नई दिल्ली: मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (26 नवंबर) को बिना सुनवाई के आरोपी को लंबे समय तक हिरासत में रखने पर चिंता जताई.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा चलाए जा रहे मामलों में आरोप साबित होने की कमतर दर को लेकर भी सवाल उठाए.
मालूम हो कि चटर्जी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि पूर्व मंत्री को 23 जुलाई, 2022 को गिरफ्तार किया गया था और वो 2.5 साल से अधिक समय से हिरासत में हैं.
उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता 73 वर्ष के हैं और इस मुकदमे के जल्द पूरा होने की कोई संभावना नहीं है. क्योंकि इस मामले में 183 गवाह और चार पूरक अभियोजन शिकायतें हैं.
रोहतगी ने यह भी कहा कि चटर्जी पहले ही मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत अधिकतम सजा, जो 7 साल की कैद है, की एक तिहाई से अधिक सजा काट चुके हैं.
इस पर जस्टिस भुइयां ने ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से पूछा, ‘अगर आख़िर में उन्हें दोषी नहीं ठहराया गया, तो क्या होगा? 2.5-3 साल का इंतज़ार कोई छोटी अवधि नहीं है! आपकी दोषसिद्धि दर क्या है? अगर ये 60-70% है तो हम समझ सकते हैं, लेकिन यह बहुत खराब है.’
जवाब में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मामले को केस-टू-केस आधार पर देखना होगा. इस मामले की अगली सुनवाई अब अगले सप्ताह होगी.
गौरतलब है कि पार्थ चटर्जी तृणमूल कांग्रेस सरकार में 2014 से 2021 तक शिक्षा मंत्री थे. चटर्जी की गिरफ्तारी के बाद उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया था और तृणमूल कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया था.
पार्थ चटर्जी के बाद मणिक भट्टाचार्य को पश्चिम बंगाल के स्कूलों में शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती से संबंधित कथित घोटाले में गिरफ्तार किया गया था. वे इस मामले में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए दूसरे टीएमसी विधायक थे.