सरकार ने संसद में कहा- राष्ट्रीय एनआरसी पर अब तक कोई निर्णय नहीं

संसद में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को तैयार करने पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

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(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

संसद में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को तैयार करने पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने संसद को बताया है कि राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को तैयार करने पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है, जबकि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और जनगणना- 2021 के पहले चरण को अपडेट करने का काम कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था.

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी के एनआरसी, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनपीआर को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में यह जानकारी दी.

गौरतलब है कि अब तक केवल असम में एनआरसी को अपडेट किया गया है. वर्ष 2019 में एनआरसी की अंतिम सूची जारी की गई थी और 3.3 करोड़ आवेदनों में से 19.06 लाख लोगों को इस सूची से बाहर कर दिया गया था. हालांकि, राज्य सरकार एनआरसी की अंतिम सूची आने के बाद से इसे ‘त्रुटिपूर्ण’ बताते हुए नकारती रही है.

उधर, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 में लाया गया था, जिसके बाद बाद देश के विभिन्न हिस्सों में एनआरसी, एनपीआर और सीएए के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे और इन्हीं विरोध प्रदर्शनों के बीच फरवरी 2020 की शुरुआत में दिल्ली में दंगे हुए थे.

हालांकि, केंद्र सरकार ने आज तक सीएए के लिए नियम तैयार नहीं किए हैं. बीते जनवरी महीने में गृह मंत्रालय ने इस अधिनियम के प्रावधान तैयार करने के लिए सातवीं बार समय विस्तार मांगा है.

जनवरी 2020 में गृह मंत्रालय ने अधिसूचित किया था कि यह अधिनियम 10 जनवरी 2020 से लागू होगा, लेकिन उसने बाद में राज्यसभा और लोकसभा में अधीनस्त विधान संबंधी संसदीय समितियों से नियमों के क्रियान्वयन के लिए कुछ और समय देने का अनुरोध किया, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण देश एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा था.

सीएए के तहत मोदी सरकार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार रह चुके उन गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई) को भारतीय नागरिकता प्रदान करना चाहती है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे.

बता दें कि इस क़ानून के बनने के बाद देश भर में महीनों तक विरोध प्रदर्शनों का दौर चला था, जो कोविड-19 महामारी के कारण थम गया. क़ानून को आलोचकों द्वारा मुस्लिम विरोधी और असंवैधानिक बताया जाता रहा है.

मई 2021 में केंद्र सरकार ने उपरोक्त तीन देशों के हिंदू, मुस्लिम, जैन, पारसी, ईसाई और बौद्ध समुदाय के लोगों को, जो भारत के 13 जिलों में रह रहे हैं, को देश की नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति दी थी. हालांकि, आवेदन नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत मांगे गए थे क्योंकि संशोधित अधिनियम से संबंधित नियमों को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.

पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकांश हिस्सों को इस अधिनियम से छूट दी गई है. संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों और अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड और मणिपुर में यह कानून लागू नहीं होगा.

राष्ट्रव्यापी एनआरसी को लेकर सरकार की पसोपेश

उल्लेखनीय है कि 2019 और 2020 में राष्ट्रव्यापी एनआरसी को लेकर हुई व्यापक आलोचना और विरोध प्रदर्शनों के बाद नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार इसे लेकर पांव पीछे खींचते नजर आई है.

एक तरफ चुनावी रैलियों में मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री ‘एनआरसी लाकर घुसपैठियों’ को निकालने की बात कहते रहे हैं, वहीं मौजूदा सत्र से पहले मार्च 2022, अगस्त 2021मार्च 2021 और फरवरी 2020 में भी यही मोदी सरकार संसद में कह चुकी है कि इसने राष्ट्रव्यापी एनआरसी पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है.

बता दें कि 22 दिसंबर 2019 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पिछले पांच सालों की उनकी सरकार में एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं हुई है. तब उन्होंने कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों पर लोगों में भ्रम पैदा करने का आरोप लगाया था.

रामलीला मैदान में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने देश भर में एनआरसी लागू करने की बात खारिज करते हुए कहा, ‘मैं देश के 130 करोड़ भारतीयों को बताना चाहता हूं कि 2014 से लेकर अब तक में कहीं भी ‘एनआरसी’ शब्द पर चर्चा नहीं हुई है. ये सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर असम में किया गया है.’

उन्होंने कहा था, ‘पहले ये तो देख लीजिए, एनआरसी पे कुछ हुआ भी है क्या? झूठ चलाए जा रहे हैं. मेरी सरकार आने के बाद, 2014 से आज तक, मैं ये सच 130 करोड़ लोगों के लिए कहना चाहता हूं, कहीं पर भी एनआरसी शब्द पर कोई चर्चा नहीं हुई है. कोई बात नहीं हुई है.’

हालांकि, द वायर  के फैक्ट चेक में नरेंद्र मोदी के दावे में सच्चाई नहीं मिली थी और ये तथ्यों की बुनियाद पर खरे नहीं उतरे थे.

इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावी रैलियों से लेकर संसद तक में कई बार कहा था कि पूरे देश में एनआरसी लागू किया जाएगा. साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा में अपने घोषणापत्र में वादा किया कि अलग-अलग चरणों में देश भर में एनआरसी लागू किया जाएगा.

2019 में झारखंड में चुनावी सभा के दौरान अमित शाह ने देश भर में एनआरसी लागू करने की बात दोहराई थी. उन्होंने कहा था, ‘मैं आपको बता रहा हूं कि जब 2024 में वे (कांग्रेस) वोट मांगने के लिए आएंगे, उस समय तक भाजपा पूरे देश में एनआरसी लागू कर चुकी होगी और सभी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकाल चुकी होगी.’

नौ दिसंबर 2019 को नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर लोकसभा में चर्चा के दौरान अमित शाह ने स्पष्ट रूप से कहा था कि भारत में एनआरसी लागू किया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘हमें एनआरसी के लिए कोई पृष्ठभूमि तैयार करने की जरूरत नहीं है. हम पूरे देश में एनआरसी लाएंगे. एक भी घुसपैठिया छोड़ा नहीं जाएगा.’

शाह के अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी सार्वजनिक रूप से कहा है कि पूरे देश में एनआरसी लागू किया जाएगा.

क्या है एनपीआर 

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) में देश के नागरिकों का बायोमीट्रिक रजिस्टर तैयार किया जाना है. इसे दिसंबर 2019 में कैबिनेट की मंजूरी मिली थी, लेकिन इसकी प्रक्रिया को कोविड महामारी के चलते स्थगित कर दिया गया था.

इसके आलोचक इसे एनआरसी को लेकर उठे विवाद से भी जोड़ते हैं.

नागरिकता कानून, 1955 तथा नागरिकता नियम, 2003 के तहत एनपीआर पहली बार 2010 में तैयार किया गया था. आधार से जोड़े जाने के बाद  2015 में इसे अपडेट किया गया था.

बताया गया था कि इस बार एनपीआर की प्रक्रिया में लोगों को अपने माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान बताना होगा, जो पिछले एनपीआर में नहीं पूछा जाता था. यह पहलू एनआरसी लाए जाने के संदर्भ में महत्वपूर्ण है.

सूत्रों के अनुसार, एनपीआर अपडेट करने के लिए 21 बिंदुओं की जानकारी चाहिए होगी. इसमें माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान, पिछले निवासस्थान, पैन नंबर, आधार (स्वैच्छिक) वोटर आईडी कार्ड नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर और मोबाइल नंबर शामिल होगा.

2010 में हुए पिछले एनपीआर में 15 बिंदुओं की जानकारी मांगी गई थी. इन 15 में  माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान, पिछले निवासस्थान, पासपोर्ट नंबर, आधार, पैन, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी और मोबाइल नंबर शामिल नहीं थे. साथ ही इस बार माता-पिता के नाम और जीवनसाथी के नाम को एक ही बिंदु में शामिल कर दिया गया है.

बीते साल नवंबर में सामने आई केंद्रीय गृह मंत्रालय की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट में एनपीआर के डेटाबेस को अपडेट करने की जरूरत को रेखांकित किया गया था.

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