एंटी रोमियो स्क्वाड: स्त्री को क़ाबू में करने का नया हथियार

प्रेम समाज की सीमाओं को तोड़ता है, एक स्तर पर समानता भी लाता है. समाज और पितृसत्ता के ठेकेदार तो इसके ख़िलाफ़ रहेंगे ही, क्योंकि प्रेम के कारण न सिर्फ़ स्त्रियों, बल्कि युवा पुरुष वर्ग पर भी प्रभुत्व ख़त्म हो जाएगा, इसलिए उनके लिए वो अस्वीकार्य है.

//

प्रेम समाज की सीमाओं को तोड़ता है, एक स्तर पर समानता भी लाता है. समाज और पितृसत्ता के ठेकेदार तो इसके ख़िलाफ़ रहेंगे ही, क्योंकि प्रेम के कारण न सिर्फ़ स्त्रियों, बल्कि युवा पुरुष वर्ग पर भी प्रभुत्व ख़त्म हो जाएगा, इसलिए उनके लिए वो अस्वीकार्य है.

Anti Romeo Squad PTI
बुधवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एंटी रोमियो स्क्वाड ने साथ नज़र आए लड़के लड़कियों पर कार्रवाई की. (फोटो: पीटीआई)

एंटी रोमियो स्क्वाड का जब ज़िक्र आया तब सोचा नहीं कि वास्तव में, यह बनने वाला है. अब जबकि बन गया तो ऊपर कहीं बैठे शेक्सपीयर भी इस हैरतअंगेज़ हंगामे को देख सोच रहे होंगे कि मैंने तो यह भी लिखा कि,‘नाम में क्या रखा है’ और यहां सारा हंगामा ही नाम पर बरपा है.

सबसे ज़्यादा तो लोग इसी तर्क के साथ भिड़े हुए हैं कि रोमियो एक महान आख्यान का नायक और प्रेमी क़िरदार है. उसे छेड़छाड़ करने वाला क्यों बना रहे हो? एक त्रासद प्रेम-कथा का नायक जब एक भरे-पूरे समाज में छिछोरे और छेड़खानी करने वालों का प्रतीक बन गया तब लोगों ने विस्मय नहीं किया, लेकिन इस विशेष सुरक्षादल के नामकरण पर जाने लोग इतने आश्चर्य से क्यों भर गए हैं? जबकि वक़्त की मांग नाम से ज़्यादा काम पर ध्यान देने की है.

मुद्दे पर आने से पहले मेरा एक सवाल है, क्या आपको सच में लगता है कि यह स्क्वाड बनाने वालों को रोमियो के बारे में नहीं पता है? जी, उनको प्रेम, मुहब्बत, इश्क़ और छेड़छाड़, ज़बरदस्ती, बलात्कार का अंतर पता है और पर वे इसे समझना चाहेंगे इसमें मुझे घोर संदेह है. जानना हमेशा मान लेना, समझ जाना नहीं होता न? उनके लिए छेड़छाड़ और जबरन की जा रही चीज़ें स्वीकार्य हैं पर प्रेम नहीं. यह बात अजीब लग रही है आपको? आप भला हमारे समाज को किन चश्मों से देखते हैं कि रह-रह कर आश्चर्य में भर उठते हैं?

अपनी बात स्पष्ट करने से पहले आपको इस एंटी रोमियो स्क्वाड के बारे में बताती हूं. दरअसल, कॉलेजों, स्कूलों, गली-मुहल्लों, पार्कों, सिनेमाघरों, बाज़ार इत्यादि में घूमने वाले मनचले शोहदों की पहचान कर उनको चेतावनी देने और उनके अभिभावकों को समझाने का काम करने वाला है.

अब सवाल यह है कि क्या यह हर बार कार्रवाई किसी की शिकायत पर करेगा या स्व-विवेक से भी? स्व-विवेक से कैसे तय करेगा कि कौन छेड़ रहा है और कौन साथ में चल रहा है? लड़कियों की शिकायत ली जाएगी या उनके अभिभावकों की या उनको संरक्षण में मान उनके लिए उचित-अनुचित स्वयं समाज तय कर देगा? मसलन, अगर किसी लड़की का एक लड़का दोस्त है और उसके बड़े भाई को यह बात पसंद नहीं तो ये कौन तय करेगा कि वो दोस्त है या छेड़खानी करने वाला शोहदा? क्या आपको पता नहीं प्रेम के क़िस्सों में हमारी पुलिस भी अभिभावक ही हो जाती है?

हमारे यहां प्रेम निषिद्ध है. यहां प्रेम वर्जित है. यहां विवाह होते हैं प्रेम नहीं. प्रेम का मतलब उछृंखलता, नाक कटाना, इज़्ज़त गंवाना जैसा बहुत कुछ होता है. जिस समाज में बेटी-बहन इज़्ज़त का प्रतीक मानी जाती है और यों तो उसकी ओर देखने वाले को भी सबक सिखाना ज़रूरी माना जाता है. फिर एक दिन किसी अजनबी आदमी को मां-बाप, रिश्तेदार, समाज की अनुमति से उसका साथी तय कर देते हैं. ढेरों लोगों की गवाही में कुछ अटपटे मन्त्रों (इसलिए अटपटे कह रही हूं कि जिनका विवाह होता है वो ज़्यादातर उन बातों को, मन्त्रों को समझ नहीं पाते) के बाद वही आदमी एक बिस्तर साझा करने के योग्य हो जाता है.

यहां मैं बहुसंख्यक लोगों के बारे में लिख रही हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि अल्पसंख्यक समुदाय में ऐसी बातें नहीं प्रचलित हैं. विवाह हो या निक़ाह, प्रेम से ज़्यादा माता-पिता द्वारा किए चयन को ही वरीयता मिलती है.

