आईसीआईसीआई बैंक पर फ़र्ज़ीवाड़े का आरोप, फिक्स्ड डिपॉज़िट के नाम पर बेच दी बीमा पॉलिसी

सैकड़ों ग्राहकों को ठगने के आरोप में राजस्थान पुलिस आईसीआईसीआई बैंक और आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल के कई अधिकारियों की जांच कर रही है.

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ICICI Bank Reuters
(फोटो: रॉयटर्स)​​​

सैकड़ों ग्राहकों को ठगने के आरोप में राजस्थान पुलिस आईसीआईसीआई बैंक और आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल के कई अधिकारियों की जांच कर रही है.

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

जयपुर: राजस्थान पुलिस का स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) सैकड़ों ग्राहकों को ठगने के आरोप में आईसीआईसीआई बैंक और आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल के कई अधिकारियों की जांच कर रहा है. इन पर आरोप है कि इन्होंने ग्राहकों को झांसा देकर उन्हें ऐसी बीमा योजनाएं बेच दीं, जिनके प्रीमियम का भुगतान करना उनकी क्षमता से बाहर है.

उदयपुर के 75 वर्षीय किसान सोहन लाल ने अपनी सारी जमीन इस उम्मीद में बेची थी कि इससे मिलने वाला पैसा बुढ़ापे में उनकी और उनकी 65 वर्षीय पत्नी का आर्थिक सहारा बनेगा. एक छोटा सा घर बनवाने के बाद उन्होंने बाकी बचा सारा पैसा (7,50,000 रुपये) आईसीआईसीआई बैंक की उदयपुर शाखा में फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) के तौर पर जमा करवा दिया.

‘नौ महीने के बाद, मुझे मुंबई से फोन कॉल आने शुरू हुए जिसमें मुझे अलग से 7,50,000 रुपये की किस्त जमा कराने को कहा गया. उन्होंने मुझे कहा कि अगर किस्त जमा नहीं की गई, तो मेरा मूलधन भी डूब जाएगा. जब मैंने बैंक के कागजात एक वकील को दिखाए, तो उसने बताया कि यह एक बीमा पॉलिसी है, जिसमें मुझे हर साल उतना पैसा जमा कराना होगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब मैं क्या करूं? मैं और मेरी पत्नी इतने बूढ़े हो गए हैं कि कोई मेहनत-मजदूरी का काम भी नहीं कर सकते हैं. हमारे हर महीने का इलाज का खर्चा 5-7,000 रुपये का है. हमारे पास हर साल जमा करने के लिए 7.5 लाख रुपये नहीं हैं.’

लेकिन यह अकेले सोहनदास की कहानी नहीं है. उनके जैसे सैकड़ों लोग हैं- एक मजदूर स्त्री है, जिसके पति की मृत्यु के बाद मिला पैसा बैंक ने इसी तरह झांसा देकर ठग लिया, एक सरकारी कर्मचारी है जिसके ग्रैच्युटी का पैसा इस तरह गायब हो गया, एक गरीब किसान है जिसके कृषि ऋण के पैसे पर बैंक ने सेंधमारी कर ली.

पुलिस का कहना है कि इस ठगी का शिकार होने वालों में दक्षिण राजस्थान के ग्रामीण इलाकों के किसान, मजदूर, बुजुर्ग नागरिक हैं. इनमें केंद्र सरकार की किसान क्रेडिट कार्ड और मनरेगा जैसे कार्यक्रमों के लाभार्थी भी शामिल हैं. इन सबको आईसीआईसीआई बैंक के अधिकारियों ने झांसा देकर ऐसी बीमा पॉलिसी खरीदवा दी, जिस पर उन्हें हर साल बड़ी प्रीमियम राशि देनी थी.

इस मामले में व्हिसिल ब्लोअर का काम आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल के पूर्व कर्मचारी नितिन बालचंदानी ने किया, जिन्होंने इस बाबत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत के बाद शुरुआती जांच में राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (एसओजी) ने इस धोखाधड़ी को अंजाम दिए जाने की बात को स्वीकार किया है.

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आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल के ग्राहक तुलसीराम और प्यारीबाई रेगर (दाएं).

