हेट स्पीच पर उत्तराखंड सरकार के कार्रवाई न करने पर वकीलों ने राज्यपाल को पत्र लिखा

सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक समूह द्वारा उत्तराखंड के राज्यपाल गुरमीत सिंह को लिखे पत्र में अप्रैल महीने के 12 दिनों की अवधि में घटी चार घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि सभी घटनाएं हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा मुसलमानों के ख़िलाफ़ अंज़ाम दी गईं. पत्र में ऐसी घटनाओं पर उत्तराखंड की भाजपा सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए गए हैं.

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उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी. (फोटो साभार: फेसबुक/Raj Bhawan, Uttarakhand)

सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक समूह द्वारा उत्तराखंड के राज्यपाल गुरमीत सिंह को लिखे पत्र में अप्रैल महीने के 12 दिनों की अवधि में घटी चार घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि सभी घटनाएं हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा मुसलमानों के ख़िलाफ़ अंज़ाम दी गईं. पत्र में ऐसी घटनाओं पर उत्तराखंड की भाजपा सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए गए हैं.

उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी. (फोटो साभार: फेसबुक/Raj Bhawan, Uttarakhand)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक समूह ने उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह को एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें राज्य में नफरत फैलाने वाले भाषणों (Hate Speech) की बार-बार होती घटनाओं पर सरकार की निष्क्रियता के बारे में बात की गई है.

मंगलवार (30 मई) को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि प्रथमदृष्टया राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद हेट स्पीच के मामलों पर कार्रवाई करने से इनकार करके सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रही है.

पत्र की शुरुआत में कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य का शांति और सामाजिक सद्भाव का लंबा इतिहास रहा है, हम राज्य में हाल की घटनाओं पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करने के लिए पत्र लिख रहे हैं. इन घटनाओं की आवृत्ति इस बात की ओर इशारा करती है कि राज्य में भय और घृणा फैलाने का एक अभियान चल रहा है.

पत्र में बीते अप्रैल महीने के 12 दिनों की अवधि के भीतर घटी घृणास्पद भाषण की घटनाओं के चार उदाहरण दिए गए हैं और कहा गया है कि वे सभी हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ अंजाम दी गई थीं.

पहली घटना में 16 अप्रैल को रुद्र सेना के एक नेता ने भाषणों और वीडियो से वन गुर्जर समुदाय (जो मुख्य रूप से मुस्लिम हैं) को हिंसा होने की चेतावनी देते हुए क्षेत्र छोड़ने की धमकी दी थी.

दूसरी घटना में भी रुद्र सेना शामिल है. 20 अप्रैल को जिसने एक दूसरे इलाके में अल्पसंख्यकों के आर्थिक बहिष्कार और दुनिया से सभी ‘जिहादियों’ के खात्मे की वकालत करते हुए भाषण दिए गए थे.

टाइम्स ऑफ इंडिया अपनी एक रिपोर्ट में बताया ​है कि इस आयोजन को इस शर्त पर अनुमति दी गई थी कि इसमें घृणास्पद भाषण नहीं दिए जाएंगे, यह देखते हुए कि तब रमजान का महीना चल रहा था.

अगली दो घटनाओं में बजरंग दल ने उन स्कूलों में उपद्रव किया था, जिन्होंने ईद संबंधी नाटकों का प्रदर्शन किया था. 24 अप्रैल को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने देहरादून के वसंत विहार स्थित एक निजी स्कूल में तोड़फोड़ की थी. ईद पर हुए एक कार्यक्रम को लेकर कार्यकर्ता नाराज थे.

इसके बाद 28 अप्रैल को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के एक अन्य समूह ने स्कूल के समय के दौरान एक दूसरे स्कूल के बाहर धरना दिया. संगठन का दावा था कि स्कूल ने ईद के लिए एक नाटक का मंचन किया था.

हालांकि उपरोक्त में से किसी भी मामले में उत्तराखंड पुलिस ने कार्रवाई नहीं की.

पत्र में कहा गया है, ‘सार्वजनिक उपलब्ध जानकारी से यह प्रतीत होता है कि प्रशासन गंभीर कार्रवाई न करके भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का भी उल्लंघन कर रहा है.’

साथ ही उपरोक्त घटनाओं का हवाला देते हुए कहा गया है, ‘यह भी गौर करने योग्य है कि एक ही व्यक्ति और संगठन बार-बार ऐसी गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं, लेकिन कोई नतीजे नहीं भुगत रहे हैं.’

पत्र में कहा गया है, ‘(सुप्रीम) कोर्ट के 21 अक्टूबर 2022 के शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ के आदेश के अनुसार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली राज्यों को विशेष रूप से ‘यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया था कि जैसे ही और जब भी आईपीसी की 153ए, 153बी और 295ए और 505 जैसी धाराओं के दायरे में आने वाला कोई भाषण दिया जाता है या गतिविधि होती है तो कोई शिकायत न किए जाने पर भी मामला दर्ज करने के लिए स्वत: संज्ञान लिया जाएगा.’

पत्र में आगे कहा गया है, ‘उत्तरखंड में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है. 2021 और 2022 में हुईं घटनाओं के साथ-साथ पिछले कुछ हफ्तों में घटनाओं के सिलसिलेवार पैटर्न से यह संकेत मिलता है कि पुलिस आपराधिक उकसावे और हिंसक कार्रवाइयों को होने दे रही है और इसलिए यह अदालत की अवमानना है.’

पत्र में राज्यपाल से अपील की गई है, ‘हम यह सुनिश्चित करने के लिए आपसे तत्काल हस्तक्षेप का अनुरोध करते हैं कि संविधान, कानून के शासन और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को कायम रखा जाए.’

इस रिपोर्ट और पूरे पत्र को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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