‘भाजपा की जीत राष्ट्रवाद और मुस्लिम घृणा के पैरोकारों में नया जोश पैदा करेगी’

हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा ऐसे माहौल में समाज में सांप्रदायिक भय खड़ा करता है. हिंसा का भय 1984 के चुनाव में राजीव गांधी के रणनीतिकारों ने भी खड़ा किया था. तब राजीव गांधी ने भी जीत का कीर्तिमान बनाया था. यह कीर्तिमान अब मोदी-शाह ने बनाया है.

हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा ऐसे माहौल में समाज में सांप्रदायिक भय खड़ा करता है. हिंसा का भय 1984 के चुनाव में राजीव गांधी के रणनीतिकारों ने भी खड़ा किया था. तब राजीव गांधी ने भी जीत का कीर्तिमान बनाया था. यह कीर्तिमान अब मोदी-शाह ने बनाया है.

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली जबरदस्त जीत का जश्न पार्टी कार्यकताओं ने दिल्ली में मनाया. (फोटो: रॉयटर्स)

पांच प्रदेशों में दो (उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड) में भाजपा को भारी जीत हासिल हुई है. बाक़ी तीन प्रदेशों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है; पंजाब में उसे पूर्ण बहुमत मिला है. वहां आम आदमी पार्टी के आसार दिखाई दे रहे थे, हालांकि वह दूसरे नंबर पर रही.

मगर सबसे बड़ा आश्चर्य उत्तर प्रदेश के नतीजे हैं, जो बाक़ी सब प्रदेशों पर भारी हैं. इसे आप भाजपा की आंधी, सुनामी कुछ भी कह सकते हैं. चुनावी दावे छोड़ दें तो इतनी सीटों का अंदाज़ा शायद ही किसी को रहा होगा.

मुझे सपा-कांग्रेस गठबंधन आगे लगता था, मेरा अनुमान ग़लत रहा. एक टीवी चैनल पर अनौपचारिक चर्चा में भाजपा के एक प्रवक्ता ने कहा कि ये उनके अनुमान से भी बाहर के नतीजे थे.

उत्तर प्रदेश में यह चमत्कार कैसे हुआ? एक तो मानना चाहिए कि मोदी और शाह की मेहनत रंग लाई. शाह की रणनीति कुशल रही. फिर मोदी ने भी सब काम छोड़कर प्रदेश को छान मारा. लेकिन इतने से क्या होता.

2014 की तरह कॉरपोरेट पूंजी ने थैलियां खोल दीं. भाजपा के रंग में रंगे हज़ारों नए वाहन प्रदेश भर में छा गए. जातिवाद और वंशवाद का विरोध करते-न-करते इस आधार पर टिकट दिए गए. यादव कुनबे की फूट, मायावती के दूषित टिकट बंटवारे और भीतरघात का लाभ भी लिया.

लेकिन इस सबके ऊपर हिंदू-मुसलिम समुदाय के बीच दरार खींचने का वह बेहद ख़तरनाक खेल फिर खेला गया. पहले तो एक भी मुसलमान को भाजपा का टिकट नहीं दिया गया, जबकि प्रदेश में मुसलिम आबादी 18 फ़ीसद से ज़्यादा है.

इसके बाद जेहाद, पाकिस्तान, आईएसआई, सर्जिकल स्ट्राइक की ‘हार्दिक बधाई’ और अवेंजर्स (बदला लेने वाले) के ‘स्वागत’ वाले पोस्टर, घोषणा-पत्र में एंटी-रोमियो स्क्वॉड (याद करें लव-जेहाद), कसाब, श्मशान-क़ब्रिस्तान, सैफ़ुल्लाह… और सबसे ऊपर वही पुराना राम-मंदिर का राग.

अर्थात सबका साथ सबका विकास जैसे नारों और जातिवाद व परिवारवाद उन्मूलन के वादों के बीच इन्हीं की काट करने वाले आचरण के साथ यह चुनाव जीता गया है.

हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा ऐसे माहौल में समाज में सांप्रदायिक भय खड़ा करता है. सांप्रदायिक भले नहीं, पर हिंसा का भय 1984 के चुनाव में राजीव गांधी के रणनीतिकारों ने भी खड़ा किया था, जब चुनाव के विज्ञापनों-पोस्टरों में चाकू-छुरे, हथगोले, मगरमच्छ आदि दर्शाए गए थे.

राजीव गांधी ने भी तब जीत का कीर्तिमान बनाया था. मोदी-शाह ने भी बनाया है.

लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव की जीत राष्ट्रवाद और मुस्लिम घृणा के पैरोकारों में नया जोश ही पैदा करेगी. और देश में इसके नतीजे ख़ुशगवार नहीं होंगे.

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