हिंदू संगठनों ने कोर्ट से कहा, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद शुद्ध रूप से संपत्ति विवाद

उच्चतम न्यायालय में हिंदू संगठनों तर्क दिया कि मामले की सुनवाई के लिए इस वृहद पीठ को नहीं सौंपा जाना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 15 मई को होगी.

Ayodhya Babri Masjid PTI
(फाइल फोटो: पीटीआई)

उच्चतम न्यायालय में हिंदू संगठनों तर्क दिया कि मामले की सुनवाई के लिए इस वृहद पीठ को नहीं सौंपा जाना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 15 मई को होगी.

Babri Masjid PTI
(फाइल फोटोः पीटीआई)

नई दिल्लीः अयोध्या में विवादित स्थल को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हिंदू संगठनों ने बीते 27 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय से कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद शुद्ध रूप से सिर्फ़ ‘संपत्ति विवाद’ है और इसे वृहद पीठ को नहीं सौंपा जाना चाहिए.

शीर्ष अदालत से संगठनों ने कहा कि मामले को वृहद पीठ को सौंपने के लिए ‘राजनीतिक या धार्मिक संवेदनशीलता’ का मुद्दा आधार नहीं हो सकता और 1992 में हुए विध्वंस के बाद भारत आगे बढ़ चुका है.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ से मूल वादकारी गोपाल सिंह विशारद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि इस मामले को वृहद पीठ को सौंपने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि तीन सदस्यीय पीठ इस पर पहले से ही विचार कर रही है.

विशारद उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने 1950 में दीवानी मुकदमा दायर किया था.

साल्वे ने कहा, ‘1992 की घटना के बाद से देश आगे बढ़ चुका है और आज हमारे सामने शुद्ध रूप से भूमि विवाद का मुद्दा ही है. न्यायालय को उसके समक्ष उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर ही निर्णय करना होगा. इसका फै़सला का़नून के अनुरूप ही करना होगा.’

उन्होंने याचिकाकर्ता एम. सिद्दीक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन और राजू रामचंद्रन द्वारा इसे संवेदनशील मुद्दे के रूप में पेश करने के तरीके पर सवाल उठाए.

गोपाल सिंह विशारद और एम. सिद्दीक दोनों ही राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में मूल मुद्दई थे ओर दोनों का ही निधन हो चुका है तथा अब उनके कानूनी वारिस उनका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

रामचंद्रन ने कहा था कि इसके महत्व को देखते हुए इसे वृहद पीठ को सौंप देना चाहिए. उन्होंने कहा था कि सिर्फ कानूनी सवाल की वजह से नहीं बल्कि देश के सामाजिक ताने-बाने पर इसके व्यापक असर की वजह से ही उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने इस पर विचार किया था.

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह इस पर फैसला करेगी कि क्या अयोध्या में विवादित भूमि के अधिग्रहण के मामले में 1994 का पूरा फैसला या इसका एक हिस्सा पुनर्विचार के लिए वृहद पीठ को सौंपा जाए.

New Delhi: Nirvani Ani Akhara's Mahant Dharam Das along with a lawyer comes out of the court after a hearing on Ram Mandir-Babri Masjid case at Supreme Court in New Delhi on Friday. PTI Photo by Ravi Choudhary (PTI4_27_2018_000118B)
नई दिल्ली में 27 अप्रैल को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट परिसर में अपने वकील के मौजूद निर्माेही अखाड़ा के महंत धर्म दास. (फोटोः पीटीआई)

हालांकि साल्वे ने कहा कि राजनीतिक दृष्टि, धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील होने जैसे तथ्यों को न्यायालय के कक्ष से बाहर रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह मालिकाना हक़ का विवाद है जिसका फैसला इस आधार पर होना चाहिए कि संपत्ति ‘ए’ की है या ‘बी’ की.

शीर्ष अदालत की परंपराओं का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यदि उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ कोई फैसला देती है तो उसके खिलाफ अपील पर उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ही फैसला करती है.

साल्वे ने तीन तलाक़ मामले का भी ज़िक्र किया जिसकी पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई की थी और कहा कि वृहद पीठ ने इस मामले में निर्णय किया क्योंकि यह लिंग न्याय के महत्वपूर्ण पहलू से संबंधित था.

धवन और रामचंद्रन के दृष्टिकोण पर सवाल उठाते हुए साल्वे ने कहा कि पांच या सात न्यायाधीशों की पीठ को सौंपे गए मामलों में बहुत ही गंभीर सवाल उठाए गए थे.

राम लला विराजमान की ओर से पूर्व अटाॅर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता के. पराशरण ने साल्वे की दलीलों का समर्थन किया और कहा कि इस मामले की सुनवाई सिर्फ तीन सदस्यीय पीठ को ही करनी चाहिए.

उन्होंने भी कहा कि न्यायालय को इसे पांच न्यायाधीशों की पीठ को नहीं भेजना चाहिए क्योंकि एक बार फिर अनेक साक्ष्य और दस्तावेजों की जांच करनी होगी और वृहद पीठ को यह नहीं करना चाहिए क्योंकि यह संपत्ति विवाद है.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर बीते 27 अप्रैल को सुनवाई अधूरी रही. अब इस मामले में 15 मई को आगे सुनवाई होगी.

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस तीन सदस्यीय खंडपीठ के पास चार दीवानी वादों में उच्च न्यायालय के बहुमत के फैसले के खिलाफ 14 अपीलें विचारार्थ लंबित हैं.

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन बराबर हिस्सों में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बांटने का आदेश दिया था.

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