मुंबई: अहिल्यानगर के पाथर्डी तालुका के मढ़ी गांव में बीते 22 फरवरी को एक विशेष ग्राम सभा की बैठक बुलाई गई थी. इसका एजेंडा साफ था- गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास के लिए पात्र लोगों की नई जारी सूची पर चर्चा करना.
यह बैठक शनिवार को आयोजित की गई थी, जो एक असामान्य फैसला था क्योंकि अधिकांश ग्रामीण और यहां तक कि ग्राम सभा सदस्य भी काम पर इस दिन काम पर होते हैं. हालांकि, यह बैठक हुई और इसमें कुछ लोगों ने भाग लिया, जो उस दिन उपस्थित हो सकते थे. बैठक समाप्त होने पर इन लोगों ने दिन के एजेंडे पर हस्ताक्षर किए.
बाद में इन हस्ताक्षरों का नाम कथित तौर पर एक अन्य प्रस्ताव के लिए दुरुपयोग किया गया, जो मुस्लिम व्यापारियों का ‘बहिष्कार’ करने से संबंधित था. ये व्यापारी जल्द ही प्राचीन कानिफनाथ मंदिर में भव्य वार्षिक मढ़ी मेले के लिए गांव में इकट्ठा होने वाले थे.
मालूम हो कि अहिल्यानगर (जिसे पहले अहमदनगर कहा जाता था) से 50 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर कई खानाबदोश समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा स्थल है. पिछले कई दशकों में कट्टरपंथी हिंदुत्व संगठनों के बढ़ते प्रभाव के साथ यहां ऐसे चिह्न दिखने लगे हैं, जो इस दावे का समर्थन करते हैं कि यह एक ‘हिंदू’ मंदिर है.
मालूम हो कि मढ़ी में 700 साल पुराने कानिफनाथ उत्सव में देश भर से, विशेषकर खानाबदोश समुदायों से भारी संख्या में लोग आते हैं.

गांव के सरपंच संजय मरकड द्वारा शुरू किए गए इस कदम से गांव में अशांति फैल गई है. भारत में किसी ग्राम सभा द्वारा इस तरह का प्रस्ताव अपनाना गैरकानूनी और असंवैधानिक है. कई व्यक्ति जिनके हस्ताक्षर प्रस्ताव पर दिखाई दिए थे, उन्होंने अब मरकड पर उनकी जानकारी के बिना उनके हस्ताक्षरों का उपयोग करने का आरोप लगाया है. लेकिन कुछ लोगों का दावा है कि वे इस कदम से अवगत थे और प्रस्ताव का समर्थन करते हैं.
विवाद बढ़ने पर जिला प्रशासन ने ग्राम पंचायत के खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) शिवाजी कांबले को मामले को देखने का निर्देश दिया. कांबले ने द वायर से पुष्टि की कि बैठक वास्तव में आवास योजना पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी और किसी समुदाय का बहिष्कार कभी भी एजेंडे में नहीं था. ये कांबले का शुरुआती निष्कर्ष था.
कांबले ने कहा, ‘ऐसी बैठकों से पहले एजेंडा स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाता है और सदस्यों और ग्रामीणों को सूचित किया जाता है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ.’
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243 (बी) ग्राम सभा को गांव के दैनिक प्रशासनिक कार्यों का प्रबंधन करने और इसे संचालित करने दोनों के लिए महत्वपूर्ण शक्ति देता है. इस प्रकार मढ़ी में अपनाया गया प्रस्ताव असंवैधानिक है और आपराधिक मामला बनने योग्य है.
हालांकि, अब तक सरपंच मरकड या प्रस्ताव पारित करने में शामिल किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई शुरू नहीं की गई है.
द वायर ने ग्रामीणों के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई के बारे में जानने के लिए जिला कलेक्टर सिद्धराम सलीमथ से संपर्क किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. सलीमथ का जवाब आने पर यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.
‘अवैध गतिविधियां,’ ‘मां और बेटियां’
हिंदुत्व संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अन्य सहयोगी समूहों के साथ मजबूत जुड़ाव रखने वाले मरकड का दावा है कि यह निर्णय पिछले वर्षों की ‘कई आपराधिक गतिविधियों’ को ध्यान में रखते हुए लिया गया था.
द वायर से बात करते हुए मरकड ने दावा किया कि मुस्लिम समुदाय से जुड़े कई व्यापारी कथित तौर पर त्योहार के दौरान चोरी और जुए जैसी ‘अवैध गतिविधियों’ में शामिल थे, जो होली से शुरू होकर कई हफ्तों तक चलता है. हालांकि, मरकड के पास अपनी बात के समर्थन में कोई सबूत नहीं था.
उन्होंने मुस्लिम व्यापारियों से कुमकुम (सिंदूर) खरीदने पर भी आपत्ति जताते हुए पूछा, ‘हमारी महिलाएं मुस्लिम पुरुषों द्वारा बेचा जाने वाला कुमकुम कैसे लगा सकती हैं?’
