आईआईटी बॉम्बे में एससी/एसटी छात्रों की मानसिक समस्याओं के पीछे जातिगत पूर्वाग्रह हैं: सर्वे

आईआईटी बॉम्बे के एससी/एसटी छात्र प्रकोष्ठ द्वारा किए गए एक मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में कहा गया है कि संस्थान में एससी/एसटी छात्रों को कम क्षमतावान छात्रों के रूप में देखा जाता है. सर्वे में शामिल कई छात्रों ने बताया कि यहां अंग्रेज़ी में धाराप्रवाह होने या न होने से आपकी जाति की पहचान की जाती है.

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आईआईटी बॉम्बे. (फोटो साभार: फेसबुक)

आईआईटी बॉम्बे के एससी/एसटी छात्र प्रकोष्ठ द्वारा किए गए एक मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में कहा गया है कि संस्थान में एससी/एसटी छात्रों को कम क्षमतावान छात्रों के रूप में देखा जाता है. सर्वे में शामिल कई छात्रों ने बताया कि यहां अंग्रेज़ी में धाराप्रवाह होने या न होने से आपकी जाति की पहचान की जाती है.

आईआईटी बॉम्बे. (फोटो साभार: फेसबुक)

मुंबई: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के एससी/एसटी छात्र प्रकोष्ठ द्वारा जून में किए गए एक मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में पाया गया है कि कैंपस में आरक्षित श्रेणी के छात्रों द्वारा सामना की जाने वाली मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे जातिगत भेदभाव एक ‘मुख्य कारण’ है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि सर्वेक्षण में भाग लेने वाले अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लगभग एक-चौथाई छात्र मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे, जबकि उनमें से 7.5 प्रतिशत ने ‘गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना किया और उनमें खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति नजर आई.’

आईआईटी बॉम्बे में एससी/एसटी छात्र प्रकोष्ठ- जिसमें छात्र सदस्य और शिक्षक संयोजक के रूप में शामिल हैं – ने पिछले साल- फरवरी और जून में दो सर्वेक्षण किए थे. पहले सर्वेक्षण का उद्देश्य कैंपस में एससी/एसटी छात्रों के जीवन और उनके सामने आने वाली समस्याओं को समझने के लिए डेटा एकत्र करना था, जबकि दूसरा सर्वे आरक्षित श्रेणी के छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर केंद्रित था.

सर्वेक्षण संस्थान के सभी एससी/एसटी छात्रों (लगभग 2,000) को भेजा गया था, जिनमें से जिनमें से 388 ने फरवरी और 134 ने जून वाले सर्वेक्षण में भाग लिया था. दोनों सर्वेक्षणों के निष्कर्षों को संस्थान द्वारा आधिकारिक तौर पर जारी किया जाना बाकी है.

इस महीने की शुरुआत में संस्थान के प्रथम वर्ष के छात्र दर्शन सोलंकी की आत्महत्या से मौत पर संस्थान की अंतरिम रिपोर्ट में उनके परिवार द्वारा लगाए गए जातिगत भेदभाव के आरोपो को खारिज कर दिया था और दर्शन की आत्महत्या का कारण उनके बिगड़े अकादमिक प्रदर्शन और अंतर्मुखी स्वभाव को बताया था.

जून के सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्र आरक्षण के लांछन से बचने के लिए अपनी पहचान छिपाना पसंद करते हैं.

रिपोर्ट में बताया गया है कि सर्वे में शामिल हुए 9 फीसदी छात्रों ने जाति को अपनी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बताया. चार छात्र ऐसे भी थे जिन्होंने प्रोफेसरों के जातिवादी और भेदभावपूर्ण रवैये को उनकी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बताया.

साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि आईआईटी में एससी/एसटी छात्रों को कम क्षमतावान छात्रों के रूप में देखा जाता है.

पिछले साल फरवरी में की गई पहली सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘जाति अलग-अलग जगहों पर बहुत अलग तरह से काम करती है और अलग-अलग तरीकों से खुद को व्यक्त करती है.’ सर्वेक्षण दिखाता है कि लगभग एक चौथाई एससी/एसटी छात्र मातृभाषा, ग्रामीण और कमजोर सामाजिक-आर्थिक पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं. उनमें से कई ने कहा, ‘अंग्रेज़ी में धाराप्रवाह होना आपकी जाति पहचानने के मापदंडों में से एक है.’

वहीं, जून के सर्वेक्षण के निष्कर्षों में बताया गया है कि कम से कम ‘23.5 फीसदी उत्तरदाताओं पर संस्थान द्वारा उचित ध्यान देने की जरूरत है, जिसके लिए उन्हें आवश्यक मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है. ‘

सर्वे में यह भी पाया गया कि 22.2 प्रतिशत उत्तरदाता परिसर में मानसिक स्वास्थ्य पर सहायता प्रदान करने वाले एससी/एसटी प्रकोष्ठ और छात्र कल्याण केंद्र (एसडब्ल्यूसी) दोनों के बारे में आशंकित थे.

रिपोर्ट कहती है, ‘27.4 प्रतिशत एससी/एसटी छात्र चाहते हैं कि एसडब्ल्यूसी उनसे संपर्क न करे, लेकिन वे चाहते हैं कि केवल एससी/एसटी छात्र प्रकोष्ठ ही उनकी मदद करे.’ यह संस्थान में उपलब्ध मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में छात्रों की बीच अविश्वास की ओर इशारा करता है.

सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आईआईटी बॉम्बे ने एक बयान में कहा कि सर्वे के निष्कर्षों को अभी तक प्रशासन के साथ साझा नहीं किया गया है.

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