यूपी की जेलों में 75% से ज़्यादा क़ैदी अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी से हैं: सरकार

गृह मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि 2021 तक उत्तर प्रदेश में 90,606 विचाराधीन क़ैदी थे, जिनमें से 21,942 अनुसूचित जाति, 4,657 अनुसूचित जनजाति और 41,678 ओबीसी वर्ग के थे. एक अन्य प्रश्न के उत्तर में मंत्रालय ने यह भी बताया कि सज़ा पूरी होने के बाद जुर्माना राशि का भुगतान न करने के कारण 1,410 अपराधी देश की जेलों में बंद हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

गृह मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि 2021 तक उत्तर प्रदेश में 90,606 विचाराधीन क़ैदी थे, जिनमें से 21,942 अनुसूचित जाति, 4,657 अनुसूचित जनजाति और 41,678 ओबीसी वर्ग के थे. एक अन्य प्रश्न के उत्तर में मंत्रालय ने यह भी बताया कि सज़ा पूरी होने के बाद जुर्माना राशि का भुगतान न करने के कारण 1,410 अपराधी देश की जेलों में बंद हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने 2021 के आंकड़ों के हवाले से संसद में बताया है कि 2021 में उत्तर प्रदेश में बंद सभी विचाराधीन कैदियों में से 75 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के थे. एक अन्य प्रश्न के उत्तर में गृह मंत्रालय ने यह भी बताया कि सजा पूरी होने के बाद जुर्माना राशि का भुगतान न करने के कारण देश की जेलों में 1,410 अपराधी बंद हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, बहुजन समाज पार्टी के सांसद श्याम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश राज्य में मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे एससी, एसटी और ओबीसी कैदियों की जिलेवार संख्या के बारे में सवाल किया था.

जवाब में गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा ने बताया कि ‘2021 तक उत्तर प्रदेश में 90,606 विचाराधीन कैदी थे. इनमें से 21,942 अनुसूचित जाति, 4,657 अनुसूचित जनजाति और 41,678 ओबीसी वर्ग के थे.’

यादव ने यह भी पूछा था कि ‘क्या सरकार अवगत है कि जेलों में लगभग 76 प्रतिशत कैदी मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो चौंतीस प्रतिशत के वैश्विक औसत से अधिक है.’ उन्होंने इसकी वजह और इन संख्याओं को कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों के बारे में भी पूछा था.

उन्होंने यह भी पूछा था कि ‘क्या सरकार को पता है कि लॉकडाउन अवधि के बाद गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसके कारण जेलों में भीड़ बढ़ी है, जो संचारी रोगों के प्रसार के लिए जिम्मेदार है.’ और इसके साथ ही उन्होंने इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण भी मांगा था. .

इसके जवाब में, राज्यमंत्री ने उत्तर दिया कि ‘कारागारों/ उनमें बंद व्यक्तियों’ का विषय राज्य सूची के अंतर्गत आता है और इसलिए विचाराधीन कैदियों के मुद्दे पर उचित कदम उठाने की जिम्मेदारी संबंधित राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों की है.

उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय ने इस संबंध में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रयासों में सहयोग के लिए समय-समय पर कई पहल की हैं.

इस बीच, कांग्रेस सांसद अब्दुल खालिक ने देश में जेलों की क्षमता, विभिन्न राज्यों में बंद कैदियों की संख्या और बिना सजा के अपराध की सजा की अधिकतम अवधि जेलों में गुजार देने वाले लोगों की संख्या शामिल है. इसके जवाब में मंत्री ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक ‘प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया’ रिपोर्ट के लिए 31 दिसंबर, 2021 तक तैयार किए गए जेल के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि तब तक देश की जेलों में 1,410 अपराधी, उनकी सजा पूरी होने के बाद जुर्माना राशि का भुगतान नहीं करने के कारण बंद थे.

जवाब से यह भी पता चला कि कैदियों की सबसे अधिक संख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश (1,17,789), बिहार (66,879), मध्य प्रदेश (48,513), महाराष्ट्र (36,853), पंजाब (26,146) और पश्चिम बंगाल (25,769) थे. कुल मिलाकर, आंकड़ों से पता चला कि जेलों में अत्यधिक भीड़ थी क्योंकि सभी जेलों में कुल 5,54,034 कैदी थे, जबकि उनकी स्वीकृत क्षमता 4,25,609 कैदियों की थी.

हालांकि आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना और त्रिपुरा जैसे कुछ राज्य और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, लद्दाख, लक्षद्वीप और पुडुचेरी जैसे केंद्रशासित प्रदेश ऐसे थे जहां जेलों में बंदियों की संख्या उनकी स्वीकृत क्षमता से कम थी.

उल्लेखनीय है कि एनसीआरबी द्वारा जारी 2021 की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट में बताया गया था कि भारतीय जेलों में हिरासत में रखे गए क़ैदियों में मुसलमानों की संख्या उनकी आबादी के अनुपात से दो गुना अधिक है.

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