क्यों लोकसभा में क़रीब 4 वर्षों से उपाध्यक्ष नियुक्त न करना एक ग़लत मिसाल है

17 जून 2019 को वर्तमान लोकसभा की बैठक के तुरंत बाद अध्यक्ष (स्पीकर) ओम बिड़ला चुने गए थे, लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद अभी भी ख़ाली है. नियमों के अनुसार, निर्वाचित स्पीकर को अपनी नियुक्ति के तुरंत बाद अपने डिप्टी के चुनाव की सूचना देनी चाहिए. हालांकि, बिड़ला ने ऐसा करने से परहेज़ किया है.

लोकसभा. (फोटो: पीटीआई)

17 जून 2019 को वर्तमान लोकसभा की बैठक के तुरंत बाद अध्यक्ष (स्पीकर) ओम बिड़ला चुने गए थे, लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद अभी भी ख़ाली है. नियमों के अनुसार, निर्वाचित स्पीकर को अपनी नियुक्ति के तुरंत बाद अपने डिप्टी के चुनाव की सूचना देनी चाहिए. हालांकि, बिड़ला ने ऐसा करने से परहेज़ किया है.

लोकसभा. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: लोकसभा में करीब चार साल से उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) की गैर-मौजूदगी केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच विवाद की ताजा वजह बन गई है.

जहां कांग्रेस ने दावा किया कि निचले सदन (लोकसभा) में डिप्टी स्पीकर का न होना ‘‘असंवैधानिक’ है, वहीं सरकारी सूत्रों ने कहा कि डिप्टी स्पीकर का न होना किसी भी तरह से सदन की कार्यवाही में बाधा नहीं डालता है और डिप्टी स्पीकर की कोई ‘तत्काल आवश्यकता’ नहीं है.

वर्तमान लोकसभा की पहली बैठक हुए करीब तीन साल सात महीने बीत चुके हैं. संविधान के अनुच्छेद 93 और 178 के अनुसार, सदन को जल्द से जल्द दो पीठासीन अधिकारियों का चुनाव करने की आवश्यकता है.

हालांकि, 17 जून 2019 को वर्तमान लोकसभा की बैठक के तुरंत बाद अध्यक्ष (स्पीकर) ओम बिड़ला चुने गए थे, लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद अभी भी खाली है.

नियमों के अनुसार, निर्वाचित स्पीकर को अपनी नियुक्ति के लगभग तुरंत बाद अपने डिप्टी के चुनाव की सूचना देनी चाहिए. हालांकि, बिड़ला ने ऐसा करने से परहेज किया है.

द वायर से बात करते हुए लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा कि माना जाता है कि बिड़ला ने डिप्टी स्पीकर चुनने का निर्णय लिया था, लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह केंद्र सरकार का निर्णय है, जो यह सुनिश्चित करता है कि डिप्टी स्पीकर चुना जाए.

उन्होंने कहा, ‘लोकसभा के नियमों के अनुसार स्पीकर, डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तारीख तय करते हैं. लेकिन वास्तव में यह सरकार है जो सभी दलों के साथ विचार-विमर्श करती है और डिप्टी स्पीकर की भूमिका के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार तय करती है.’

परंपरागत रूप से सरकार डिप्टी स्पीकर के पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार का समर्थन करती है. उदाहरण के लिए, शिरोमणि अकाली दल के चरनजीत सिंह अटवाल ने 2004-09 के दौरान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-1 के सत्ता में रहने के दौरान पद संभाला था.

इसी तरह 2009-14 के बीच भारतीय जनता पार्टी के करिया मुंडा डिप्टी स्पीकर थे. ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) के एम. थंबीदुरई ने नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान कुर्सी संभाली थी.

अपने दूसरे कार्यकाल में यह मोदी सरकार द्वारा एक विपक्षी सदस्य को बिड़ला के डिप्टी के रूप में नियुक्त नहीं करने और निचले सदन का नियंत्रण मजबूती से अपने हाथों में रखने का एक रणनीतिक कदम हो सकता है.

एक केंद्रीय मंत्री ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि डिप्टी स्पीकर के लिए ‘तत्काल आवश्यकता’ नहीं है, क्योंकि सदन की प्रक्रियाओं के अनुसार ‘विधेयक पारित किए जा रहे हैं और चर्चा हो रही है.’

हालांकि, मंत्री ने यह भी कहा कि बिड़ला की अनुपस्थिति में ‘नौ सदस्यों का एक पैनल है, जिसमें विभिन्न दलों से चयनित वरिष्ठ और अनुभवी लोग हैं, जो सदन चलाने के लिए अध्यक्ष की सहायता के लिए अध्यक्ष के रूप में कार्य कर सकते हैं.’

पैनल में भाजपा की रमा देवी, किरीट पी. सोलंकी और राजेंद्र अग्रवाल शामिल हैं; कांग्रेस के कोडिकुन्निल सुरेश; द्रविड़ मुनेत्र कषगम के ए. राजा; वाईएसआरसीपी से पीवी मिधुन रेड्डी; बीजू जनता दल के भर्तृहरि महताब; रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एनके प्रेमचंद्रन और तृणमूल कांग्रेस के काकोली घोष दस्तीदार शामिल हैं.

