केंद्र सरकार सीधे कह दे कि उसने हमारे आदेश को कूड़ेदान में फेंक दिया है: सुप्रीम कोर्ट

निर्माण श्रमिकों के​ कल्याण से जुड़ा एक क़ानून लागू ने करने पर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

निर्माण श्रमिकों के कल्याण से जुड़ा एक क़ानून लागू ने करने पर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार. क़ानून के तहत संग्रहित 37,000 करोड़ रुपये से लैपटॉप और वॉशिंग मशीन ख़रीद लिया गया था.

Workers walk in front of the construction site of a commercial complex on the outskirts of the western Indian city of Ahmedabad, in this April 22, 2013 file picture. While India has long suffered from a dearth of workers with vocational skills like plumbers and electricians, efforts to alleviate poverty in poor, rural areas have helped stifle what was once a flood of cheap, unskilled labour from India's poorest states. Struggling to cope with soaring food prices, this dwindling supply of migrant workers are demanding - and increasingly getting - rapid increases in pay and benefits. To match story INDIA-ECONOMY/INFLATION REUTERS/Amit Dave/Files (INDIA - Tags: BUSINESS CONSTRUCTION EMPLOYMENT TPX IMAGES OF THE DAY)
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने निर्माण क्षेत्र के श्रमिकों के कल्याण से संबंधित एक कानून को लागू नहीं करने के लिए केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई.

सरकार के रवैये से ख़ासे नाराज़ नज़र आ रहे न्यायालय ने उससे कहा कि वह औपचारिक रूप से यह कह दें कि इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेशों को ‘कूड़ेदान में फेंक दिया है’.

शीर्ष अदालत ने इस मामले में केंद्र के रवैये पर सवाल खड़ा किया और कहा कि उसे देखते हुए यह स्पष्ट है कि भवन व अन्य निर्माण श्रमिक (रोज़गार नियमन व सेवा शर्त) कानून-1996 का किसी भी तरह कार्यान्वयन नहीं किया जा सकता.

न्यायालय ने इसे पूरी तरह ‘असहाय वाली स्थिति’ बताया और कहा कि ‘अगर सरकार इतनी गंभीर नहीं है तो हमें बताए. आप जो कर रहे हैं कि आप धन संग्रह कर रहे हैं लेकिन इसे निर्माण श्रमिकों को दे नहीं रहे जिनके लिए इसे जुटाया जा रहा है.’

इस क़ानून के तहत उपकर के रूप में 37,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि संग्रहित की गई है. नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) ने इससे पहले एक हलफनामे में न्यायालय को सूचित किया था कि निर्माण श्रमिकों के कल्याण को लक्षित धन को लैपटॉप व वॉशिंग मशीन ख़रीदने के लिए ख़र्च किया जा रहा है.

न्यायाधीश मदन बी. लोकुर व न्यायाधीश दीपक गुप्ता की पीठ ने अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल (एएसजी) मनिंदर सिंह से कहा, ‘आप सही बात क्यों नहीं करते, हमें बताइए. आप एक हलफनामा दाख़िल कीजिए कि इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश निरर्थक हैं और उसे कचरे के डिब्बे में डाल दिया गया है, इसलिए अब कोई आदेश जारी नहीं करें.’

न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की. इस याचिका में कहा गया है कि निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए रीयल एस्टेट कंपनियों पर लगाए गए सांविधिक उपकर से जुटी राशि का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है क्योंकि ऐसी कोई प्रणाली ही नहीं है जिनसे उचित लाभान्वितों को चिह्नित किया जा सके.

जब अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने पीठ को निगरानी समिति की हालिया बैठक के बारे में बताया तो न्यायालय ने कहा, ‘सरकार का रवैया तो इस बैठक के ब्योरे को देखकर ही पता चलता है.’

अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल ने न्यायालय को बताया कि कानून के कार्यान्वयन का केंद्रीयकरण किया जाना है क्योंकि राज्यों की इस मामले में अपनी अलग राय है.

याचिकाकर्ता एनजीओ नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर सेंट्रल लेजिस्लेशन आॅन कंस्ट्रक्शन लेबर की ओर से वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजालविस ने कहा कि इन मुद्दों पर विचार के लिए हाल ही में बुलाई गई बैठक दो घंटे से भी कम समय में ख़त्म हो गई और इसमें कुछ उल्लेखनीय नहीं हुआ. इस पर पीठ ने उनसे कहा, ‘बैठक व इसके ब्योरे से यह स्पष्ट है कि कानून को लागू नहीं किया जा सकता.’