इसके बाद एसओजी ने नवंबर में इस मामले में विस्तृत जांच शुरू की और धोखाधड़ी, जाली दस्जावेज बनाने, आपराधिक साजिश रचने और आपराधिक विश्वासघात के आरोपों के लिए कंपनी के अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है.

उसी महीने इन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 420 (धोखाधड़ी) 467, 468, 471 (जालसाजी), 406 (आपराधिक विश्वासघात) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया.

द वायर के पास मौजूद एफआईआर कॉपी में खासतौर पर रोहित सैनी (रीजनल मैनेजर, आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल, उदयपुर), कमलेश मेहता (फाइनेंशियल सर्विसेज कंसल्टेंट, आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल, उदयपुर), दीपक अग्रवाल (सेल्स ऑफिसर, आईसीआईसीआई, उदयपुर) और सतीश कुमार दांगी (आईसीआईसीआई के कर्मचारी) का नाम लिखा हुआ है.

एसओजी की जांच के मुताबिक, बैंक और इसके अधिकारियों ने उपभोक्ताओं को गुमराह किया और भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया- इरडा) के प्रावधानों का उल्लंघन किया.

इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, दिनेश एमएन. ने द वायर को बताया, ‘इन बैंकों और बीमा कंपनियों का मंथली टार्गेट अव्यावहारिक होता है. इस मामले में, वे जब भी किसानों को या दूसरे कमजोर आवेदनकर्ताओं को कर्ज दिया करते थे, तो वे उसका एक बड़ा हिस्सा सालाना प्रीमियम वाली बीमा योजनाओं लगा देते थे. कुछ मामलों में तो उन्होंने कर्ज की सारी राशि ही ऐसी बीमा योजनाओं में लगा दिया. किसानों का इसका कोई इल्म न था. यह एक बड़ी जालसाजी है.’

मनरेगा के तहत दिहाड़ी मजदूरी करने वाली भोली बाई अपने पति की मौत के बाद मिले बीमे के पैसे को फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) के तौर पर जमा कराना चाहती थीं. लेकिन, इसकी जगह आईसीआईसीआई बैंक की केलवा शाखा के अधिकारियों ने उसे बीमा पॉलिसी बेच दी.

करीब 3000 रुपये प्रतिमाह कमाने वाली मनरेगा मजदूर भोली को यह लग रहा था कि उनका पैसा पूरी हिफाजत के साथ एफडी के तौर पर रखा हुआ है, क्योंकि उसे यकीन था कि ‘बैंक में कुछ गलत नहीं होता.’

पति की मृत्यु के बाद मुझे 1,00,000 रुपये बीमा के तौर पर मिले थे. मैं इसका एफडी कराना चाहती थी, लेकिन बैंक ने मेरा पैसा बीमा पॉलिसी में लगा दिया. मुझे ये बात एक महीने के बाद पता चली, जब मेरे मामाजी ने बैंक के कागज को देखा. जब मैंने उनसे इस बारे में बात की, तो उन्होंने कहा कि मुझे हर साल 50,000 रुपये जमा कराने होंगे, तभी मुझे मेरा पैसा वापस मिलेगा.’

द वायर ने दोनों कंपनियों को प्रारंभिक जांच और उसके बाद की गई एफआईआर पर टिप्पणी के लिए विस्तृत प्रश्नावलियां भेजीं. लेकिन, बार-बार ई-मेल और उनके अधिकारियों, साथ ही उनके पीआर पोर्टफोलियो की देख रेख करने वाली एडफैक्टर्स पीआर को कई फोन कॉल्स करने के बावजूद कंपनी की ओर से कोई जवाब नहीं आया.

ठगी का तरीका

आईसीआईसीआई और आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल के अधिकारियों ने कथित तौर पर ग्रामीण इलाकों में अपने खाताधारकों के बड़े डेटाबेस का इस्तेमाल भोले-भाले ग्राहकों- खासतौर पर किसान, मजदूर और बुजुर्ग नागरिकों को अपना निशाना बनाने के लिए किया.

आमतौर पर अधिकारियों ने वैसे ग्राहकों से जो अपना पैसा जमा करना चाहते थे या कर्ज चाहते थे, अपने पैसे या कर्जे का एक हिस्सा फिक्स्ड डिपॉजिट में लगाने के लिए कहा.

