नफ़रत की यह राजनीति आपका इस्तेमाल करेगी और हत्यारा बना देगी

लोग आपको तिरंगे की चादर में लपेट कर हिंदुत्व का मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण दे रहे थे, इसलिए नहीं कि आप सात्विक और आध्यात्मिक बन जाएं बल्कि किसी की हत्या के वक़्त हिंदुत्व के नाम पर आप चुप रहना सीख लें.

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लोग आपको तिरंगे की चादर में लपेट कर हिंदुत्व का मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण दे रहे थे, इसलिए नहीं कि आप सात्विक और आध्यात्मिक बन जाएं बल्कि किसी की हत्या के वक़्त हिंदुत्व के नाम पर आप चुप रहना सीख लें.

The Prime Minister, Shri Narendra Modi participates in the mass yoga demonstration at the Ramabai Ambedkar Maidan, on the occasion of the 3rd International Day of Yoga - 2017, in Lucknow on June 21, 2017.
(फोटो: पीटीआई)

क्या आप अंग्रेज़ी में छपने वाली OPEN पत्रिका में राहुल पंडिता और ndtv.com पर नज़ीर मसूदी का लेख पढ़िएगा? मैं आपकी चुप्पी को समझता हूं, जानवर बन जाने के बाद आपका बोलना भी बेकार है. इससे पहले कि आप अक्षरों को भी हिंदू-मुसलमान की तरह पहचानने लगे, क्या उम्मीद की जा सकती है कि नीचे लिखे गए विवरण को आप पढ़ेंगे? कोशिश कीजिए. मैंने राहुल पंडिता और नज़ीर मसूदी की रिपोर्ट का सार आप हिंदी वालों के लिए पेश करने की कोशिश की है.

2010 में कठुआ की पीड़िता के पिता ने अपनी बहन की बेटी को गोद ले लिया था. बकरवाल घुमंतू समुदाय के पीड़िता के पिता ने जम्मू को अपना ठिकाना बना लिया था जहां पांच साल से इस समुदाय को लेकर डोगरा हिंदुओं के मन में आबादी का भय खड़ा किया जा रहा था.

रोहिंग्या मुसलमानों के यहां बसाए जाने से भी इसे हवा मिली कि आबादी का संतुलन बदल रहा है. आप जानते हैं कि आबादी का भय कौन खड़ा करता है. इनके भीतर ज़हर का फेन ऊपर आने लगा कि कहीं जम्मू में भी मुसलमान न भर जाएं.

जैसे देश के भीतर मुसलमानों के लिए कोई देश ही नहीं है. राहुल पंडिता ने लिखा है कि हिंदू और बकरवाला के बीच तनाव बढ़ने लगा. शक और नफ़रत ने आठ साल की बच्ची को अपना शिकार बना लिया. आप चार्जशीट पढ़िए तो आपके भीतर बैठी उस भीड़ का ख़ौफ़नाक़ चेहरा नज़र आने लगेगा.

चार्जशीट में लिखा है कि इस हत्या में मंदिर का पुजारी 60 साल का सांजी राम और पुलिस अफ़सर दीपक खजुरिया शामिल है. इलाक़े से बकरवाल को भगाने की प्लानिंग कर रहे सांजी राम की नज़र कई दिनों से इस बच्ची पर थी.

बच्ची अक्सर टट्टूओं को चराने ले जाती थी. सांझी राम ने यह प्लान दीपक खजुरिया, अपने बेटे और भतीजे से साझा किया. यह भतीजा 18 साल से कम है, इसलिए यहां भतीजा ही कहूंगा, नाम नहीं लूंगा. तीन महीने पहले ही भतीजे को एक लड़की के साथ ग़लत व्यवहार के लिए स्कूल से निकाला गया था.

पुलिस अफ़सर दीपक खजुरिया दवा की दुकान पर जाता है और बेहोशी की दवा ख़रीद लाता है. उसके बाद भतीजे से कहता है कि वह बच्ची को अगवा कर लाएगा तो चोरी से इम्तहान पास करने में उसकी मदद कर देगा. भतीजा अपने दोस्त परवेश कुमार को बताता है.

9 जनवरी को भतीजा और परवेश जाते हैं और नशे के चार डोज़ ख़रीदते हैं. मैंने बार-बार कहा है कि नफ़रत की यह राजनीति आपको या आपके बच्चे का इस्तमाल करेगी और हत्यारा बना देगी. देखिए कैसे दो बच्चों का इस्तेमाल होता है.

10 जनवरी को भतीजा को सुनाई देता है कि आठ वर्षीय बच्ची किसी औरत से अपने टट्टुओं के बारे में पूछ रही है. वह बच्ची को बताता है कि उसने जंगलों में घोड़ों को देखा है. परवेश और भतीजा उसके साथ हो लेते हैं.

