विनोद अडानी के संबंध में यू-टर्न लेते हुए अडानी समूह ने कहा, वह प्रमोटर समूह का हिस्सा हैं

हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने पर अडानी समूह की ओर से कहा गया था कि विनोद अडानी, समूह की किसी भी सूचीबद्ध संस्था या उसकी सहायक कंपनियों में कोई प्रबंधकीय पद नहीं रखते हैं और उनके दैनिक मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है. समूह की ओर से अब कहा गया है अडानी समूह और विनोद अडानी को एक माना जाना चाहिए.

गौतम अडानी और विनोद अडानी. (इलस्ट्रेशन: द वायर)

हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने पर अडानी समूह की ओर से कहा गया था कि विनोद अडानी, समूह की किसी भी सूचीबद्ध संस्था या उसकी सहायक कंपनियों में कोई प्रबंधकीय पद नहीं रखते हैं और उनके दैनिक मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है. समूह की ओर से अब कहा गया है अडानी समूह और विनोद अडानी को एक माना जाना चाहिए.

गौतम अडानी और विनोद अडानी. (इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: अडानी समूह ने बीते गुरुवार (16 मार्च) को अपने पहले के स्टैंड से पूरी तरह से यू-टर्न लेते हुए स्वीकार किया कि गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी विभिन्न सूचीबद्ध संस्थाओं के ‘प्रवर्तक (Promoter) समूह’ का हिस्सा है. इससे पहले समूह की ओर से कहा गया था कि विनोद अडानी सूचीबद्ध कंपनियों में कोई प्रबंधकीय पद नहीं रखते हैं.

अडानी समूह के खिलाफ अमेरिकी निवेश फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप लगाए जाने तक विनोद अडानी खुद को लो-प्रोफाइल (कम चर्चित) रखे हुए थे. हिंडनबर्ग ने यह दावा किया था कि उनके द्वारा नियंत्रित संस्थाओं को ‘मनी लॉन्ड्रिंग और शेयर-मूल्य में हेरफेर’ के रूप में इस्तेमाल किया गया था.

यहां तक ​​कि कुछ अन्य रिपोर्टों में आरोप लगाया गया कि कथित तौर पर साइप्रस के नागरिक विनोद अडानी ने अडानी समूह के विदेशी सौदों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस पर समूह ने कहा कि विनोद ने ‘समूह की किसी भी सूचीबद्ध संस्था या उनकी सहायक कंपनियों में कोई प्रबंधकीय पद नहीं रखा है और न ही दिन-प्रतिदिन के मामलों में उनकी कोई भूमिका है.’

अब समाचार चैनल सीएनबीसी-टीवी18 ने अपनी ​एक रिपोर्ट में बताया है कि एक बयान में कहा गया है कि अडानी समूह और विनोद अदानी को एकरूप में देखा जाना चाहिए.

समूह ने कहा, ‘हम यह बताना चाहते हैं कि गौतम अडानी और राजेश अडानी, अडानी समूह के भीतर विभिन्न सूचीबद्ध संस्थाओं के व्यक्तिगत प्रमोटर हैं और विनोद अडानी व्यक्तिगत प्रमोटरों के रिश्तेदार हैं.’

बिजनेस टुडे के अनुसार, समूह की ओर से कहा गया, ‘भारतीय नियमों के अनुसार विनोद अडानी, अडानी समूह के भीतर विभिन्न सूचीबद्ध संस्थाओं के ‘प्रवर्तक समूह’ का हिस्सा हैं. यह तथ्य विभिन्न प्रकटीकरणों में समय-समय पर भारतीय नियामक प्राधिकरणों को प्रस्तुत किया गया है.’

कंपनी द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट की एक रिपोर्ट का जवाब दे रही थी, जिसमें कहा गया था कि अडानी समूह अंबुजा सीमेंट्स और एसीसी का मालिक नहीं है और यह कि सीमेंट कंपनियां उन संस्थाओं के स्वामित्व में हैं, जो विनोद अडानी द्वारा नियंत्रित हैं.

समूह ने पिछले साल भारत में स्विस स्थित होल्सिम के सीमेंट व्यवसायों – अंबुजा सीमेंट्स और एसीसी लिमिटेड – का अधिग्रहण 10.5 बिलियन डॉलर (लगभग 85,000 करोड़ रुपये) में किया था. यह समूह का अब तक का सबसे बड़ा अधिग्रहण था.

इस सौदे ने अडानी समूह को आदित्य बिड़ला समूह के अल्ट्राटेक सीमेंट के बाद भारतीय बाजार में दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक खिलाड़ी बना दिया था.

