किसी राज्य के राज्यपाल से अधिक अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल के पास हैं: सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था केंद्र के दायरे में आती है और दिल्ली विधानसभा इन विषयों के बारे में कानून नहीं बना सकती है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

कोर्ट ने कहा, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था केंद्र के दायरे में आती है और दिल्ली विधानसभा इन विषयों के बारे में कानून नहीं बना सकती है.

भारत का सर्वोच्च न्यायालय. (फोटो: रॉयटर्स)
भारत का सर्वोच्च न्यायालय. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: देश के उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास किसी भी राज्य के राज्यपाल से अधिक अधिकार हैं क्योंकि उसे हमेशा मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श से काम नहीं करना है.

न्यायालय ने कहा कि राज्य के राज्यपाल को कमोबेस सरकार की सहायता और परामर्श से ही काम करना होता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार का दावा है कि उपराज्यपाल दिल्ली का शासन नहीं चला सकते और राष्ट्रीय राजधानी के मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है. यह तो सिर्फ मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद ही है जो शासन कर सकती है.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल को, उन मामलों के अलावा जहां उसे अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करना हो, मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श से ही काम करना होता है.

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं.

संविधान पीठ दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ आप सरकार की अपीलों पर सुनवाई कर रही है. इसमे सवाल उठाया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 239एए के आलोक में राष्ट्रीय राजधानी पर शासन के मामले में किसे प्रमुखता प्राप्त है.

पीठ ने कहा, अनुच्छेद 163 की भाषा अनुच्छेद 239एए के उपबंध चार जैसी ही है परंतु इसमें सिर्फ इतना ही अंतर है कि प्रविष्टि एक, दो और 18 के संबंध में विधानसभा कानून नहीं बना सकती है जिसके लिए उपराज्यपाल के पास विशेषाधिकार है. अत: उपराज्पाल के पास किसी भी राज्य के राज्यपाल से अधिक अधिकार हैं.

पीठ ने कहा कि पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था केंद्र के दायरे में आती है और दिल्ली विधानसभा इन विषयों के बारे में कानून नहीं बना सकती है. दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि अनुच्छेद 239एए और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार कानून, 1991 में स्पष्ट किया गया है कि उपराज्पाल सिर्फ राष्ट्रपति का प्रतिनिधि है और वह आवश्यकता होने पर ही अपने आप कदम उठा सकते हैं.

धवन ने कहा, उपराज्यपाल दिल्ली नहीं चला सकते. दिल्ली के मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है. यह भूमिका मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद में निहित है. संविधान में कहीं भी इस तरह के अधिकार उपराज्यपाल को नहीं दिए गए हैं.

धवन ने सवाल किया कि उपराज्यपाल यह कैसे कह सकते हैं कि यह अधिकारी किसी विभाग विशेष में रहेगा या अधिकारी को किसी अन्य विभाग में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि सिर्फ दो ही मामलों में उपराज्यपाल दिल्ली के मामलों में दखल दे सकते हैं- यदि राज्य सरकार अपने अधिकारों को लांघती है या फिर दिल्ली को किसी प्रकार का खतरा हो.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने यह भी कहा कि भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस केंद्र सरकार के पास हैं परंतु यह नहीं कहा जा सकता कि दिल्ली सरकार का कोई दखल नहीं है. उन्होंने इस संबंध में 2011 में रामलीला मैदान में काले धन के खिलाफ योग गुरु रामदेव के विरोध की ओर ध्यान आकर्षित किया और कहा कि जब किसी प्रकार का खतरा, अव्यवस्था या कानून व्यवस्था की समस्या हो तो उपराज्यपाल दखल दे सकते हैं.

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