डीयू और पीजीआई चंडीगढ़ के अधिकारियों का ‘कर्तव्यबोध’ और देश के शैक्षणिक संस्थानों का हाल

राहुल गांधी के डीयू के हॉस्टल जाकर छात्रों से मिलने के लिए उन्हें 'अव्यवस्था' का हवाला देते हुए नोटिस भेजा गया है. वहीं, पीजीआई चंडीगढ़ ने अपने एक हॉस्टल की छात्राओं को इसलिए दंडित किया है कि वे नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम 'मन की बात' की 100वीं कड़ी के सामूहिक श्रवण आयोजन से अनुपस्थित रहीं.

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डीयू के हॉस्टल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी. (फोटो साभार: ट्विटर/@shaandelhite)

राहुल गांधी के डीयू के हॉस्टल जाकर छात्रों से मिलने के लिए उन्हें ‘अव्यवस्था’ का हवाला देते हुए नोटिस भेजा गया है. वहीं, पीजीआई चंडीगढ़ ने अपने एक हॉस्टल की छात्राओं को इसलिए दंडित किया है कि वे नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 100वीं कड़ी के सामूहिक श्रवण आयोजन से अनुपस्थित रहीं.

डीयू के हॉस्टल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी. (फोटो साभार: ट्विटर/@shaandelhite)

दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकारियों के कर्तव्यबोध से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा सकता कि वे राहुल गांधी तक को बिना उनसे पूछे विश्वविद्यालय के छात्रावास में जाने के लिए चेतावनी की नोटिस जारी कर सकते हैं. मात्र कर्तव्यबोध नहीं, बल्कि उनके चौकन्नेपन के लिए भी.

वे सावधान हैं, विश्वविद्यालय में कहां क्या हो रहा है, इसकी खबर वे रखते हैं. यह भी कि अपने कर्तव्य के निर्वाह में किसी की हैसियत की परवाह नहीं करते. वे किसी से डरते नहीं, निष्पक्ष हैं, इसके लिए इससे बड़ा सबूत आपको क्या चाहिए कि वे राहुल गांधी जैसे ‘शाही परिवार’ के राजकुमार को डांटकर कह सकते हैं कि उनकी यह मजाल कि वे विश्वविद्यालय परिसर में बिना उनसे पूछे घुस आएं!

संदर्भ यह है कि अभी कुछ रोज़ पहले राहुल गांधी बिना किसी पूर्व प्रचार के दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजी मेन्स हॉस्टल में दोपहर के खाने के वक्त आए. तस्वीरों और वीडियो में राहुल गांधी अपनी गाड़ी से उतरकर हॉस्टल में घुसते दिखलाई पड़ते हैं. उनके इर्द-गिर्द कोई भीड़ नहीं है, उनके अपने सुरक्षाकर्मी भी ऐसे और इतने नहीं कि कोई उनके क़रीब न आ सके.

बाद की तस्वीरों में वे हॉस्टल की थाली में खाना खाते दिख रहे हैं. उनके आसपास छात्र हैं और वे भी अपना खाना खा रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि वे आपस में खुलकर बात कर रहे हैं. राहुल के गाल पर मुस्कुराहट के साथ गहरा हो जाने वाला वह गड्ढा भी है जिससे आप उनकी उम्र को लेकर धोखा खा जाएं.

हर पल की खबर अगले ही पल सारे संसार तक पहुंच जाने वाले इस ज़माने में राहुल गांधी के इस हॉस्टल भ्रमण के बारे में इससे अधिक कुछ न मालूम हो सका कि उन्होंने छात्रों के साथ खाना खाया और कोई 40 मिनट उनके साथ गपशप की. राहुल गांधी के दल की तरफ़ से भी इसके बारे में कोई प्रचारात्मक सामग्री प्रसारित नहीं हुई. खुद राहुल ने अपनी तरफ़ से भी इसका को ढोल नहीं पीटा.

