जज लोया की मौत की जांच के लिए आयोग बनाने की मांग

सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहे सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में कार्यवाही कर रहे जज लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में 1 दिसंबर, 2014 को मौत हो गई थी.

सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहे सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में कार्यवाही कर रहे जज लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में 1 दिसंबर, 2014 को मौत हो गई थी.
Brijgopal Loya-001

सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे विशेष सीबीआई अदालत के जज बृजगोपाल लोया की मौत उठे सवालों को लेकर नागरिकों के एक समूह ने इस मामले की सार्वजनिक आयोग बनाकर जांच करने की मांग की है.

नागरिकों के इस समूह में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और लेखक अपूर्वानंद, कवि अशोक वाजपेयी, लेखक गीता हरिहरन, नताशा बधवार और प्रिया रमानी समेत इतिहासकार राजमोहन गांधी हैं, जिन्होंने एक बयान जारी कर जज लोया की मौत की एक तय समय सीमा के अंदर सार्वजनिक आयोग बनाकर जांच करने की मांग की है.

उन्होंने इस बयान में कहा कि न्यायिक जांच की कई मांग के बावजूद न्यायपालिका द्वारा अब तक इस मुद्दे पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया है.

मालूम हो कि गुजरात के इस चर्चित मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत गुजरात पुलिस के कई आला अधिकारियों के नाम आए थे.  बीते दिनों द कारवां पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार जज लोया की मृत्यु की संदिग्ध परिस्थितियों पर सवाल उठाये गये थे.

ज्ञात हो कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामला सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहा था और उस पर कार्यवाही कर रहे जज लोया की 1 दिसंबर, 2014 को मौत हो गयी थी.

इस नागरिक समूह द्वारा जारी बयान में कहा गया है, ‘इस पत्रिका की रिपोर्ट के बाद अलग अखबारों और न्यूज़ वेबसाइटों पर इस बारे में अलग-अलग वर्ज़न आये, जिससे मामला स्पष्ट होने की बजाय संदेह और गहरा हो जाता है, साथ हो और सवाल उठते हैं. जज लोया की मौत की अलग और विरोधाभासी परिस्थितियां बताती रिपोर्ट्स के अलावा परेशान करने वाली बात यह है कि जज लोया को रिश्वत और अनुचित दबाव बनाने के आरोप भी सामने आये थे.’

यह बयान आगे कहता है, ‘ये कहना गलत नहीं होगा कि देश के सबसे ताकतवर और सम्मानित संस्थानों में से एक (न्यायालय) खुद अपनों यानी इसके जजों का ख्याल रख पाने के लिए प्रयासरत या समर्थ नहीं है. ये हमारे संस्थानों की विश्वसनीयता के बारे में गंभीर सवाल खड़े करता है, जिससे हमारे लोकतंत्र के भविष्य पर असर पड़ता है. इससे जनता के विश्वास को ठेस पहुंचती है.’

इन नागरिकों का कहना है कि यह आवश्यक है कि इस मामले की निष्पक्ष, पारदर्शी और विश्वसनीय जांच हो और सभी तथ्यों को प्रकाश में लाया जाए जिससे लोगों के मन में न्यायपालिका के प्रति विश्वास बन सके.

इन्होने यह मांग भी की है कि जांच आयोग में ऐसे विश्वसनीय और क़ाबिल व्यक्ति शामिल किये जाएं, जो कानून और व्यवस्था से जुड़े हों और इस बारे में समझ रखते हों.

बयान में आगे कहा गया है, ‘क्योंकि न सरकार और न ही न्यायपालिका इस मामले में जांच को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, ऐसे में एक गणतांत्रिक देश के नागरिक के बतौर यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम सच सामने लाएं’.

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