात्रा को याद करते हुए लेखक ने कहा कि उन्होंने बुजुर्ग लोगों को सड़क पर लेटते और उठते हुए देखा है, क्योंकि वे धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं, मंदिरों तक पहुंचने में उन्हें काफी समय लगता है.

घोष ने कहा कि वहां जाने के लिए बसों की व्यवस्था करने का कोई मतलब नहीं है.

जानकारों का कहना है कि उत्तराखंड में विकास के नाम पर अनियोजित और अनियंत्रित निर्माण ने जोशीमठ को धंसाव के कगार पर ला दिया है. उन्होंने ‘चारधाम’ सड़क परियोजना के नियमन की भी मांग की, जिसका उद्देश्य राज्य के चार पवित्र शहरों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ – को सभी मौसम में संपर्क प्रदान करना है.

लेखक ने कहा, ‘मानव हस्तक्षेप वास्तव में आपदा को उस दर और पैमाने पर बढ़ा रहे हैं, जब आगे क्या होगा इसके बारे में आशावादी होना असंभव है.’

घोष ने जोर देकर कहा कि पर्यटकों की संख्या में कई गुना वृद्धि ने देश के दूसरे छोर पर जोशीमठ से 1,700 किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के पक्षियों पर अपना प्रभाव डाला है.

यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल सुंदरबन की उनकी हालिया यात्रा 23 साल बाद हुई थी. उनकी 2005 की पुस्तक ‘द हंग्री टाइड’ मैंग्रोव वन क्षेत्र के पर्यावरण और लोगों से संबंधित है.

उन्होंने कहा, ‘अतीत में आप पक्षियों के इतने सारे झुंड देखते थे, आप कई प्रकार के रैप्टर (शिकारी पक्षी) देखते थे. इस बार बहुत कम पक्षी थे, केवल एक सामान्य ब्राह्मणी पतंग को छोड़कर कोई रैप्टर नहीं था. आप सुंदरबन की तुलना में दिल्ली में अधिक देख सकते हैं.’

सुंदरबन पर एक और किताब, ‘जंगलनामा’ (2021) के लेखक घोष ने कहा, ‘जंगल और वहां के भूलभुलैया जैसे बैकवाटर के बारे में सबसे अद्भुत चीजों में से एक इसकी खामोशी थी.’

उन्होंने कहा, ‘इस बार मैंने सुंदरबन में जो सबसे बड़ा परिवर्तन देखा, वह पर्यटन में अविश्वसनीय वृद्धि है. पहले आपको शायद ही कोई पर्यटक नौका दिखाई देती थी, अब सैकड़ों की संख्या में हैं, जो लगातार एक अविश्वसनीय शोर करती हैं. अब कभी सन्नाटा नहीं रहता. लाउडस्पीकर से लगातार शोर किया जा रहा है.’

घोष ने कहा कि जहां एक ओर पर्यावरण की रक्षा को लेकर बैठकें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर खनन के लिए जंगलों को खोला जा रहा है.

लेखक ने कहा, ‘खनन कंपनियों से जुड़े कई लोग शाकाहारी हैं, लेकिन उन्हें पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करने के बारे में कोई पछतावा नहीं है, भले ही उनके धर्म और संस्कृति में सब कुछ उन्हें बताता है कि यह पूरी तरह से गलत है.’

उन्होंने युवा और महत्वाकांक्षी लेखकों को वास्तविकता पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी.

उन्होंने कहा, ‘अपने आसपास की वास्तविकता से जुड़ें, न कि उस तरह की काल्पनिक कहानियों के साथ जो इस बारे में बताई जाती हैं कि हम अगली महाशक्ति कैसे बनने जा रहे हैं. जरा उन पर्यावरणीय बाधाओं को देखें जो हम अपने चारों ओर देखते हैं और आप एक बहुत अलग तस्वीर देखेंगे. उन मुद्दों से जुड़ना तत्काल आवश्यक है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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