दिलचस्प बात यह है कि रिसर्च स्कॉलर फिरदौस सोनी, जो अपने डॉक्टरेट थीसिस के लिए महाराष्ट्र में खानाबदोश समुदायों के त्योहारों का अध्ययन कर रही हैं, ने बताया कि यह मुख्य रूप से मुसलमानों के बीच एक उपजाति है, जो खानाबदोश है और कुमकुम बनाने के काम में लगी हुई है, जिसे हिंदू लगाते हैं.
जब और सवाल पूछे गए, तो मरकड ने तुरंत कहानी को ‘हिंदू बेटियों और माताओं को बचाने’ पर केंद्रित कर दिया. उन्होंने कहा, ‘हमने जो कदम उठाया है वह हमारी बेटियों और माताओं को बचाने के लिए है. और अगर इससे संविधान और अन्य कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन होता है, तो ऐसा ही होगा.’
उल्लेखनीय है कि गांव में महिलाओं और बच्चों के यौन उत्पीड़न का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है.
इस बीच, महोत्सव के आयोजकों ने कहा है कि वे ग्राम सभा के प्रस्ताव का विरोध करते हैं और दावा करते हैं कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई.
शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का गांव
मढ़ी एक मिश्रित जाति और मिश्रित धर्म वाला गांव है. लगभग 3,000 घरों में से लगभग 400 मुसलमानों के हैं. बाकी ज्यादातर मराठा (प्रमुख जाति जिससे मरकड आते हैं), और तेली, माली और धनगर जैसे छोटे अन्य पिछड़ा वर्ग समूह हैं.
कई घर बौद्ध समुदाय के भी हैं, जिन्होंने इस ‘बहिष्कार’ मामले में मुसलमानों के समर्थन में बात की है.
गांव में ऑटोमोबाइल मरम्मत की दुकान चलाने वाले फ़िरोज़ शेख ने पिछले सप्ताह इस ग्राम सभा की बैठक में भाग लिया था. उन्होंने बताया कि ये हस्ताक्षर वहां उपस्थित अधिकांश मुस्लिम लोगों के चले जाने के लिए गए थे.
उन्होंने कहा, ‘वे नहीं चाहते थे कि हममें से किसी को संदेह हो. इसलिए उन्होंने तब तक इंतजार किया जब तक हम बैठक से बाहर नहीं निकल गए और अन्य ग्रामीणों से कागजात पर हस्ताक्षर कराए.’
एक अन्य स्थानीय व्यापारी, जान मोहम्मद पटेल, जिन्होंने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है का कहना है कि इस तरह के बहिष्कार की घोषणा केवल गांव में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बाधित करने के लिए की जाती है.
मढ़ी तीर्थ का एक जटिल इतिहास है. मानवविज्ञानी रॉबर्ट एम. हेडन ने अपनी पुस्तक एंटागोनिस्टिक टॉलरेंस: कॉम्पिटिटिव शेयरिंग ऑफ रिलिजियस साइट्स एंड स्पेसेस में बताया है कि कैसे यह मंदिर हिंदू और मुस्लिम दोनों द्वारा पूजनीय है.
मुसलमानों के लिए यह मुस्लिम संत शाह रमज़ान माही सावर चिश्ती की दरगाह है, जबकि हिंदुओं का कहना है कि यह हिंदू संत कानिफनाथ की समाधि है. ध्यान दें कि ये संत एक ही ऐतिहासिक व्यक्ति हैं, लेकिन उनकी दो धार्मिक पहचान हैं और कोई भी समूह दूसरे द्वारा इस्तेमाल की गई पहचान को वैध नहीं मानता है.
उन्होंने आगे कहा कि मढ़ी में हिंदू और मुसलमानों दोनों के बीच शांतिपूर्ण बातचीत का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसमें कभी-कभी हिंसा की छोटी-मोटी घटनाएं भी शामिल रही हैं.
कई हिंदुत्व संगठनों ने हाल के वर्षों में मढ़ी के माहौल को खराब करने की कोशिश की है. हालांकि, पटेल का कहना है कि विवादों का गांव में पारस्परिक संबंधों पर कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.
व्यापार का पैटर्न
अन्य हिंदू मंदिरों और त्योहारों के उलट कानिफनाथ मंदिर में उत्सव का नेतृत्व मुख्य रूप से खानाबदोश समुदायों द्वारा किया जाता है. मेले में भाग लेने वाले मुस्लिम व्यापारी भी खानाबदोश समुदाय से हैं.
फिरदौस सोनी ने अपने शोध के दौरान देखा कि मढ़ी मेले में आने वाले मुस्लिम ज्यादातर छोटे व्यापारी हैं, जो प्लास्टिक के खिलौने बेचते हैं और ऐसे मेलों से जीविकोपार्जन करते हैं. पिछले वर्षों में सोनी ने प्रवासी पैटर्न में भी बदलाव देखा है. उत्तर भारत के व्यापारी अब महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों में आना पसंद कर रहे हैं.
उनका मानना है कि यह बदलाव दो मुख्य कारणों से हो सकता है एक तो उत्तर में मुस्लिम व्यापारियों का बड़े पैमाने पर बहिष्कार और दूसरा, पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों को बेहतर बाजारों के रूप में देखा जाना, जहां लोगों की खरीद क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है.’
सोनी ने आगाह किया है कि पश्चिमी भाग में बहिष्कार से व्यापारिक समुदाय पर आर्थिक प्रभाव और गहरा होगा.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)