केंद्र के सरकारी कर्मियों को विरोध प्रदर्शन से रोकने वाले निर्देश की आलोचना में ट्रेड यूनियन

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा हाल ही में जारी एक सर्कुलर में केंद्र सरकार के सभी विभागों के सचिवों को निर्देश दिया गया है कि विरोध प्रदर्शन समेत किसी भी रूप में हड़ताल पर जाने वाले कर्मचारियों के ख़िलाफ़ वेतन में कटौती के अलावा अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा हाल ही में जारी एक सर्कुलर में केंद्र सरकार के सभी विभागों के सचिवों को निर्देश दिया गया है कि विरोध प्रदर्शन समेत किसी भी रूप में हड़ताल पर जाने वाले कर्मचारियों के ख़िलाफ़ वेतन में कटौती के अलावा अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: वामपंथी ट्रेड यूनियनों, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के एक हालिया सर्कुलर की निंदा की है, जिसमें केंद्र सरकार के सभी विभागों के सचिवों को निर्देश दिया गया था कि विरोध प्रदर्शन समेत किसी भी रूप में हड़ताल पर जाने वाले कर्मचारियों के खिलाफ वेतन में कटौती के अलावा अनुशासनात्मक कार्रवाई करें.

पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग करते हुए कर्मचारियों ने हाल ही में यहां एक विरोध मार्च भी निकाला था, इस मांग को लोक सेवकों का भी समर्थन हासिल हुआ था.

द हिंदू के मुताबिक, सीटू ने कहा कि सर्कुलर केंद्र के अहंकार को दर्शाता है और निर्देशों को तत्काल रद्द करने की मांग की. इसके महासचिव तपन सेन ने कहा कि आदेश में कर्मचारियों को किसी भी विरोध प्रदर्शन में भाग लेने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है.

उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार अपनी श्रमिक विरोधी नीतियों के लिए जानी जाती है और इस तरह का निर्देश केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों के बढ़ते विरोध पर कार्रवाई करने का एक कदम है.

सेन ने कहा, ‘विशेष तौर पर सरकारी कर्मचारियों के नई पेंशन योजना (एनपीएस) को खत्म करने का आग्रह करते हुए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली के लिए संगठित विरोध प्रदर्शनों और आंदोलन का व्यापक होना, धीरे-धीरे मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारों के लिए एक राजनीतिक चुनौती बनता जा रहा है. इसलिए इस प्रकार की हताशा ने सरकारी कर्मचारियों द्वारा सभी प्रकार के लोकतांत्रिक विरोधों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाले अहंकार को जन्म दिया है.’

एआईटीयूसी की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि निर्देश कठोर और प्रतिशोधी है. उन्होंने कहा, ‘इसके कार्यान्वयन के 19 वर्षों के बाद एनपीएस पूरी तरह से उजागर हो गई है और हर महीने अपने वेतन से 10 प्रतिशत योगदान देने के बाद भी कर्मचारियों को सिर्फ 2,000 से 3,000 रुपये पेंशन के रूप में मिल रहे हैं. सरकारी कर्मचारियों को इस अन्याय और भेदभाव के खिलाफ लड़ने का पूरा अधिकार है. मोदी सरकार ने 20 मार्च को आदेश जारी कर एक बार फिर अपने ही कर्मचारियों के प्रति अपना क्रूर चेहरा दिखाया है और कर्मचारियों को किसी भी एनपीएस विरोधी आंदोलन में भाग लेने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी है.’

निर्देश में कहा गया था कि कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने का अधिकार देने वाला कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है. इसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कई निर्णयों में सहमति व्यक्त की है कि हड़ताल पर जाना आचरण नियमों के तहत एक गंभीर कदाचार है और सरकारी कर्मचारियों द्वारा किए गए इस कदाचार से कानून के अनुसार निपटा जाना आवश्यक है.

कौर ने कहा, ‘विरोध प्रदर्शन समेत किसी भी रूप में हड़ताल पर जाने वाले किसी भी कर्मचारी को परिणाम भुगतने होंगे, जिसमें वेतन में कटौती के अलावा उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई भी शामिल हो सकती है.’

ज्ञात हो कि यह सर्कुलर ओपीएस बहाली को लेकर होने वाले प्रदर्शन से ऐन पहले सामने आया था.

उल्लेखनीय कि पुरानी पेंशन योजना के तहत कर्मचारियों को एक निश्चित पेंशन मिलती है. इसके तहत कर्मचारी को अंतिम वेतन की 50 प्रतिशत राशि पेंशन के रूप में मिलने का प्रावधान है. हालांकि पेंशन की राशि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत अंशदायिता वाली होती है जो 2004 से प्रभाव में है.

साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने ओपीएस को बंद करने का फैसला करते हुए न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) की शुरुआत की थी. एक अप्रैल, 2004 से केंद्र सरकार की सेवा (सशस्त्र बलों को छोड़कर) में शामिल होने वाले सभी नए कर्मचारियों पर लागू होने वाली यह योजना एक भागीदारी योजना है, जहां कर्मचारी सरकार के साथ मिल-जुलकर अपने वेतन से पेंशन कोष में योगदान करते हैं.

पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों ने एनपीएस लागू किया था. बीते साल हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में ओपीएस एक प्रमुख चुनावी मुद्दे के रूप में उभरा था. दिसंबर 2022 में केंद्र सरकार ने बताया था कि इसकी ओपीएस बहाल करने की कोई योजना नहीं है. अब तक पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड की सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की बात कही है.

हालांकि, समय-समय पर कई कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए प्रदर्शन करते रहे हैं. नवंबर 2022 में केंद्र सरकार के कर्मचारी यूनियन के एक महासंघ ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग करते हुए कैबिनेट सचिव को लिखे पत्र में कहा था कि नई पेंशन योजना सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए बुढ़ापे में आपदा के समान है.

बीते सप्ताह महाराष्ट्र में सरकारी कर्मचारियों ने इसे लेकर हड़ताल की थी, जहां राज्य के करीब 17 लाख कर्मचारी ओपीएस की बहाली की मांग को लेकर हड़ताल पर चले गए थे. इसमें शिक्षक, सरकारी अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ भी शामिल थे.

ख़बरों के अनुसार, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ हुई बैठक में सरकार द्वारा ओपीएस के समान लाभ देने के आश्वासन के बाद कर्मचारियों ने सोमवार को हड़ताल वापस ली है.

इससे पहले फरवरी महीने में हरियाणा में सरकारी कर्मचारियों ने ओपीएस की बहाली के लिए प्रदर्शन किया था. मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर पहले ही ओपीएस की बहाली से इनकार कर चुके हैं. राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और ओपीएस एक बड़े मुद्दे के तौर पर उभर सकता है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, दोनों ही सत्ता में वापस आने पर ओपीएस को बहाल करने की बात कह चुकी हैं.

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