इसके बाद वे आवेदनकर्ताओं से फिक्स्ड डिपॉजिट के नाम पर अंग्रेजी में लिखे गए पॉलिसी दस्तावेजों पर दस्तखत करने के लिए कहते थे. चूंकि ज्यादातर ग्राहक अंग्रेजी लिख या पढ़ नहीं सकते थे, इसलिए उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं होता था कि आखिर वे किस उत्पाद के लिए दस्तखत कर रहे हैं.

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दैनिक मजदूर भोली बाई

महादेव देसाई ने अपनी सेवानिवृत्ति के पैसे का निवेश करने के लिए बैंक पर भरोसा किया, लेकिन यह जानकर उनके पांव तले की जमीन खिसक गई कि उन्हें बदले में एक बीमा पॉलिसी बेच दी गई है, जिसमें उन्हें हर साल 1,00,000 रुपये जमा कराने होंगे.

राज्य द्वारा चलाई जाने वाली तेल कंपनी तिलम संघ से सेवानिवृत्त हुए 63 वर्षीय वैष्णव ने बताया, ‘मुझे सेवानिवृत्ति पर मेरे नियोक्ता से 4,00,000 रुपये मिले थे. यह पैसा आईसीआईसीआई की फतेहाबाद, उदयपुर शाखा में जमा कराया गया. उन्होंने मुझे एक अंग्रेजी में लिखा हुआ एक फॉर्म यह कहते हुए दस्तखत करने के लिए दिया कि यह फिक्स्ड डिपॉजिट के लिए है. लेकिन, उन्होंने मेरे खाते से 1,00,000 रुपये निकालकर उसका निवेश एक बीमा योजना में कर दिया.’

एसओजी की जांच में बैंक अधिकारियों द्वारा कई तरह की अनियमितताओं की बात सामने आई है. मसलन, उम्र गलत बताना (कम करना), आवेदक की वार्षिक आय गलत बताना, आईसीआईसीआई के कॉल सेंटर में ग्राहक बनकर फोन कॉल करना ताकि उसकी सहमति प्रकट की जा सके, फर्जी गवाहों का इस्तेमाल करना और पुलिस के साथ सहयोग न करना.

इस मामले की प्राथमिक जांच करनेवाले महावीर सिंह राणावत (एडिशनल एसपी, एसओजी) ने द वायर को बताया, ‘अब तक की गई हमारी जांच से धोखाधड़ी और इरडा के दिशानिर्देशों के गंभीर उल्लंघन की बात सामने आयी है. बैंक और बीमा अधिकारियों ने भी जांच में सहयोग नहीं किया और हमें गुमराह करने की कोशिश की. यह काफी बड़े पैमाने की धोखाधड़ी है.’

जांच से आईसीआईसीआई बैंक और आईसीआईसीआई प्रुंडेंशियल इंश्योरेंस कंपनी के बीच की मिलीभगत साफ उजागर होती है.

द वायर को प्राप्त एसओजी की जांच रिपोर्ट में कहा गया है, ‘शिकायतकर्ता को किसान क्रेडिट कार्ड के तहत बैंक से कर्ज मिला था. बैंक मैनेजर और कुछ अधिकारियों ने उन्हें कर्ज की राशि में से एक बीमा पॉलिसी जारी कर दी, जिसका सालाना प्रीमियम 50,000 रुपये था. पीड़ित को धोखे से फिक्स्ड डिपॉजिट बताकर अंग्रेजी में लिखे पॉलिसी दस्तावेज पर दस्तखत करवा लिया गया.’

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‘इरडा के नियमों के अनुसार लाभ दिखानेवाले दस्तावेज पर ग्राहक के दस्तखत कराना जरूरी होता है, जो इस मामले में नहीं किया गया. (योग्यता मानकों पर खरा उतरने के लिए) आवेदकों की शैक्षणिक योग्यता को गलत तरीके से बढ़ाकर दिखाया गया. आवेदक का कहना है कि फॉर्म 61 पर उसके जाली दस्तखत किए गए (इसकी जरूरत 50,000 से ज्यादा के प्रीमियम पर पड़ती है).’

इस धोखाधड़ी को उजागर करने वाले पूर्व कर्मचारी बालचंदानी का कहना है कि ज्यादातर बीमा कंपनियां अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ऐसे ही हथकंडे अपनाती हैं.