हालांकि, आचार्य अपने हालिया लेख में कहते हैं कि ऐसी धारणा बना दी गई है कि डिप्टी स्पीकर का कार्यालय अनिवार्य नहीं है, लेकिन कार्यालय का इतिहास तो कुछ और ही कहता है.

वह इस बात पर जोर देते हुए कि सदन चलाने के लिए स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, लिखते हैं, ‘डिप्टी स्पीकर के कार्यालय का इतिहास 1919 के भारत सरकार अधिनियम की याद दिलाता है, जब उन्हें डिप्टी प्रेसिडेंट कहा जाता था, क्योंकि स्पीकर को केंद्रीय विधानसभा के प्रेसिडेंट के रूप में जाना जाता था. हालांकि, एक डिप्टी स्पीकर का मुख्य कार्य स्पीकर की अनुपस्थिति में विधानसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना और चुनिंदा समितियों की अध्यक्षता करना आदि था, स्पीकर के साथ सदन चलाने की जिम्मेदारियों को साझा करने और नई समितियों का मार्गदर्शन करने के लिए इस पद को आवश्यक माना गया था.’

उन्होंने कहा कि डिप्टी स्पीकर के पास स्पीकर के समान शक्तियां होती हैं और स्पीकर की अनुपस्थिति में सदन के कामकाज के लिए जिम्मेदार एकमात्र संवैधानिक प्राधिकारी होता है.

वह लिखते हैं, ‘यह परंपरा आजादी के बाद भी जारी रही, जब संविधान सभा (विधायी) की बैठकों की अध्यक्षता के लिए स्पीकर के अलावा एक डिप्टी स्पीकर को चुना गया था. पहले स्पीकर जीवी मावलंकर और पहले डिप्टी स्पीकर एम. अनंतशयनम अयंगर थे, जिन्हें 3 सितंबर, 1948 को संविधान सभा (विधायी) द्वारा चुना गया था.

उन्होंने आगे कहा, ‘बाद में नए संविधान के तहत उन्हें 28 मई 1952 को लोकसभा का पहला डिप्टी स्पीकर चुना गया. उसके बाद से हर लोकसभा में एक डिप्टी स्पीकर होता था, जिसे स्पीकर के चुनाव के कुछ दिनों बाद चुना जाता था.’

हालांकि, कई अन्य उदाहरणों की तरह प्रधानमंत्री मोदी ने डिप्टी स्पीकर के चुनाव में भी परंपराओं का उल्लंघन किया है. आचार्य ने कहा कि सरकार के पास लोकसभा में डिप्टी स्पीकर के पद पर भाजपा सदस्य को चुनने का विकल्प भी है, लेकिन उसने पद को पूरी तरह से खाली रखना चुना है, जो कि आश्चर्यजनक है और एक बुरी मिसाल कायम करता है.

उन्होंने तर्क दिया कि विपक्षी सदस्यों में से कोई भी एक प्रस्ताव पेश कर सकता है, जिसमें स्पीकर से डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तारीख तय करने का अनुरोध किया जा सकता है, क्योंकि तकनीकी रूप से केवल स्पीकर के पास ही ऐसा करने की शक्ति है.

आचार्य ने कहा, ‘यह पहली बार है जब लोकसभा बिना डिप्टी स्पीकर के चलाई गई है.’

हालांकि, कांग्रेस सदस्यों ने कहा कि इस तरह के कई अनुरोधों को स्पीकर द्वारा पहले भी नजरअंदाज किया गया है. आदर्श तौर पर डिप्टी स्पीकर का चुनाव स्पीकर की नियुक्ति के एक सप्ताह के भीतर होना चाहिए, लेकिन इस मुद्दे को तीन साल से अधिक समय बीत चुका है.

कांग्रेस के मुख्य सचेतक कोडिकुन्निल सुरेश ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पार्टी के लोकसभा नेता अधीर रंजन चौधरी ने स्पीकर, संसदीय मामलों के मंत्री और यहां तक कि कार्य सलाहकार समितियों को खाली डिप्टी स्पीकर के पद के लिए कई याचिकाएं दी हैं, लेकिन सरकार ने उन्हें कोई कारण नहीं बताया.

हाल ही में एक ट्वीट में कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता जयराम रमेश ने भी इस मुद्दे को उठाया.

उन्होंने ट्वीट किया था, ‘पिछले चार वर्षों से लोकसभा में कोई उपसभापति नहीं है. यह असंवैधानिक है. वर्तमान स्थिति निराश करती है, क्योंकि एक समय था जब नेहरू ने विपक्षी अकाली दल के सांसद और नेहरू के आलोचक सरदार हुकम सिंह के नाम का प्रस्ताव इस पद के लिए रखा था और उन्हें सर्वसम्मति से चुन लिया गया था.’

इस मुद्दे को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में भी उठाया गया था, जब प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी परदीवाला ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और पांच अन्य विधानसभाओं- राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और मणिपुर को नोटिस जारी कर डिप्टी स्पीकर का चुनाव करने में उनकी विफलता पर जवाब मांगा है.

पीठ ने अनुच्छेद 93 और 178 का हवाला देते हुए केंद्र सरकार को याद दिलाया था कि डिप्टी स्पीकर का चुनाव अनिवार्य है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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