समूह ने होल्सिम ग्रुप की दो सीमेंट कंपनियों को खरीदने के लिए एंडेवर ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट लिमिटेड नामक कंपनी का इस्तेमाल किया था. द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट की रिपोर्ट के अनुसार, मॉरीशस स्थित इस इकाई का स्वामित्व विनोद अडानी के पास है.

यह बात महत्वपूर्ण है कि हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर ऑफशोर टैक्स हेवन के अनुचित उपयोग का आरोप लगाया था. बीते 24 जनवरी की अपनी रिपोर्ट में इसने कम से कम 151 बार विनोद अडानी का उल्लेख किया था. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि उनके द्वारा नियंत्रित संस्थाओं को ‘मनी लॉन्ड्रिंग और शेयर-मूल्य में हेरफेर’ के लिए इस्तेमाल किया गया था.

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है कि विनोद अडानी ‘ऑफशोर शेल कंपनियों की एक विशाल शृंखला का प्रबंधन करते हैं’, जिन्होंने ‘सामूहिक रूप से सौदों की प्रकृति के आवश्यक प्रकटीकरण के बिना भारतीय अडानी समूह की सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध और निजी संस्थाओं में अरबों डॉलर स्थानांतरित किए हैं.’

बिजनेस स्टैंडर्ड ने बीते 17 फरवरी को अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि अडानी समूह जिस तरह से संबंधित पक्ष के लेन-देन का संचालन करता है, वह समूह पर हिंडनबर्ग की तीखी रिपोर्ट का हिस्सा है. अडानी ने तब संबंधित पार्टी लेन-देन पर आरोपों को ‘झूठ’ के रूप में खारिज कर दिया था.

ये ऐसे लेन-देन हैं, जो एक कंपनी, मालिक या बहुसंख्यक शेयरधारक से संबंधित संस्थाओं के साथ करती है, जिसे प्रमोटर भी कहा जाता है. वे आवश्यक हैं, जब समूह की कंपनियां कच्चे माल या प्रौद्योगिकी जैसी व्यावसायिक आवश्यकताओं की स्रोत हों.

अखबार ने बताया कि शेयर बाजार नियामक संबंधित पक्ष के लेन-देन में अनियमितताओं की जांच करता है, लेकिन प्राथमिकताएं अध्यक्ष पर निर्भर करती हैं.

अखबार के अनुसार, ‘पूर्व अध्यक्ष जीएन बाजपेयी के कार्यकाल के दौरान भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) का ध्यान इस सदी की शुरुआत में बाजार में हेरफेर के मामलों पर केंद्रित था. सेबी की मौजूदा चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच का आंकड़ा अ​भी उपलब्ध नहीं है.’

हालांकि सेबी आरोपों की जांच कर रहा है, लेकिन उसने कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है. विनोद अडानी को लेकर अडानी ग्रुप के यू-टर्न पर भी उसने कोई टिप्पणी नहीं की है.

इसके अलावा कंपनी में विनोद अडानी की भूमिका पर अडानी समूह की पूरी तरह से विपरीत प्रतिक्रियाएं न केवल संदेह पैदा करती हैं, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कॉरपोरेट गवर्नेंस को अगर महत्वपूर्ण माना जाता है तो यह भी गंभीर चिंता का विषय है. सेबी ने अडानी समूह में किसी कॉरपोरेट गवर्नेंस पर कोई सवाल नहीं उठाया है.

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस मामले पर एक ट्वीट में कहा है, ‘अडानी समूह ने जनवरी में कहा था- ‘विनोद अडानी समूह की किसी भी सूचीबद्ध संस्था या उनकी सहायक कंपनियों में कोई प्रबंधकीय पद नहीं रखते हैं और उनके दैनिक मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है.’ आज वह कह रहा है कि ‘विनोद अडानी अडानी समूह के भीतर विभिन्न सूचीबद्ध संस्थाओं के ‘प्रवर्तक समूह’ का हिस्सा हैं.’

हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद से गौतम अडानी के साथ कथित घनिष्ठ संबंधों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने वाले विपक्षी नेताओं ने भी अडानी समूह के नवीनतम स्वीकारोक्ति पर निशाना साधा है.

बीते 15 मार्च को विपक्षी सांसदों ने मांग की कि वित्त संबंधी संसद की स्थायी समिति अडानी समूह को लेकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट और उसके निष्कर्षों के संबंध में सेबी प्रमुख और आरबीआई के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को तलब करे.

समाचार एजेंसी एएनआई ने सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि हालांकि सत्तारूढ़ भाजपा के सांसदों ने कहा कि यह मामला न्यायालय में है, इसलिए समिति इस मामले पर चर्चा नहीं कर सकती.

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