सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करने को लेकर आठ राज्यों को अवमानना ​​नोटिस भेजा

अस्थायी पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से भी जवाब मांगा है. उक्त याचिका में विशेष रूप से यूपी के डीजीपी प्रशांत कुमार का मामला उठाया गया है, जिनके बारे में कहा गया है कि उन्हें वरिष्ठता सूची में 19वें नंबर पर होने के बावजूद पुलिस प्रमुख बनाया गया था.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सोमवार (14 अक्टूबर) को अस्थायी पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति के मामले में सुनवाई की.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, तीन याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए शीर्ष अदालत ने आठ राज्यों को अवमानना (contempt) ​​​​नोटिस जारी किया. ये राज्य 21 अक्टूबर को अदालत के समक्ष अपना पक्ष रखेंगे.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया है.

इस संबंध में अखबार ने इस साल 1 फरवरी रिपोर्ट किया था कि योग्य अधिकारी उपलब्ध होने के बावजूद राज्य सरकारों द्वारा नियमित डीजीपी नियुक्त नहीं करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है.

अखबार को याचिकाकर्ताओं में से एक विनोद कुमार के वकील आदित्य समद्दर ने ऑन रिकॉर्ड बताया कि सीजेआई ने इस मामला को देखते हुए सभी उत्तरदाताओं को नोटिस जारी किया. अब इस मामले पर 21 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी.

इस मामले में विनोद कुमार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण पेश हुए, जबकि एक अन्य याचिकाकर्ता नरेश मकानी के मामले में वरिष्ठ वकील माधवी दीवान ने पक्ष रखा. वहीं, प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी और हुज़ेफ़ा अहमदी सहित अन्य वकीलों द्वारा किया गया.

अदालत ने आदेश जारी करते वक्त प्रतिवादियों को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे दी, जिसमें गृह मंत्रालय और यूपीएससी के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा राज्यों के मुख्य सचिव और डीजीपी शामिल थे.

हालांकि, अदालत ने राज्यों के स्थायी वकीलों को नोटिस देने की अनुमति दी. ये नोटिस शीर्ष अदालत द्वारा इसी मामले पर वकील सावित्री पांडे द्वारा दायर एक रिट याचिका के कुछ दिनों बाद आया है. कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ दिया है.

विनोद कुमार द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि उत्तरदाताओं ने प्रकाश सिंह मामले में ‘जानबूझकर’ सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवज्ञा की है, जिसमें दो साल के कार्यकाल के लिए नियमित डीजीपी की नियुक्ति के लिए कहा गया था और कार्यवाहक पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति से बचने के निर्देश दिए गए थे.

याचिका में विशेष रूप से यूपी के डीजीपी प्रशांत कुमार का मामला उठाया गया है, जिनके बारे में कहा गया है कि उन्हें वरिष्ठता सूची में 19वें नंबर पर होने के बावजूद पुलिस प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था.

गौरतलब है कि मई 2022 से उत्तर प्रदेश में लगातार तीन ‘कार्यवाहक डीजीपी’ रहे हैं. इस साल जनवरी में राज्य को प्रशांत कुमार के रूप में अपना चौथा अस्थाई डीजीपी मिला.

1987-बैच के आईपीएस अधिकारी तत्कालीन डीजीपी मुकुल गोयल को ‘काम के प्रति रुचि में कमी’ के कारण हटाने के बाद राज्य सरकार ने 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी देवेंद्र सिंह चौहान को कार्यवाहक डीजी नियुक्त किया.

31 मार्च, 2022 को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी राज कुमार विश्वकर्मा को कार्यवाहक डीजी बनाया गया था. फिर 31 मई को सेवानिवृत्त होने पर विश्वकर्मा की जगह विजय कुमार को कार्यवाहक डीजी बनाया गया. विजय कुमार ने अपने वरिष्ठ आनंद कुमार को हटा दिया था और 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हो गए थे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया था कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, यूपी और पंजाब में एक साल से अधिक समय से ऐसे अस्थायी डीजीपी हैं, जबकि उत्तराखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में ये कई महीनों से हैं.

ओडिशा ने 1990-बैच के आईपीएस अधिकारी वाईबी खुरानिया को डीजीपी नियुक्त किया है और उन्होंने अगस्त में कार्यभार संभाला है. वहीं, झारखंड, जहां उस समय एक नियमित डीजीपी थे, ने जुलाई में एक कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया.