नगालैंड: फिर राज्य में विपक्ष रहित सरकार, एनडीपीपी-भाजपा गठबंधन के साथ हुए सभी दल

नगालैंड विधानसभा चुनाव में 60 में से 37 सीटें जीतने वाले नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) और सहयोगी भाजपा ने नेफ्यू रियो के नेतृत्व ने राज्य में अपनी दूसरी गठबंधन सरकार बना ली है. यह लगातार दूसरी बार है कि जीते हुए सभी विधायक सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं.

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नेफ्यू रियो के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद राज्यपाल ला गणेशन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा और अन्य नेता. (फोटो साभार: फेसबुक/Himanta Biswa Sarma)

नगालैंड विधानसभा चुनाव में 60 में से 37 सीटें जीतने वाले नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) और सहयोगी भाजपा ने नेफ्यू रियो के नेतृत्व ने राज्य में अपनी दूसरी गठबंधन सरकार बना ली है. यह लगातार दूसरी बार है कि जीते हुए सभी विधायक सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं.

नेफ्यू रियो के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद राज्यपाल ला गणेशन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा और अन्य नेता. (फोटो साभार: फेसबुक/Himanta Biswa Sarma)

नई दिल्ली: नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) और सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नगालैंड विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद पूर्वोत्तर राज्य में अपनी दूसरी गठबंधन सरकार बना ली है. उन्हें 60 में से 37 सीटों पर बहुमत मिला है.

एनडीपीपी के नेता 72 वर्षीय रियो ने मंगलवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. उनके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग और भाजपा नेता वाई. पैटन ने उपमुख्यमंत्री के बतौर कार्यभार संभाला है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि इस बार लगातार दूसरी बार राज्य में कोई विपक्ष नहीं है क्योंकि नई सरकार को समर्थन देने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल सामने आए हैं.

उल्लेखनीय है कि इससे पहले फरवरी 2022 में नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) विधायक वाईएम योलो कोन्यक के कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद राज्य में सर्वदलीय सरकार बन गई थी.

उससे पहले नगालैंड में एनपीएफ एकमात्र विपक्षी दल था और सितंबर 2021 में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में एनपीएफ ने सत्तारूढ़ एनडीपीपी और उसकी सहयोगी भाजपा और दो निर्दलीय विधायकों के साथ गठबंधन कर यूडीए का गठन कर लिया था.

इस बार बीते सोमवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), जो सात उम्मीदवारों की जीत के साथ तीसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, ने सत्तारूढ़ गठबंधन को अपना समर्थन पत्र दिया है.

पांच सीट जीतने वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) में एनडीपीपी (25 सीटों) और भाजपा (12 सीटों) के साथ भागीदार है. यह नई सरकार को अपना समर्थन देने वाली पहली पार्टी थी.

एनपीएफ ने इस बार 22 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से इसे दो पर जीत मिली है. इसने भी सरकार में शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया है.

लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास और रामदास अठावले की अगुवाई वाली रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, जो केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा हैं, ने भी इनके दो-दो विधायकों के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन को अपना समर्थन दिया है.

जनता दल (यूनाइटेड) के अकेले और त्सेमिन्यु जिले से पहली बार विधायक बने ज्वेंगा सेब ने विजयी हुए चार निर्दलीय विधायकों में से कम से कम दो के साथ सरकार का समर्थन करने की इच्छा जाहिर की है.

हालांकि, बिना विपक्ष की सरकार की बात जनता को खास रास नहीं आ रही है.

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, राज्य के वरिष्ठ डॉक्टर दिएथो-ओ-अंगामी ने कहा, ‘किसी लोकतंत्र में चेक एंड बैलेंस जरूरी होते हैं. या तो नगा मसले के समाधान के लिए सभी विधायकों को साथ बुलाकर विभिन्न नगा समूहों से साथ आने का आग्रह करना नई सरकार प्रमुख एजेंडा हो, वरना तो एक और विपक्ष रहित सरकार जिसमें सारे विधायक सत्तारूढ़ पक्ष में हों का होना अर्थहीन और सरकार का मजाक है.’

आंबा जमीर पॉलिसी औरडेवलपमेंट एनालिस्ट हैं. उनका कहना है, ‘काश, नगालैंड में मजबूत और काम करने वाली सरकार होती. बिना विपक्ष के सरकार होने के निश्चित ही नकारात्मक परिणाम होंगे.’

उन्होंने जोड़ा कि कोई विपक्ष न होने से सत्तारूढ़ गठबंधन से जवाबदेही मांगने के लिए कोई नहीं होगा. उन्होंने कहा, ‘इससे जवाबदेही की कमी, ज्यादा भ्रष्टाचार, शक्ति का दुरुपयोग जैसे अन्य परिणाम सामने आएंगे. हमने अतीत में देखा है, एक विपक्ष-रहित सरकार का मतलब होगा कि राय और विचारों की विविधता नहीं होगी. हो सकता है कि हमारी नीतियां और निर्णय हमारे लोगों की जरूरतों और हितों को प्रतिबिंबित न करें. नगा लोग राजनीतिक समाधान चाहते हैं, लेकिन लोग केवल यही नहीं चाहते हैं.’

राज्य के वरिष्ठ पत्रकार इमकोंग वॉलिंग ने अख़बार से कहा, ‘विपक्ष में न रहने की इच्छा बहुत नुकसानदायी है, जो दुर्भाग्य से नगालैंड में एक परंपरा बन गई है. निर्भरता की इस प्रवृत्ति ने केवल निर्भरता की संस्कृति पैदा करने में मदद की है, और इस प्रक्रिया में अपने आप विकसित होने की इच्छा को खत्म कर दिया है.’

उन्होंने जोड़ा, ‘यह रवैया केवल यह बताता है कि विधायक चुनावी राजनीति में केवल धन और ताकत के लिए हैं, न कि आम जनता के लिए, जिनके लिए वे काम करने का दावा करते हैं. वे आत्मनिर्भरता की बात तो करते हैं लेकिन आत्मनिर्भर बनने की कोशिश का कोई संकेत नहीं नजर आता है.’

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