पुणे: सहपाठी के निष्कासन के ख़िलाफ़ अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर एफटीआईआई विद्यार्थी

पुणे स्थित भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान के छात्र 2020 के बैच से कथित तौर पर निकाले गए एक छात्र की बहाली की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि निष्कासित छात्र मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के चलते इलाज़रत था, इसलिए कक्षाओं में शामिल नहीं हो सका और संस्थान उसे सेमेस्टर रिपीट करने को कह रहा है.

पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान का प्रवेश द्वार. (फोटो साभार: ट्विटर)

पुणे स्थित भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान के छात्र 2020 के बैच से कथित तौर पर निकाले गए एक छात्र की बहाली की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि निष्कासित छात्र मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के चलते इलाज़रत था, इसलिए कक्षाओं में शामिल नहीं हो सका और संस्थान उसे सेमेस्टर रिपीट करने को कह रहा है.

पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान का प्रवेश द्वार. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: पुणे में भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के तीन छात्रों द्वारा शुरू की गई अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल तीसरे दिन में प्रवेश कर गई है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, वे 2020 बैच से कथित रूप से हटाए गए एक छात्र की बहाली की मांग कर रहे हैं. प्रदर्शनकारी छात्रों को एफटीआईआई छात्रसंघ का समर्थन मिला है, जबकि 2020 बैच के 43 छात्रों ने भी अपनी कक्षाओं का बहिष्कार किया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि संस्थान के प्रशासन ने कहा है कि छात्र को ‘खराब अकादमिक रिकॉर्ड’ और ‘बहुत कम’ उपस्थिति के चलते एक सेमेस्टर रिपीट करने (दोहराने) के लिए कहा गया था, लेकिन छात्रों ने इस दावे में विसंगतियां होने की बात कही है.

प्रदर्शनकारियों ने इस अख़बार को बताया कि उक्त छात्र का पिछले एक साल से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का इलाज चल रहा था और वह सभी कक्षाओं में शामिल होने में असमर्थ था.

प्रदर्शनकारी छात्रों में से एक ने बताया, ‘उसने अपना असाइनमेंट पूरा कर लिया था और 50 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए थे.लेकिन हमारे क्रेडिट सिस्टम के साथ समस्या यह है कि अंक व्यवस्था (मार्किंग सिस्टम) में ‘उपस्थिति’ का एक बिंदु है. चूंकि वह छुट्टी पर था, इसलिए उसे अटेंडेंस के अंक नहीं मिले. यदि कोई बीमार है, तो संस्थान को छात्र के मेडिकल रिकॉर्ड पर विचार करना चाहिए और उसे प्रताड़ित करने के बजाय रियायत दी जानी चाहिए.’

संस्थान के रजिस्ट्रार सैय्यद रबीहाशमी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि छात्र को जूनियर बैच में शामिल होने का विकल्प दिया गया था क्योंकि उसके पास आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त क्रेडिट नहीं थे और उसकी केवल 30 फीसदी उपस्थिति दर्ज की गई थी.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि संस्थान के छात्र मांग कर रहे हैं कि प्रशासन एक मानसिक स्वास्थ्य सेल, एक छात्र शिकायत सेल और एक एससी/एसटी सेल स्थापित करे, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.

एक अन्य छात्र ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘अब भी छात्र के मेडिकल सर्टिफिकेट और दस्तावेजों की जांच की जा रही है और रोगी-डॉक्टर के रिश्ते को खतरे में डालते हुए बिना सहमति के उसके मनोचिकित्सक से पूछताछ की जा रही है. प्रशासन न तो हमारी बात सुनता है और न ही जवाब देता है. वे छात्र को दोबारा सेमेस्टर देने के लिए प्रताड़ित कर रहे हैं.’

रबीहाशमी ने कहा कि संस्थान छात्रों के समग्र स्वास्थ्य को महत्व देता है. उन्होंने कहा, ‘छात्रों के लिए संस्थान के पैनल में तीन डॉक्टर (एक मनोचिकित्सक, एक मॉडर्न मेडिसिन चिकित्सक और एक आयुर्वेद चिकित्सक) और एक मनोवैज्ञानिक हैं. वे नियमित रूप से परिसर का दौरा करते हैं और सातों दिन 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं.’

इस बीच, छात्रसंघ अपने संकल्प पर अडिग है. एफटीआईआई छात्र संघ के अथर्व कारवेकर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हम मांग कर रहे हैं कि छात्र का निष्कासन बिना किसी भेदभावपूर्ण शर्तों के वापस लिया जाए, तीसरा सेमेस्टर प्रारंभ से शुरू हो और प्रॉक्टर द्वारा प्रदर्शनकारी छात्रों को दिए गए अनुशासनात्मक नोटिस को रद्द किया जाए.’