नगालैंड: राज्य को पहली बार मिलीं महिला विधायक, दो प्रत्याशी विजयी

1963 में राज्य का दर्जा पाने वाले नगालैंड में अब तक चौदह विधानसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन अब तक कोई महिला विधायक नहीं बनी थीं. इस बार उतरी चार प्रत्याशियों में से दीमापुर III सीट से हेकानी जखालु और  पश्चिमी अंगामी से सालहुटुआनो क्रूस ने जीत दर्ज की है. दोनों सत्तारूढ़ एनडीपीपी की सदस्य हैं.

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हेकनी जखालु और सालहुटुआनो क्रूस. (फोटो साभार: ट्विटर/@Neiphiu_Rio)

1963 में राज्य का दर्जा पाने वाले नगालैंड में अब तक चौदह विधानसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन अब तक कोई महिला विधायक नहीं बनी थीं. इस बार उतरी चार प्रत्याशियों में से दीमापुर III सीट से हेकानी जखालु और  पश्चिमी अंगामी से सालहुटुआनो क्रूस ने जीत दर्ज की है. दोनों सत्तारूढ़ एनडीपीपी की सदस्य हैं.

हेकनी जखालु और सालहुटुआनो क्रूस. (फोटो साभार: ट्विटर/@Neiphiu_Rio)

नई दिल्ली: हेकानी जखालु गुरुवार को नगालैंड में विधायक के रूप में निर्वाचित होने वाली पहली महिला बनीं। एनडीपीपी (भाजपा की सहयोगी) के उम्मीदवार के रूप में दीमापुर III निर्वाचन क्षेत्र से उतरी जाखलू ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के निकटतम प्रतिद्वंद्वी अज़ेतो झिमोमी को 1,536 मतों से हराया

48 वर्षीय जखालु एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो लंबे समय से ‘यूथनेट’ नाम का एनजीओ चलाती हैं.

गौरतलब है कि 1963 में राज्य का दर्जा पाने वाले इस उत्तर-पूर्वी राज्य में चौदह विधानसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन आज तक कोई भी महिला विधायक नहीं बनी थीं. इससे पहले राज्य में केवल 20 महिलाओं ने विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिनमें 2018 के चुनाव में सर्वाधिक पांच महिला प्रत्याशी लड़ी थीं, हालांकि, इन उम्मीदवारों में से तीन को कुल मतों का छठा हिस्सा भी नहीं मिला.

तोलुवी से आने वाली जखालु ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि ‘नगालैंड में समाज बहुत पितृसत्तात्मक रहा है लेकिन अब नजरिया बदल रहा है. यहां महिलाओं को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया जाता है कि वे राजनीति में पुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकतीं. हम दिखाना चाहते हैं कि बाधाओं को पार किया जा सकता है.’

उनके साथ ही उन्हीं की पार्टी के टिकट पर पश्चिमी अंगामी से उतरीं सालहुटुआनो क्रूस ने भी अपनी सीट जीती है. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी केनिजाखो नखरो को महज सात मतों से हराया है.

56 वर्षीय क्रूस लंबे समय से सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रही हैं, जहां वे अंगामी विमेन ऑर्गनाइजेशन की अध्यक्ष और सलाहकार रही हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उनके दिवंगत पति केविसखो क्रूस 2018 के चुनाव में इसी सीट से एनडीपीपी के उम्मीदवार के बतौर चुनाव लड़े थे, हालांकि तब नगा पीपुल्स फ्रंट के प्रत्याशी के रूप में उतरे केनिजाखो नखरो के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.

हालांकि नखरो पिछले साल एनपीएफ छोड़कर एनडीपीपी में शामिल हो गए थे. इस बार पार्टी से टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और क्रूस को कड़ी टक्कर दी.

इस बार चार महिलाएं चुनावी मैदान में थीं, जहां कांग्रेस ने टेनिंग सीट पर रोज़ी थॉमसन और भाजपा ने अटोइजू सीट से काहुली सेमा को खड़ा किया था.

उल्लेखनीय है कि बीते साल भाजपा की एस. फांगनोन कोन्याक नगालैंड से राज्यसभा पहुंचने वाली पहली महिला बनी थीं. कोन्याक दूसरी नगा महिला सांसद भी हैं. उनसे पहले राज्य से केवल एक महिला- रानो एम. शैज़ा सांसद बनी थीं, जो 1977 में लोकसभा के लिए चुनी गई थीं.

ज्ञात हो कि नगालैंड का समाज लैंगिक नजरिये से समावेशी कहा जाता है लेकिन चुनावी राजनीति ने महिलाओं का विरोध होता आया है. इसका एक उदाहरण साल 2017 में देखने को मिला, जब सरकार ने शहरी निकाय चुनावों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय लिया.

इसके बाद प्रदेश की आदिवासी इकाइयों ने इनके शीर्ष नगा जनजातीय संगठन नगा होहो के बैनर तले कड़ा विरोध दर्ज करवाया था. इसे लेकर राज्य में हिंसक प्रदर्शन हुए थे, जिसमें दो लोगों की जान भी चली गई.

उनका कहना था कि यह फैसला अनुच्छेद 371 (ए) में निहित नगा प्रथागत कानूनों के खिलाफ था. यह अनुच्छेद राज्य को विशेष दर्जा देता है और जीवन के पारंपरिक तरीके की रक्षा करता है. यह विरोध इतना बढ़ गया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग को इस्तीफ़ा देना पड़ा था.

अप्रैल 2022 में राज्य सरकार ने फिर कहा था कि यह 33% आरक्षण लागू करने को तैयार है, हालांकि शहरी निकाय चुनाव अब तक नहीं हुए.

नगा मदर्स एसोसिएशन (एनएमए) राज्य का प्रभावशाली नागरिक संगठन है. इस साल जनवरी में एनएमए ने सभी पार्टियों को चिट्ठी लिखते हुए विधानसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों को टिकट देने की अपील की थी.

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