मणिपुर की अखंडता से समझौते पर खिलाड़ियों के पुरस्कार लौटाने के बयान समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर/pixabay)

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मणिपुर में तनाव के बीच अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता खिलाड़ियों ने राज्य की क्षेत्रीय अखंडता से समझौता किए जाने की स्थिति में सरकार द्वारा दिए गए पुरस्कार वापस कर देंगे. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इन ग्यारह खिलाड़ियों में एल. अनीता चानू (ध्यानचंद पुरस्कार विजेता), अर्जुन पुरस्कार विजेता एन. कुंजारानी देवी (पद्मश्री), एल. सरिता देवी और डब्ल्यू. संध्यारानी देवी (पद्मश्री विजेता) और एस. मीराबाई चानू (पद्मश्री और राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार विजेता) शामिल हैं. अनीता चानू ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अगर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें मणिपुर की अखंडता की सुरक्षा के बारे में आश्वासन नहीं देते हैं, तो वे भारत सरकार द्वारा दिए गए पुरस्कार लौटा देंगे. अगर मांग पूरी नहीं हुई तो भविष्य में खिलाड़ी भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे और न ही किसी उभरती प्रतिभा को प्रशिक्षित करेंगे.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के दूर पर हैं और वहां अपने पहले ही सार्वजनिक संबोधन में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है. अमेरिका में कैलिफोर्निया के सांता क्लारा में प्रवासी भारतीयों की एक सभा में गांधी ने व्यंग्य करते हुए कहा कि यदि प्रधानमंत्री भगवान के साथ बैठें तो उन्हें समझाना शुरू कर देंगे कि ब्रह्मांड कैसे काम करता है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस और भाजपा भारत में राजनीति के सभी उपकरणों को नियंत्रित कर रहे हैं. भारत में राजनीतिक परिदृश्य के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत में लोगों को धमकाया जाता है और उन पर (जांच) एजेंसियों का इस्तेमाल किया जाता है.

मणिपुर में हालिया तनाव के बाद देश के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि मौजूदा हिंसा का ‘आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं था और यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच संघर्ष का मामला था.’ रिपोर्ट के अनुसार, उनका यह बयान राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के उस बयान के उलट है, जहां उन्होंने दावा किया था कि राज्य में समुदायों के बीच कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं है और ताजा झड़पें कुकी उग्रवादियों और सुरक्षा बलों के बीच लड़ाई का नतीजा थीं.

महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने पीएमओ में तैनात अधिकारी की पहचान बताकर जालसाजी करने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की पहचान 54 वर्षीय वासुदेव निवरुत्ति तायड़े के रूप में हुई है, जो खुद को पीएमओ में उपसचिव के पद पर तैनात डॉ. विनय देव बताता था. उसका दावा था कि वह खुफिया कामों में शामिल था. एक फाउंडेशन से जुड़े धर्मार्थ कार्यक्रम में शामिल होने पर कुछ लोगों को उस पर शक हुआ और उन्होंने पुलिस को सूचित किया. पिछले करीब तीन महीने के दौरान यह ऐसे तीसरे व्यक्ति हैं, जो ख़ुद को पीएमओ से जुड़ा अधिकारी बताकर लोगों को ठगते थे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में शृंगार गौरी की नियमित पूजा की मांग वाली याचिका के खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद का ज़िम्मा संभालने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की पुनरीक्षण याचिका को ख़ारिज कर दिया है. लाइव लॉ के अनुसार, कमेटी ने मस्जिद के अंदर पूजा करने के अधिकार को लेकर वाराणसी की एक अदालत में हिंदू उपासकों द्वारा दायर मामले पर आपत्ति जताते हुए उनके सुनवाई योग्य होने को चुनौती दी थी. मामले के दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने दिसंबर में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब उसने निचली अदालत के मुक़दमे को बरक़रार रखने के आदेश को कायम रखा है.

पहलवानों के यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह आगामी पांच जून को अयोध्या में ‘जन चेतना रैली’ करने वाले हैं और प्रदेश के भाजपा नेता उनके लिए समर्थन जुटा रहे हैं. इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, देवीपाटन क्षेत्र, जहां सिंह का व्यापक राजनीतिक प्रभाव है, के कई भाजपा विधायक उनके समर्थन में आगे आए हैं और अयोध्या में शक्ति प्रदर्शन के लिए भीड़ जुटा रहे हैं.

चीन और भारत के बीच सामान्य वीज़ा प्रक्रिया फिर से शुरू होने के बावजूद दोनों देशों ने एक दूसरे के पत्रकारों के प्रवेश को रोक दिया है. द वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, भारत द्वारा चीन की सिन्हुआ (Xinhua) न्यूज एजेंसी के एक पत्रकार को 31 मार्च तक देश छोड़ने के लिए कहने के बाद चीन ने तीन भारतीय पत्रकारों के वीजा पर रोक लगा दी है. इसके अलावा भारत द्वारा सिन्हुआ न्यूज एजेंसी के पत्रकार के अलावा एक अन्य राज्य मीडिया आउटलेट ‘चाइना सेंट्रल टेलीविजन’ के एक रिपोर्टर को भी देश छोड़ने के लिए कहा गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके कोई भी न्यायिक अधिकारियों को बदनाम नहीं कर सकता। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक ज़िला जज के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने पर एक व्यक्ति को दस दिन की क़ैद की सज़ा दी गई थी. शीर्ष अदालत ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि मनचाहा आदेश न मिलने का अर्थ यह नहीं है कि न्यायिक अधिकारी को बदनाम करें.