क्या जी-20 पर मोदी सरकार का पीआर अभियान वैश्विक भू-राजनीति की वास्तविकता से मेल खाता है

दिल्ली में हो रही जी-20 देशों की बैठक में यह स्पष्ट नहीं है कि क्या जी-20 अध्यक्ष भारत, यूक्रेनी विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा द्वारा वीडियो लिंक के ज़रिये सभा को संबोधित करने पर सहमत होगा. यूक्रेन के वित्त मंत्री ने पिछले सप्ताह जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक को भी संबोधित नहीं किया था.

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(फोटो साभार: ट्विटर)

दिल्ली में हो रही जी-20 देशों की बैठक में यह स्पष्ट नहीं है कि क्या जी-20 अध्यक्ष भारत, यूक्रेनी विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा द्वारा वीडियो लिंक के ज़रिये सभा को संबोधित करने पर सहमत होगा. यूक्रेन के वित्त मंत्री ने पिछले सप्ताह जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक को भी संबोधित नहीं किया था.

(फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: दिल्ली में 1 और 2 मार्च को होने वाली जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के केंद्र में यूक्रेन के रहने की संभावना है.

पिछले सप्ताह हुई वित्त मंत्रियों की बैठक ने पहले ही संकेत दे दिया था कि पश्चिमी देश रूस को घेरने के प्रयास में अपनी सारी ऊर्जा लगाने के इच्छुक हैं.

द ट्रिब्यून के अनुसार, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या भारत- वर्तमान में जी-20 अध्यक्ष, जिसे केंद्र सरकार महीनों से प्रचारित कर रही है- यूक्रेनी विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा द्वारा वीडियो लिंक के जरिये सभा को संबोधित करने पर सहमत होगा. यूक्रेन के वित्त मंत्री ने पिछले सप्ताह जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक को भी संबोधित नहीं किया था.

बेंगलुरु में हुई वित्त मंत्रियों की बैठक में भारत ने यूक्रेन मुद्दे को उठाने से परहेज किया था, जो इस मुद्दे पर उसके तटस्थ रुख और इस विचार के अनुरूप था कि संकट का समाधान राजनयिक माध्यमों से करना चाहिए.

फाइनेंशियल टाइम्स ने बताया था कि जी-20 बैठक मतभेदों के साथ समाप्त हुई क्योंकि रूस और चीन ने यूक्रेन युद्ध की निंदा करने से इनकार कर दिया था. अखबार ने लिखा कि ‘भारतीय वित्त मंत्री नहीं बोलेंगी कि क्या उनका देश आलोचना का समर्थन करने वाले देशों में शामिल था.’

यूक्रेन पर अलग-अलग मतों के कारण, वित्त मंत्रियों की बैठक बिना किसी संयुक्त बयान के समाप्त हो गई. संयुक्त बयान के स्थान पर जी-20 अध्यक्ष का सारांश और परिणाम दस्तावेज जारी किया गया, जिसमें रूस-यूक्रेन युद्ध के संबंध में सदस्य देशों द्वारा व्यक्त स्थिति को रेखांकित किया गया.

द वायर  के लिए करण थापर के साथ एक साक्षात्कार में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने विस्तार से बताया कि कैसे यह भारत के लिए एक कूटनीतिक झटका रहा है. उनसे पूछा गया था कि क्या भारत अपने स्वयं के सिद्धांतों और मतों के साथ खड़ा होने में असमर्थ हैं, ‘क्या भारत की गिनती की जाएगी?’

उन्होंने कहा कि यूक्रेन पर भारत की स्थिति में एक हानिकारक विरोधाभास है, जिसके परिणामस्वरूप पिछले सप्ताह के अंत में बेंगलुरु में जी-20 वित्त मंत्रियों की बैठक ‘पूरी तरह से भारतीय कूटनीति के लिए एक झटका’ थी. पूर्व विदेश मंत्री थरूर का विरोधाभास से आशय इस तथ्य की ओर था कि एक तरफ भारत बार-बार दावा करता है कि यह युद्ध का युग नहीं है, फिर भी यूक्रेन में जो हो रहा है उसे युद्ध बताने में अनिच्छुक है और इसे शुरू करने के लिए रूस की आलोचना करने से साफ इनकार कर देता है.

जी-20 के इतर क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक की मेजबानी करने की मोदी सरकार की योजना के चीन की आंखों में चुभने की संभावना है. इसमें विदेश मंत्री एस. जयशंकर, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री हयाशी (द हिंदू के अनुसार, उन्होंने अभी पुष्टि नहीं की है) शामिल हो सकते हैं.

बयान दिए बिना किसी भी संतुलन की स्थिति में पहुंचने के प्रयास से जल्द ही होने वाली क्वाड बैठक में संतुलन के समाप्त होने की संभावना है.

द हिंदू के मुताबिक, ऐसा लगता है कि वित्त मंत्रियों की बैठक भी बिना किसी संयुक्त बयान के समाप्त हो जाएगी.

रिपोर्ट में उल्लेख है, ‘अंतिम आह्वान मंगलवार और बुधवार को किया जाएगा, जब भारत के शेरपा अमिताभ कांत एक मार्च को जी-20 विदेश मंत्रियों की बैठक से पहले अन्य जी-20 देशों के शेरपाओं के साथ वार्ता का नेतृत्व करेंगे. अधिकारियों ने कहा कि अगर वे आम सहमति तक पहुंचने में विफल रहते हैं तो भारत बेंगलुरु में वित्त मंत्रियों की बैठक में जारी किए गए ‘अध्यक्ष के परिणाम बयान’ जैसी ही उम्मीद करता है, जहां ‘ज्यादातर’ देशों ने यूक्रेन युद्ध से निपटने वाले पैराग्राफ पर हस्ताक्षर किए थे, और रूस व चीन उन पैराग्राफ के इतर बयान पर सहमत हुए. ‘

कई जी-20 बैठकों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व आईएफएस अधिकारी आलोक शील ने लाइव मिंट में लिखा है कि, ‘दिल्ली के जी-20 शिखर सम्मेलन की योजना बेंगलुरु में तय की जा सकती थी.’

उन्होंने एक महत्वपूर्ण बैठक के लिए पर्याप्त कूटनीतिक तैयारी को लेकर चिंता जताई. उन्होंने कहा, ‘बेंगलुरु में परिणामों को देखते हुए यह स्पष्ट नहीं है कि एक सहमत एजेंडा और आम सहमति- जिस पर एक सफल शिखर सम्मेलन, भू-राजनीतिक लाभ और अंतरराष्ट्रीय संबंध निर्भर करते हैं- बनाने के लिए जी-20 बैठकों से पहले पर्दे के पीछे की कूटनीति पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है या नहीं.’

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