कुछ लोगों ने लिखा कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों से भी उन्होंने बातचीत की. लेकिन बातचीत क्या हुई, राहुल से छात्रों ने क्या कहा और वे क्या बोले, इसके बारे में हमें कुछ मालूम नहीं. यानी राहुल गांधी इसे सिर्फ़ उस हॉस्टल के छात्रों और अपने बीच की मुलाक़ात रखना चाहते थे. यह कतई मुमकिन था कि मोबाइल के ज़रिये ही उसका विश्वभर में प्रसारण किया जाता. लेकिन यह नहीं किया गया जिसके मायने यही हैं कि राहुल इस भेंट को नितांत स्थानीय रखना चाहते थे.

अगर राहुल गांधी के हॉस्टल जाने से किसी को थोड़ी भी असुविधा हुई होती तो यह मुमकिन नहीं कि वह तुरत खबर न बन जाती. लेकिन यह नहीं हुआ. क्या किसी छात्र को उनके आने की वजह से खाना नहीं मिला या उनके पढ़ने लिखने में बाधा पड़ी? इस ट्विटर युग में यह सब कुछ उसी समय दुनिया को बतला दिया जाता, अगर ऐसा हुआ होता. ख़ासकर इसलिए कि यह राहुल गांधी से जुड़ी खबर थी और ऐसा करके उन्हें और बदनाम किया  सकता था.

तो राहुल गांधी का पीजी मेन्स हॉस्टल आना और वहां से जाना कोई राष्ट्रीय समाचार नहीं बना. ख़बर तब बनी जब अगले दिन एक विश्वविद्यालय अधिकारी ने राहुल गांधी के हॉस्टल आने पर ऐतराज़ जतलाया. उनके मुताबिक़, बिना उनसे पूछे उनका हॉस्टल आना अनुचित था, नियम विरुद्ध था, परिसर या हॉस्टल सार्वजनिक जगहें नहीं हैं, सुरक्षित स्थान हैं और वहां आवागमन अनियंत्रित नहीं हो सकता.

उन्हें चिंता थी कि एक इतने बड़े क़द का नेता जिसकी सुरक्षा आवश्यक है, इस प्रकार हॉस्टल में आ जाए तो अव्यवस्था ही सकती है. उन्होंने कहा कि वह छात्रों के खाने का वक्त था. उनको बड़ी परेशानी हुई. उन्हें ऐसी शिकायतें मिली हैं. राहुल गांधी ने ऐसा करके बहुत ग़ैरज़िम्मेदाराना काम किया. छात्रों को असुरक्षित कर दिया. कुछ भी हो सकता था!

लेकिन सिर्फ़ बयान से क्या होगा! तब अधिकारियों ने सोचा कि राहुल गांधी को नोटिस भेजा जाए कि जवाब दें कि उन्होंने यह क्यों किया. इससे कि वे राहुल गांधी से वैसे ही पेश आ रहे हैं जैसे किसी दूसरे मामूली आदमी से आते. इससे बाक़ी लोग भी समझ जाएंगे कि उन्हें इस प्रकार परिसर में अनधिकृत नहीं घुस आना चाहिए.

कुछ लोग कहते हैं कि राहुल गांधी भी तो यही कह रहे हैं. वे भारत के साधारण नागरिक हैं. अब सांसद भी नहीं. हां! विपक्षी कांग्रेस पार्टी के नेता हैं और लोग उन्हें जानते हैं. भारत  किसी भी साधारण नागरिक को जो अधिकार है, वह उन्हें भी है. वे कहीं भी आ जा सकते हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय हो या कोई और जगह, वहां आने का उनका अधिकार है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के परिसर में घुसने के पहले किसी से अनुमति लेने का नियम अब तक नहीं है. हॉस्टल में भी कोई भी किसी से मिलने जा सकता है. हां! हॉस्टल में आकर कोई ग़ैर क़ानूनी काम न करे. क्या छात्रों से मिलना, उनके साथ खाना अव्यवस्था फैलाना है?