बालचंदानी का कहना है, ‘यह धोखाधड़ी आईसीआईसीआई बैंक और आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल की मिलीभगत से की गई. जब मैं वहां काम करता था, तब मैंने सीनियर मैनेजर को इन अनैतिक तरीकों के बारे में बताया था. (लेकिन), वे मुझे ही प्रताड़ित करने और लगे और मुझ पर दबाव बनाया ताकि मैं कंपनी छोड़ दूं.’

उन्होंने आगे बताया, ‘मैंने दो महीने का नोटिस पीरियड बिताकर कंपनी छोड़ दिया. इसके बाद मैंने अपनी कंसल्टिंग फर्म खोल ली है, जहां हम ऐसे गरीब किसानों, विधवाओं, गरीबी रेखा से नीचे के सदस्यों, छात्रों की समस्याओं को आरबीआई, इरडा और सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेशन ऑफिसर, वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने उठाते हैं.’

बालचंदानी का दावा है कि आईसीआईसीआई छोड़ने के बाद उन्होंने ‘लगभग सभी बीमा कंपनियों से’ 400 से ज्यादा लोगों का पैसा वापस दिलाने में मदद की है.

उन्होंने आरोप लगाया, ‘मगर, 250 से ज्यादा पीड़ित सिर्फ आईसीआईसीआई से थे. मेरा यकीन है कि इस धोखाधड़ी का स्तर संस्थानिक है. उनकी शाखाएं ग्रामीण इलाकों में है. उनकी पहुंच उन अशिक्षित लोगों के डेटाबेस तक थी, जिन्होंने बैंक पर यकीन किया. इसका इस्तेमाल बैंक ने अपने फायदे और लक्ष्य को पूरा करने के लिए किया.

आईसीआईसीआई की प्रतिक्रिया

वैसे तो आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल के अधिकारियों ने ई-मेल पर द वायर द्वारा पूछे गए किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया, लेकिन कुछ अधिकारियों ने इस रिपोर्टर से निजी तरीके से 13 दिसंबर को मुलाकात की.

इस मुलाकात के दौरान आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल कॉरपोरेट कम्युनिकेशन एंड इन्वेस्टर्स रिलेशंस के वाइस प्रेसिडेंट राजीव अधिकारी ने दावा किया कि कंपनी ने कुछ शिकायतकर्ताओं के पैसे वापस कर दिए हैं, जिनके नाम एसओजी की प्राथमिक जांच में सामने आए थे.

लेकिन, पुलिस ने इन दावों को खारिज कर दिया है. एसओजी के एडिशनएल एसपी महावीर सिंह राणावत का कहना है कि आईसीआईसीआई और प्रुडेंशियल अधिकारियों ने जांच में किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं दिया. द वायर ने जब उनसे कंपनी के पक्ष में जानने के लिए संपर्क किया, तो उन्होंने फिर इस बात की पुष्टि की.

राणावत का कहना है, ‘उन्होंने 3 नहीं, 30 पीड़ितों को पैसा लौटाया होगा. उन्होंने ऐसा पुलिस के डर से किया. लेकिन क्या इसका मतलब ये हुआ कि कोई धोखाधड़ी नहीं हुई? कल अगर कोई आपका पैसा चुरा ले और फिर बाद में उसे लौटा दे, तो क्या यह चोरी नहीं होगी ?’

निशाने पर व्हिसल ब्लोअर

आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल के अधिकारियों ने पूर्व कर्मचारी और व्हिसल ब्लोअर बालचंदानी पर कुछ ग्राहकों के पैसे का गबन करने का आरोप लगाया. अधिकारी ने कहा कि कंपनी ने बालचंदानी के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था और उन्हें एक महीना न्यायिक हिरासत में बिताना पड़ा था.

इस पर राणावत ने द वायर को कहा, ‘हां, उनके खिलाफ कंपनी द्वारा दायर किया गया एक मामला था, लेकिन मुझे बस इतना पता है कि इसकी सुनवाई चल रही है. इसका नतीजा चाहे जो भी निकले, इससे कंपनी और इसके अधिकारी अपराध के आरोपों से मुक्त नहीं हो जाते.’