पुलिस के अनुसार बच्ची को कुछ शक होता है और वह भागने लगती है. भतीजा उसे पकड़ लेता है और धक्का देकर ज़मीन पर गिरा देता है. उसे ज़बरन ड्रग दे देता है. वो बेहोश हो जाती है. भतीजा उसका बलात्कार करता है. उसके बाद परवेश भी बलात्कार करने की कोशिश करता है मगर नहीं कर पाता है.

आठ वर्षीय बच्ची को उठाकर एक छोटे मंदिर में ले जाया जाता है, जिसका पुजारी सांजी राम है. अगले दिन दीपक खजुरिया और राम का भतीजा उसे देखने आते हैं. खजुरिया उसके मुंह में बेहोशी का दो टेबलेट ठेल देता है. शाम को भतीजा सांजी राम के बेटे को फोन करता है. जो मेरठ में कृषि स्नातक की पढ़ाई पढ़ रहा था.

उसे कहता है कि अपनी प्यास बुझाना चाहते हो तो जल्द आओ. अगली सुबह विशाल जम्मू पहुंच जाता है और दो घंटे बाद आठ वर्षीय लड़की को तीन टेबलेट दिए जाते हैं. उसे अब तक कुछ भी खाने को नहीं दिया गया है.

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अब सांजी राम एक और पुलिस वाला तिलक राम को विश्वास में लेता है. 12 जनवरी की दोपहर आठ वर्षीय लड़की के पिता पुलिस में केस दर्ज करते हैं. पुलिस तलाश पर निकलती है, उस टीम में दीपक खजुरिया और तिलक राम दोनों हैं. इन्हें बचाने के लिए भाजपा के दो मंत्री और पार्टी के नेता सीबीआई की जांच की मांग का ढोंग रचते है और वहां हिंदू एकता मंच का निर्माण होता है जिसके साथ ये लोग खड़े होते हैं.

सांजी राम अपनी बहन के यहां जाता है और कहता है कि उसके बेटे ने किसी लड़की को अगवा किया है. बचाने के लिए पुलिस को रिश्वत देनी है. बहन से डेढ़ लाख लेकर आता है और तिलक राम को देता है. इसके ज़रिए पांच लाख देने की बात होती है जिसमें सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता को भी हिस्सेदार बनाया जाता है. आनंद दत्ता भी एक आरोपी है.

13 जनवरी को लोहड़ी के दिन सांजी राम, उसका बेटा और भतीजा मंदिर जाते हैं और पूजा करते हैं. सांजी राम के जाने के बाद उसका बेटा आठ वर्षीय लड़की का बलात्कार करता है. फिर उसका छोटा भाई बलात्कार करता है. बलात्कार करने के बाद लड़की को तीन टेबलेट दिए जाते हैं. पुलिस ने बाकी टेबलेट बरामद कर लिए हैं.

लोहड़ी की शाम को सांजी राम सबको बताता है कि लड़की को मारने का वक्त आ गया है. उस रात लड़की को एक पुलिया के नीचे ले जाते हैं. तभी खजुरिया पहुंचता है और कहता है कि मारने से पहले एक और बार बलात्कार करना चाहता है. वह बलात्कार करता है.

उसके बाद अपनी बायीं जांघ के नीचे लड़की का गर्दन दबाने की कोशिश करता है. नहीं कर पाता है. सांजी राम का भतीजा आता है और चुन्नी से उसकी गर्दन कस देता है. उसके पांव पीछे से मोड़ कर तोड़ देता है. लड़की मर गई है, यह पुख़्ता करने के लिए दो बार पत्थर से उसके सर पर मारता है.

लाश फिर से मंदिर में ले जाई जाती है. 15 जनवरी की सुबह जंगल में फेक दी जाती है. नज़ीर मसूदी ने लिखा है कि कोर्ट में वकीलों ने इतना हंगामा किया कि छह घंटे लग गए पुलिस को चार्जशीट दायर करने में. लड़की के ख़ून से सने कपड़े ग़ायब कर दिए जाते हैं. जिस डॉक्टर ने पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट तैयार की, उसका तबादला हो जाता है. एसएसपी रमेश जल्ला ने बताया है कि वे हर हफ्ते हाई कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट दे रहे थे.

अब यहां से स्थानीय समाज अपनी मृत्यु का प्रमाण देता है. बाप अपनी ज़मीन में बेटी को दफ़नाना चाहता है मगर लोग दफ़नाने नहीं देते हैं. बच्ची को अल्लाह ने आख़िरत के लिए दो ग़ज़ ज़मीन न दी और मंदिर में खड़े भगवान ने उसकी लाज नहीं बचाई. हम धर्म के नाम पर हैवान बने जा रहे हैं. पिता 8 मील दूर गांव में बेटी की लाश को लेकर जाते हैं और दफ़न करते हैं. वहीं पर हमारी और आपकी अंतरात्मा भी दफ़न है.

क़ायदे से अभी तक जांच पर सवाल उठाने वाले बीजेपी के दो मंत्रियों को मंत्रिमंडल से निकाल देना चाहिए था. सीबीआई जांच की मांग का ढोंग खेला गया. यह खेल बीजेपी के उपाध्यक्ष अविनाश खन्ना ने भी खेला और केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी. मगर समाज क्यों चुप है, आप आगे पढ़ेंगे तो पता चलेगा.

