गो-हत्यारे उतने वर्षों तक नरक में सड़ते हैं, जितने उनके शरीर पर बाल होते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट मोहम्मद अब्दुल खलीक़ की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने उनके ख़िलाफ़ दर्ज गो-हत्या के मामले को रद्द करने की मांग की थी, जिसे अदालत ने ख़ारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र गो-हत्या पर प्रतिबंध लगाने और इसे ‘संरक्षित राष्ट्रीय पशु’ घोषित करने के लिए उचित निर्णय ले.

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प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो साभार: पिक्सावे)

इलाहाबाद हाईकोर्ट मोहम्मद अब्दुल खलीक़ की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने उनके ख़िलाफ़ दर्ज गो-हत्या के मामले को रद्द करने की मांग की थी, जिसे अदालत ने ख़ारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र गो-हत्या पर प्रतिबंध लगाने और इसे ‘संरक्षित राष्ट्रीय पशु’ घोषित करने के लिए उचित निर्णय ले.

प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो साभार: पिक्सावे)

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शमीम अहमद की एकल पीठ ने एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा है, ‘जो कोई भी गायों को मारता है या दूसरों को उन्हें मारने की अनुमति देता है तो माना जाता है कि उसके शरीर पर जितने बाल हैं, उसे उतने वर्षों तक नरक में सड़ना होता है.’

द हिंदू की खबर के मुताबिक, हाईकोर्ट मोहम्मद अब्दुल खलीक की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ दर्ज गो-हत्या के मामले को रद्द करने की मांग की थी, जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, मोहम्मद अब्दुल खलीक द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए जस्टिस शमीम अहमद की एकल पीठ ने यह टिप्पणी की.

पुलिस ने उन पर और एक अन्य व्यक्ति पर गोहत्या में शामिल होने का आरोप लगाया था, उनके वकील ने तर्क दिया था कि दावे का समर्थन करने के लिए कोई रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट नहीं है.

उनके वकील ने तर्क दिया, ‘किसी भी रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट के अभाव में, जांच अधिकारी ने आवेदक के खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत किया, जिस पर विद्वान मजिस्ट्रेट ने भी नियमित रूप से संज्ञान लिया और आवेदक को मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया था.’

द हिंदू के मुताबिक,  दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कहा, ‘हम एक धर्मनिरपेक्ष देश में रह रहे हैं और सभी धर्मों के लिए सम्मान होना चाहिए. हिंदू धर्म में, आस्था और विश्वास है कि गाय दैवीय एवं प्राकृतिक भलाई की प्रतिनिधि है और इसलिए इसकी रक्षा और पूजा की जानी चाहिए.’

अदालत ने कहा कि 19वीं और 20वीं शताब्दी के अंत में भारत में गायों की रक्षा के लिए एक आंदोलन शुरू हुआ, जिसने भारत सरकार से गो-हत्या पर तुरंत प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए नागरिकों को एकजुट करने का प्रयास किया.

इसने आगे कहा, ‘यह अदालत आशा और विश्वास करती है कि केंद्र सरकार देश में गो-हत्या पर प्रतिबंध लगाने और इसे ‘संरक्षित राष्ट्रीय पशु’ घोषित करने के लिए उचित निर्णय ले.’

अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर सामग्री के अवलोकन से वर्तमान मामले के तथ्यों को देखते हुए और दी गईं दलीलों पर विचार करने के बाद ऐसा नहीं लगता है कि आवेदक के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है.

फरवरी के मध्य में खलीक द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि गाय को विभिन्न देवताओं से भी जोड़ा गया है. विशेष तौर पर इनमें भगवान शिव (जिनका सवारी नंदी यानी एक बैल है), देव इंद्र (जिनका बुद्धि देने वाली गाय कामधेनु से करीबी संबंध है), भगवान कृष्ण (अपनी युवावस्था में गाय चराने वाला चरवाहा थे) आदि शामिल हैं.

अदालत के आदेश में कहा गया है, ‘गाय को कामधेनु या दिव्य गाय या सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली के रूप में जाना जाता है. किंवदंती के अनुसार, वह देवताओं और राक्षसों द्वारा किए गए समुद्रमंथन के समय दूध के सागर से निकली थी.’

अदालत ने कहा कि गाय के चार पैर चार वेदों का प्रतीक हैं. उसके दूध का स्रोत चार पुरुषार्थ (या उद्देश्य यानी धर्म या धार्मिकता, अर्थ या भौतिक धन, काम या इच्छा और मोक्ष या मुक्ति) हैं. उसके सींग देवताओं का प्रतीक हैं, उसका चेहरा सूर्य और चंद्रमा, और उसके कंधे अग्नि या अग्नि के देवता का प्रतीक हैं. उसे अन्य रूपों जैसे नंदा, सुनंदा, सुरभि, सुशीला और सुमन में भी वर्णित किया गया है.

अदालत ने यह भी कहा कि गाय की पूजा की उत्पत्ति वैदिक काल में देखी जा सकती है. अदालत अपने आदेश में गाय का महत्व समझाने के लिए महाभारत, मनुस्मृति और ऋग्वेद का भी उल्लेख किया.

अदालत ने कहा, ‘दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में भारत में प्रवेश करने वाले इंडो-यूरोपीय लोग पशुपालक थे; मवेशियों का बड़ा आर्थिक महत्व था जो उनके धर्म में परिलक्षित होता था. दूध देने वाली गायों के वध पर तेजी से प्रतिबंध लगा दिया गया. यह महान संस्कृत महाकाव्य महाभारत के कुछ हिस्सों में और मनुस्मृति के रूप में ज्ञात धार्मिक और नैतिक संहिता में वर्जित है और गाय को पहले से ही ऋग्वेद में ‘अविनाशी’ कहा गया था.’

न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, ‘किंवदंतियों में यह भी कहा गया है कि ब्रह्मा ने पुजारियों और गायों को एक ही समय में जीवन दिया था, ताकि पुजारी धार्मिक ग्रंथों का पाठ कर सकें, जबकि गाय अनुष्ठानों में प्रसाद के रूप में घी (मक्खन) दे सकें.

उन्होंने आगे कहा, ‘जो कोई गायों की हत्या करता है या दूसरों को मारने की अनुमति देता है, वह उतने ही वर्षों तक नरक में सड़ता है, जितने उसके शरीर पर बाल होते हैं. इसी तरह बैल को भगवान शिव के वाहन के रूप में दर्शाया गया है: यह नर मवेशियों के लिए सम्मान का प्रतीक है.’

बता दें कि हिंदू समूह लंबे समय से गाय को ‘राष्ट्रीय पशु’ घोषित करने की मांग कर रहे हैं. अदालतों से भी इस मांग को समर्थन प्राप्त हो रहा है. सितंबर 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि संसद को गाय को ‘राष्ट्रीय पशु’ घोषित करने वाला कानून पारित करना चाहिए और इसे मौलिक अधिकारों के दायरे में शामिल करना चाहिए.

इससे पहले 2017 में राजस्थान हाईकोर्ट ने भी यह विचार प्रस्तुत किया था. हालांकि, पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था.

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