A man exchanging damaged Indian currency counts 100 rupee notes along a roadside in Kolkata August 30, 2013. The Indian central bank likely sold dollars via state-run banks starting at around 66.60 rupee levels, two traders told Reuters on Friday. The rupee recovered sharply to the day's high of 66.16 per dollar following the intervention and was trading at 66.28/29 at 0925 GMT, stronger than its close of 66.55/56 on Thursday. The unit, however, is still on course to post its biggest monthly loss ever. REUTERS/Rupak De Chowdhuri (INDIA - Tags: BUSINESS) - RTX131EG
(फोटो: रॉयटर्स)

1 अप्रैल, 2016 को एसोसिएट रीजनल मैनेजर सैनी ने बालचंदानी के खिलाफ उदयपुर के भुपालपुरा पुलिस स्टेशन में कंपनी को नुकसान पहुंचाने, ग्राहकों को ठगने, संवेदनशील डेटा की चोरी करने और वित्तीय नुकसान कराने के आरोपों को लेकर एक एफआईआर दर्ज की.

लेकिन, 30 अप्रैल, 2016 को पुलिस ने कोर्ट में इस तथ्य के आधार पर एक क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत की और कहा कि उसने बालचंदानी को किसी गलत कार्य में शामिल नहीं पाया.

इंवेस्टिगेशन ऑफिसर हिम्मत सिंह द्वारा कोर्ट में जमा कराई गई रिपोर्ट के मुताबिक

‘शिकायकर्ता का आरोप था कि प्रतिवादी (बालचंदानी) ने कंपनी के संवेदनशील डेटा की चोरी की, लेकिन वह इसे साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं पेश कर पाया…कंपनी द्वारा पैसा वापस नहीं करने पर जिन ग्राहकों ने प्रतिवादी से संपर्क किया था, उसने उनका पैसा वापस दिलाने में मदद की…(बालचंदानी) ने कंपनी से लाभ नहीं कमाया, न ही कंपनी को कोई नुकसान उठाना पड़ा… अगर उसने किसी ग्राहक को ठगा होता, तो वे उसके खिलाफ शिकायत जरूर करते. जांच से ये बात साफ साबित होती है कि ग्राहक उसके पास इसलिए गए क्योंकि कंपनी ने उन्हें बीमा योजनाओं के जोखिमों और फायदों और उनका पैसा वापस लेने संबंधी नियमों के बारे में जानकारी नहीं दी थी.’

बालचंदानी का दावा है कि बाद में यह मामला मानक प्रक्रिया का पालन किए बगैर पिछले साल जून में फिर से खोला गया था और उन्हें सितंबर, 2016 में हिरासत में ले लिया गया.यानी उनके द्वारा दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू होने से ठीक एक दिन पहले. इसकी नतीजा यह हुआ कि वे कोर्ट में पेश नहीं हो पाए.

बालचंदानी ने द वायर को बताया, ‘क्लोजर रिपोर्ट के बाद आईसीआईसीआई ग्रुप ने एक बार फिर मुझसे मई, 2016 में संपर्क किया और 8 जून को एक बैठक रैडिसन होटल में हुई और उसके बाद एक और बैठक 5 जुलाई को हुई, जिसमें मुझसे इस मामले को विनियामक अधिकारियों तक न ले जाने का आग्रह (इस बार धमकी नहीं दी गई थी) किया गया. मुझे मेरे सेवाओं के बदले एक प्रशंसा पत्र देने का वादा किया गया साथ ही भ्रामक बीमा उत्पादों से प्रभावित लोगों की मदद के लिए कंज्यूमर एडवोकेसी समूह की स्थापना करन के लिए आईसीआईसीआई समूह की तरफ से उचित मदद देने का आश्वासन भी दिया गया. लेकिन बाद में उन्होंने प्रशंसा पत्र देने या किसी भी दूसरी चीजों के बारे में लिखित में कुछ देने से इनकार कर दिया.’

उनका दावा है, ‘इस समय तक हमें यह एहसास हो गया था कि हमारी शिकायतों पर को अनसुना किया जा रहा है सिर्फ हमारे द्वारा उठाए गए मामलों को सुलझया जा रहा है. कंपनी ने ऐसे भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अपने कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. इसलिए मैंने 21 सितंबर, 2016 को राजस्थान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की. इस पर 27 सितंबर को सुनवाई होनी थी. लेकिन सुनवाई के ठीक एक दिन पहले मुझे हिरासत में ले लिया गया.’

माहिम प्रताप सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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