हिंदू एकता मंच द्वारा कठुआ में बलात्कार के कथित आरोपियों के समर्थन में रैली (फोटो: ट्विटर/नज़ीर मसूदी)
हिंदू एकता मंच द्वारा कठुआ में बलात्कार के कथित आरोपियों के समर्थन में रैली (फोटो: ट्विटर/नज़ीर मसूदी)

आप चुप्पी का कारण प्रधानमंत्री से नहीं, ख़ुद से पूछिए. वैसे प्रधानमंत्री से क्यों नहीं पूछा जाए कि आप क्यों नहीं बोलते हैं. देश में तब भी हज़ारों बलात्कार होते थे मगर आपने निर्भया पर बोला था कि नहीं बोला था. तो आप कठुआ पर क्यों नहीं बोल पा रहे हैं. वैसे भी प्रधानमंत्री क्या बोल देंगे? उनके बोलने में झूठे आंसू और नाटकीयता के अलावा क्या होगा.

ये लोग आपको तिरंगे की चादर में लपेट कर हिंदुत्व का मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण दे रहे थे, इसलिए नहीं कि आप सात्विक और आध्यात्मिक बन जाएं, इसलिए कि किसी की हत्या के वक्त हिंदुत्व के नाम पर आप चुप रहना सीख लें. आपकी चुप्पी ने साबित कर दिया कि ये सफल हो चुके हैं.

इस हिंदुत्व से न आपको रोज़गार मिला, न मिलेगा, न अस्पताल मिला, न मिलेगा, न ही ईमानदार पुलिस मिलेगी, न मिली और न ही निर्भीक और बेहतर न्याय व्यवस्था मिली, न मिलेगी. बस एक भीड़ मिली जो हर हफ्ते देश के किसी कस्बे में हाथों में तलवार लिए दौड़ती नज़र आती है.

यही है विचारधारा जो आपको हर तरह से ठीक नज़र आए, इसके लिए सेना का इस्तमाल किया गया. पूर्व सैनिकों को टीवी पर बिठा कर पाकिस्तान को सामने लाया गया ताकि आप पाकिस्तान-पाकिस्तान करते हुए अपने पड़ोस के मुसलमान से नफ़रत करने लगे. आप उन मुद्दों की तरफ लौट कर देखिए तो उन रास्तों पर आपकी संवेदनाओं के क़त्ल के निशान मिलेंगे.

गोरक्षा के नाम पर भीड़ ने हत्याएं की, आप चुप रहे. कहते रहे कि यह सब आपकी आस्था का सवाल है.गोहत्या नहीं चलेगी. मानव हत्या चलेगी? मंदिर भी तो आपकी आस्था का सवाल है, तो क्या उसके भीतर बलात्कार चलेगा? आपका ईमान नहीं डोला क्योंकि आप हत्यारे बन चुके हैं.

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अब आप उस भीड़ के बिना नहीं रह सकते. इसलिए आप इस भीड़ के बग़ैर सत्ता की कल्पना करने से डरते हैं. कश्मीरी पंडितों के नाम पर आपके मन में मुसलमानों के प्रति ज़हर भरा गया. रमेश कुमार जल्ला जाबांज़ और शानदार अफ़सर के नेतृत्व में आठ वर्षीय लड़की की हत्या और बलात्कार के मामले में चार्जशीट बनी है, आपको रमेश कुमार जल्ला से भी नफ़रत हो गई.

लड़की के परिवार को वक़ील नहीं मिला तो दीपिका आईं जो ख़ुद एक कश्मीरी पंडित हैं. जिस समाज ने नाइंसाफियां झेली हैं, उसे पता है नफ़रत के नाम पर हत्याओं के इस अंतहीन सिलसेला का दर्द. उसके नाम पर राजनीति करने वालों ने चार साल में एक बार भी कश्मीरी पंडितों का नाम नहीं लिया, बोले भी तो एक कश्मीरी पंडित की निष्ठा पर सवाल उठाने के लिए. कमाल की राजनीति है.

रायसीना हिल्स गूगल में डाल कर देखिए, वो आपकी कारों को वहां तक पहुंचा देगा, जहां आप 2012 में गए थे. उससे पहले आप ख़ुद को नफ़रत की इस राजनीति में सर्च कीजिए, आपकी लाश नज़र आएगी, कुछ लोग नज़र आएंगे जो कह रहे होंगे कि अभी तुम नहीं मरे हो क्योंकि सवाल करने वाले बंगाल पर नहीं बोले, केरल पर नहीं बोले. अधमरे से पड़े हुए तुम चुप रहो क्योंकि तुम्हारी चुप्पी एक आदमी के राज करने के शौक को पूरा करने के लिए ज़रूरी है. उसका राज ही तुम्हारा राज है.

(यह लेख मूलतः रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा पर प्रकाशित हुआ है.)

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