चित्र कथा: आइए, दादी अम्मा के स्कूल चलते हैं

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम आपको ले चल रहे हैं महिलाओं के एक ऐसे स्कूल जिसमें एडमिशन की उम्र कम से कम 60 साल है. महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के फांगणे गांव में ये स्कूल खोला गया है जिसका नाम आजीबाईची शाला (दादी अम्मा की पाठशाला) है.

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Kantabai More (R), 65, helps her classmate Anusuya Kokedar (3rd L), 65, as she writes on a slate at Aajibaichi Shaala (Grandmothers' School) in Fangane village, India, February 15, 2017. REUTERS/Danish Siddiqui

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम आपको ले चल रहे हैं महिलाओं के एक ऐसे स्कूल जिसमें एडमिशन की उम्र कम से कम 60 साल है. महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के फांगणे गांव में ये स्कूल खोला गया है जिसका नाम आजीबाईची शाला (दादी अम्मा की पाठशाला) है.

Kantabai More (R), 65, helps her classmate Anusuya Kokedar (3rd L), 65, as she writes on a slate at Aajibaichi Shaala (Grandmothers' School) in Fangane village, India, February 15, 2017. REUTERS/Danish Siddiqui
65 साल की कांताबाई मोरे (दाएं) अपनी की सहपाठी अनुसुया कोकेदार की स्लेट पर लिखने में मदद करती हुई.

ठाणे के फांगणे गांव में खुला ये स्कूल उन वृद्ध महिलाओं के लिए खोला गया है जो किसी कारणवश अपनी पढ़ाई नहीं पूरी कर सकी थी. इस स्कूल को योगेंद्र बांगड़ ने शुरू किया और इसे मोतीलाल चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से चलाया जाता है. यही ट्रस्ट महिलाओं को स्लेट, चॉक और किताबें उपलब्ध कराता है.

Sheetal Prakash More (R), a 30-year-old teacher, teaches at Aajibaichi Shaala (Grandmothers' School) in Fangane village, India, February 15, 2017. REUTERS/Danish Siddiqui
शीतल प्रकाश मोरे स्कूल में अपने स्टूडेंट्स का पढ़ाती हुई.

स्कूल में गुलाबी साड़ी बतौर ड्रेस इस्तेमाल की जाती है. एडमिशन 60 से 90 साल की उम्र की महिलाओं का ही होता है. फिलहाल स्कूल में 29 महिलाएं पढ़ाई कर रही हैं. एक कमरे के स्कूल में हफ्ते में छह दिन पढ़ाई होती है. हर दिन दो घंटे की क्लास चलती है. महिलाएं घर का काम ख़त्म करके यहां पढ़ने आती हैं.

Drupada Pandurangkedar, 70, who studies at Aajibaichi Shaala (Grandmothers' School), poses for a photograph outside her house in Fangane village, India, February 15, 2017. REUTERS/Danish Siddiqui
70 साल की द्रुपदा पांडुरंगकेदार बस्ता लेकर स्कूल जाने की तैयारी में.

जिस तरह से ये स्कूल अपनी तरह का अनोखा है वैसे ही यहां पढ़ाई भी अनोखे तरीके से होती है. जैसे पत्थरों और टाइल्स पर अक्षर लिखकर पाठ कराया जाता है ताकि कमज़ोर नज़र वाली महिलाएं आसानी से इन्हें पढ़ सकें. योग्रेंद्र बांगड़ कहते हैं, ज्ञान हर आदमी की ज़िंदगी में बहुत महत्वपूर्ण होता है. जिन लोगों को किसी वजह से शिक्षा नहीं मिल सकी उनका यह देना महत्वपूर्ण काम है. हमारा पूरा गांव साक्षर हो सके, इसी भावना से इस स्कूल की शुरुआत की गई.

Drupada Pandurangkedar, 70, who studies at Aajibaichi Shaala (Grandmothers' School), serves her granddaughter Namita Thackrey lunch inside their house in Fangane village, India, February 15, 2017. REUTERS/Danish Siddiqui
द्रुपदा पांडुरंगकेदार स्कूल जाने से पहले घर के काम भी करती हैं.

70 साल की द्रुपदा पांडुरंगकेदार कहतीं हैं, ‘मैं घर का सारा काम ख़त्म करके स्कूल जाती हूं. यह बहुत अच्छी बात है कि हमारे गांव में हमारे पास यह सुविधा है.’ द्रुपदा की आठ साल की पोती गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ती हैं.’

Sheetal Prakash More (R), a 30-year-old teacher, helps Janabai Kedar, 74, as she writes on a slate at Aajibaichi Shaala (Grandmothers' School) in Fangane village, India, February 15, 2017. REUTERS/Danish Siddiqui
30 साल की शीतल प्रकाश यहां पढ़ाती हैं. शीतल कहतीं है, ‘सभी शिक्षक बच्चों को पढ़ते हैं, पर मुझे यहां पर ऐसा मौका मिला कि मैं इन वृद्ध महिलाओं को पढ़ा रहीं हूं. मेरे लिए यह एक जबरदस्त मौका है. इन्हें पढ़ने में मुझे ख़ुशी होती है.’

Kamal Keshavtupange, 60, who studies at Aajibaichi Shaala (Grandmothers' School), drinks tea inside her house in Fangane village, India, February 15, 2017. REUTERS/Danish Siddiqui
60 साल की कमल केशवतुपांगे स्कूल जाने से पहले अपने घर में चाय पीती हुई.

यहां पढ़ाई कर रहीं 60 साल की कमल केशवतुपांगे बताती हैं, ‘मुझे स्कूल जाना बहुत पसंद है. मेरे घुटनों में दर्द रहता है, इस वजह से मैं ज़्यादा देर तक ज़मीन पर नहीं बैठ सकती. फिर भी में स्कूल हर रोज जातीं हूं.’

(सभी फोटो दानिश सिद्दीकी/रॉयटर्स ने खींची हैं)