ऐसे लोगों का कहना है कि मामला वह नहीं जैसा अधिकारी पेश कर रहे हैं. यह इससे मालूम होता है कि विश्वविद्यालय अधिकारी ने कहा कि राहुल गांधी के आसपास जो दिख रहे हैं,  वे छात्र नहीं, हॉस्टल के निवासी नहीं, एनएसयूआई के लोग थे, बाहरी लोग थे.

ऐसे आलोचकों के अनुसार, यह प्रकरण उतना ही हास्यास्पद है जितना चंडीगढ़ के पीजीआई के अधिकारियों द्वारा अपने एक हॉस्टल की छात्राओं को दंडित करने का प्रकरण क्योंकि वे अप्रैल के आख़िरी इतवार को नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 100वीं कड़ी के प्रसारण के सामूहिक श्रवण के आयोजन से अनुपस्थित रहीं. प्रायः हर संस्था ने अपने यहां के कर्मचारियों, छात्रों, अध्यापकों को बाध्य किया था कि वे नरेंद्र मोदी से वफ़ादारी के इस सार्वजनिक प्रदर्शन में शामिल हों.

जो लोग विश्वविद्यालय अधिकारियों पर विश्वास नहीं रखते वे कह रहे हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकारी यह बतलाना चाह रहे हैं कि वे भी राहुल गांधी को अपमानित करने में कम उत्साह नहीं रखते. इससे शायद वहां उनके नंबर बढ़ जाएं, जहां उनका हिसाब रखा जा रहा है. वे कहते हैं कि विश्वविद्यालय सरकारी इदारा नहीं है. छात्र कोई नाबालिग नहीं और वे उनके अभिभावक नहीं.

ऐसे आलोचकों का सवाल है कि हमने कई बार परिसर में एकमात्र राष्ट्रवादी छात्र संगठन के लोगों को दूसरे संगठनों के छात्रों पर हमला करते, हिंसा करते देखा है. कभी नहीं सुना कि जितनी तत्परता से राहुल गांधी को नोटिस जारी किया गया, वैसा कुछ उस राष्ट्रवादी संगठन के साथ भी किया गया हो.

विश्वविद्यालय अब नियमित रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छोटे बड़े प्रचारकों को आधिकारिक रूप से बुलाया करता है. मानो विश्वविद्यालय की आधिकारिक विचारधारा हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद हो. अधिकारी यह नहीं सोचते कि इस विश्वविद्यालय में मुसलमान, ईसाई भी पढ़ते और काम करते हैं, जिन्हें भारत में दूसरे दर्जे पर धकेलने के लिए आरएसएस और उसके संगठन लगातार लगे हुए हैं. उन्हें सम्मानपूर्वक आमंत्रित करने से इन छात्रों को जो मनोवैज्ञानिक यातना होती है, उसके लिए उन्हें कौन पाबंद करेगा?

हमें छात्रों ने ही बतलाया कि परिसर में आरएसएस की शाखा लगा करती है. क्या उसके लिए अनुमति दी गई है? अगर हां! तो यह चिंता का विषय ज़रूर है क्योंकि उन शाखाओं से भारत के अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस करते हैं.

हमारे आज के विश्वविद्यालय अधिकारियों को यह याद करना चाहिए कि वे विश्वविद्यालय एक खुली जगह है, इसमें तरह तरह के विचार व्यक्त किए जाएंगे और सुने भी जाएंगे. छात्र वयस्क हैं, किस राजनेता से उन्हें मिलना चाहिए, यह वे तय कर सकते हैं. सत्ता पक्ष के नेताओं को ही परिसर में आने का हक़ नहीं, शेष को भी है.

दिल्ली विश्वविद्यालय और पीजीआई के इन दो प्रकरणों से मालूम होता है कि भारत के शिक्षा संस्थानों को उनके अधिकारी सरकार और आरएसएस की शाखा में तब्दील कर रहे हैं. वे कह रहे हैं कि यहां एक ही स्वर को अनुमति है. लेकिन भारत के लंबे जनतांत्रिक अभ्यास के कारण उनके युवा नागरिक यह होने देंगे, इसमें संदेह है.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)

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