यदि कोई लड़की/स्त्री किसी लड़के/पुरुष को परिचय, दोस्ती, प्रेम और लालसावश ही चुनती है तो वो सबकी, माने उस परिवार, समुदाय और गांव की भी, बेइज़्ज़ती हो जाती है. मुझे पहले कभी भी समझ नहीं आया कि स्वयं द्वारा चयनित प्रेम या यों कहें कि सम्भोग ही इस समाज में इतना घृणित क्यों माना जाता है कि उसके लिए लोग क़त्ल तक कर दिए जाते हैं. वहीं परिवार के लोगों द्वारा थोपा या दिया सम्भोग पवित्र माना जाता है?

फिर जब सोचना शुरू किया तो पाया कि क्योंकि प्रेम उदार बनाता है, प्रेम समाज की सीमाओं (धर्म, जाति, बिरादरी और भी बहुत) को तोड़ता है, प्रेम एक स्तर पर समानता भी लाता है. इसलिए समाज और पितृसत्ता के ठेकेदार तो उसके ख़िलाफ़ रहेंगे ही. प्रेम के कारण न सिर्फ़ स्त्रियों बल्कि युवा पुरुषवर्ग पर भी प्रभुत्व ख़त्म हो जाएगा, इसलिए इनके लिए वो अस्वीकार्य है.

Anti Romeo Squad PTI
बुधवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एंटी रोमियो स्क्वाड ने साथ नज़र आए लड़के लड़कियों पर कार्रवाई की. (फोटो: पीटीआई)

आपने देखा है न दहेज़ का रोना रोते, बेटी को न चाहने की वजह दहेज़ की लोभी वृत्ति को बताने और लड़की को बोझ मानने वाले तथाकथित संस्कारी लोगों को? वे हर हाल में इन्हीं रूढ़ियों का वहन करना चाहते हैं, जिनका रोना रोते हैं. बेटी/बेटा कोई इन सीमाओं से हट प्रेम कर ले तो दहेज़ इनके लिए मूल समस्या नहीं कटी हुई अदृश्य नाक है.

इसलिए हममें से जो भ्रमित हो रहे हैं कि उनके त्रासद नायक ‘रोमियो’ को प्रेम से वंचित कर छेड़छाड़ का प्रतीक बनाया जा रहा है. उनको बता दूं कि मजनूं, रोमियो हमारे समाज में बहुत पहले ही प्रेमी से गिरकर शोहदों का विशेषण बन चुके हैं. यह नाम नहीं, काम का रोना है. ये प्रेम के निषेध का एक संस्कारी और सरकारी उपाय है. कहीं पुलिस आएगी रोकने तो कहीं पुलिस बने भीतर से रोमियो और बाहर से लंठ, जिनको कोई मौक़ा नहीं मिला प्रेम का, कोई समझदार लड़की आज तक दुत्कार देती रही हो, जो प्रेम-विहीन और कुंठित है, वो आएंगे सबक सिखाने.

एक घटना बताती हूं कि होता क्या है. कुछ दिनों पहले की बात है. गुडगांव के संभ्रांत इलाक़े में रहने वाली एक दोस्त सपरिवार एक बड़े पार्क में गई. अचानक उसके एक दोस्त (प्रेमी नहीं दोस्त) का फोन आया. वे सब तुरंत वापस नहीं आ रहे थे तो दोस्त को भी वहीं बुला लिया. अब बाक़ी लोग घूमने में लगे और वे दोनों वहीं एक बेंच पर बैठ बातें करने लगे. घर के तमाम लोग साथ थे और किसी को कोई ऐतराज़ नहीं था. कुछ देर बाद वे दोनों रुआंसे से आए. पार्क की चहारदीवारी कूद एक आदमी आया और उनको धमकाने लगा कि क्यों एक साथ बैठे हो? घर वालों ने वहां मौजूद गार्ड से बात की तो वो सुनने को राज़ी नहीं था.

तो यह तो है समाज की मानसिकता. जिसमें एक लड़की-लड़का बात भी करें तो ग़लत. पुलिस वाले क्या यूरोप से आयातित किए जाएंगे कि सिर्फ़ छेड़छाड़ करने वालों को ख़ास सेंसर से पकड़ लेंगे? बूचड़खाने बंद होने की ख़ुशी और उत्साह में जहां लोग ख़ुद ही आग लगा देते हैं, वहां क्या ख़ुद से बने एंटी रोमियो स्क्वाड के गुर्गे नहीं होंगे जो बदले और अपने फ्रस्टेशन के लिए प्रेमियों को सताएंगे? जितना ज़रूरी छेड़छाड़ की रोकथाम है उतना ही ज़रूरी स्वयंभू और स्वघोषित संस्कृति-रक्षकों पर लगाम लगाना भी. वर्ना पहले भी ऐसे अभियान शुरू किए गए हैं जिनका नतीजा अच्छा नहीं रहा.

वैसे भी अगर पहले से व्यवस्था है शिकायत पर कार्रवाई करने की तो ये शिकार पर निकलने जैसा फ़रमान क्यों? अच्छा उद्देश्य है कि छेड़खानी और बदमगजी जैसी घटनाएं थमें और लड़कियां सड़कों पर, सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित महसूस करें. लेकिन ऐसा क्यों लग रहा है कि सुरक्षा के नाम पर ये उनपर, उनके चयन की आज़ादी पर और नकेल कसने वाला क़दम है?

जिनको स्त्री के हित के लिए नहीं उसको क़ाबू में करने के लिए क़ानून और नियम बनाना है, वे सबसे पहले उसकी सुरक्षा की ही आड़ लेते हैं.

(सुदीप्ति अजमेर के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में पढ़ाती हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq