सेबी अधिकारियों ने माधबी बुच के नेतृत्व में अभद्रता की शिकायत वित्त मंत्रालय से की थी: रिपोर्ट

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के क़रीब 500 अधिकारियों द्वारा बीते माह वित्त मंत्रालय को लिखे गए एक शिकायती पत्र में कहा गया था कि सेबी की बैठकों में अधिकारियों के ऊपर चिल्लाना, डांटना और सार्वजनिक रूप से अपमानित करना आम बात हो गई है.

माधबी बुच. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्लीः भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की प्रमुख माधबी बुच की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं. इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि सेबी के अधिकारियों ने पिछले महीने 6 अगस्त को वित्त मंत्रालय में एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सेबी के अंदर इसके शीर्ष नेतृत्व द्वारा कामकाजी माहौल को दूषित किया जा रहा है. 

ईटी के मुताबिक, शिकायती पत्र में लिखा गया था कि ‘बैठकों में अधिकारियों के ऊपर चिल्लाना, डांटना और सार्वजनिक रूप से अपमानित करना आम बात हो गई है.’ 

यह पत्र ऐसे समय में प्रकाश में आया है जब सेबी प्रमुख माधबी पुरी अडाणी समूह के खिलाफ सेबी की जांच को लेकर हितों के टकराव के आरोपों का सामना कर रही हैं. 

बहरहाल, अखबार द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में सेबी ने कहा है कि कर्मचारियों से जुड़े मुद्दों को सुलझा लिया गया है. सेब ने कहा, ‘कर्मचारियों के साथ उनके मुद्दों के समाधान के लिए बातचीत एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है.’ 

सेबी में ग्रेड ए और उससे ऊपर के करीब 1,000 अधिकारी है और उनमें से आधों, करीब 500, ने पत्र पर हस्ताक्षर किए थे.

‘सेबी अधिकारियों की शिकायतें: सम्मान की मांग’ शीर्षक वाले वित्त मंत्रालय को भेजे गए शिकायती पत्र में अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि

वित्त मंत्रालय के पास भेजे गए शिकायती पत्र में अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि बुच के मार्गदर्शन में शीर्ष नेतृत्व टीम के सदस्यों के साथ बातचीत करते समय ‘कठोर और गैर-पेशेवर भाषा’ का इस्तेमाल करता है, साथ ही उनके हर एक मिनट की गतिविधि पर बारीकी से नज़र रखी जाती है और उनके लिए ऐसे अवास्तविक कार्य लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं जिनका लक्ष्य बदलता रहता है.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार, सेबी के इतिहास में संभवत: यह पहला मामला है जहां कर्मचारियों ने खराब कामकाजी माहौल को लेकर चिंता जताई है. अधिकारियों ने कहा है कि इस माहौल ने उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाला है और उनके कार्य और जीवन के बीच के संतुलन को बिगाड़ दिया है. सेबी के प्रबंधन से जुड़े लोगों द्वारा उनकी शिकायतें अनसुनी किए जाने के बाद अधिकारियों ने वित्त मंत्रालय का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया था. 

पांच पन्नों के शिकायती पत्र के अनुसार, सेबी प्रबंधन ने दक्षता बढ़ाने की आड़ में नीतियों और व्यवस्था में बदलाव किया है. अधिकारियों का सबसे बड़ा मसला शीर्ष नेतृत्व द्वारा अभद्र भाषा का उपयोग करना और उनके ऊपर चिल्लाना है. 

उनका कहना है कि ‘उच्चतम स्तर पर बैठे लोगों द्वारा गैर-पेशेवर भाषा का उपयोग किया जाता है और ऐसी परिस्थितियों में ‘वरिष्ठ प्रबंधन की ओर से कोई बचाव नहीं किया जाता.’ 

अधिकारियों ने पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि ऊंचे पद पर बैठे कर्मचारी भी बदले की कार्रवाई के डर से अपनी चिंताएं व्यक्त करने से परहेज करते हैं. 

पत्र में कहा गया है कि पिछले 2-3 वर्षों में संगठन के अंदर माहौल दमनकारी हो गया है.

अखबार के अनुसार, पत्र में शीर्ष नेतृत्व के उस दृष्टिकोण को पूरे तरीके से समाप्त करने की मांग की गई है, जहां कर्मचारियों को चिल्लाकर और गैर-पेशेवर भाषा का उपयोग करके काम करने के लिए धमकाया जाता है. 

पत्र के जवाब में सेबी ने कहा कि मांग को मद्देनज़र रखते हुए संशोधन लागू कर दिए गए हैं. सेबी ने उल्लेख किया कि बैठकों से संबंधित चिंताओं को दूर करते हुए बैठकों के प्रारूप में बदलाव किया गया है. 

सेबी अधिकारियों के पत्र में उल्लेख किया गया है कि प्रबंधन ने कर्मचारियों के दिन के दौरान की उपस्थिति की निगरानी करने और उनकी गतिविधियों पर पूर्ण नियंत्रण रखने के लिए विशेष गेट (टर्नस्टाइल) लगाए हैं.

अधिकारियों ने  दृष्टिबाधित कर्मचारियों के लिए उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए इन गेट को हटाने की मांग की है.  

सेबी ने इसका जवाब दिया है कि गेट हाल ही में स्थापित किए गए हैं, और छह महीने बाद कर्मचारियों की प्रतिक्रिया के आधार पर इनकी आवश्यकता की समीक्षा करने का निर्णय लिया गया था. 

सेबी अधिकारियों ने शीर्ष प्रबंधन द्वारा मौजूदा वर्ष के लिए प्रमुख परिणाम क्षेत्र (केआरए) लक्ष्यों को 20-50% तक बढ़ाने पर भी चिंता जताई थी, जिनको लेकर उम्मीद की गई थी कि कर्मचारी दिसंबर तक इन लक्ष्यों को हासिल कर लेंगे. उन्होंने इन लक्ष्यों को अवास्तविक माना, जिनसे कर्मचारियों में तनाव और चिंता पैदा हुए. 

जवाब में सेबी के प्रवक्ता का कहना है कि केआरए सभी विभागों के कर्मचारियों के साथ विचार-विमर्श और गहन समीक्षा के बाद ही कर्मचारियों की चिंताओं को देखते हुए स्थापित किए गए थे. 

विपक्षी दल और जी समूह के संस्थापक सुभाष चंद्रा ने बुच पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया

विपक्ष दल ने बुच को उनके पिछले नियोक्ता आईसीआईसीआई बैंक से उनके वेतन के अलावा मिलने वाली राशि पर सवाल खड़े किए हैं. 

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा, ‘2017 से 2024 के बीच, बुच को आईसीआईसीआई बैंक से 12.63 करोड़ रुपये, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल से 22.41 लाख रुपये, कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजनाओं (ईएसओपी) से 2.84 करोड़ रुपये और आईसीआईसीआई से टीडीएस भुगतान के रूप में 1.10 करोड़ रुपये मिले,जो सेबी से मिलने वाले उनके वेतन के अतिरिक्त हैं, उनके वेतन की कुल राशि 3.3 करोड़ रुपये है.’ 

इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए आईसीआईसीआई बैंक ने बयान जारी कर कहा, ‘हमारे संज्ञान में आया है कि मीडिया में कुछ ऐसी रिपोर्टें हैं जिनमें आईसीआईसीआई समूह द्वारा सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच को वेतन भुगतान का आरोप लगाया गया है, इस संबंध में हम कहना चाहेंगे कि आईसीआईसीआई बैंक या इसकी समूह कंपनियों ने बुच को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद, उनके सेवानिवृत्ति लाभों के अलावा कोई वेतन या कोई ईएसओपी नहीं दिया है. यह ध्यान देने योग्य है कि उन्होंने 31 अक्टूबर, 2013 से सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना था.’

इस बीच, मंगलवार (3 सितम्बर) को जी समूह के संस्थापक सुभाष चंद्रा ने भी बुच पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. चंद्रा ने कहा कि इस साल फरवरी में उनके पास मंजीत सिंह नाम के एक व्यक्ति का फोन आया था, जिसने उनसे कहा कि सेबी के साथ जो भी उनकी समस्याएं हैं वो एक कीमत चुकाकर सुलझाई जा सकती हैं. 

चंद्रा के इन आरोपों को सेबी ने बेबुनियाद बताया है.