संसद में बोले शरद यादव, यह भाषण कोई नहीं छापेगा

राज्यसभा सांसद शरद यादव ने यह भाषण 22 मार्च 2017 को राज्यसभा में दिया. सदन में चर्चा के दौरान अपनी बात रखते हुए शरद यादव ने देश में पत्रकारिता की ​दशा और दिशा पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. पढ़ें पूरा भाषण...

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शरद यादव (फोटो: पीटीआई)

जदयू सांसद शरद यादव ने यह भाषण 22 मार्च, 2017 को राज्यसभा में दिया. अपनी बात रखते हुए उन्होंने देश में पत्रकारिता की दशा और दिशा पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. पढ़ें पूरा भाषण…

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जदयू सांसद शरद यादव. (फाइल फोटो: पीटीआई)

हिंदुस्तान का जो लोकतंत्र है, जो पार्लियामेंट है, उसमें दोनों सदन चुने हुए सदन हैं. इन दोनों सदनों के ऊपर हिंदुस्तान के पूरे लोगों की हिफाजत का जिम्मा है. हम सब लोगों की बात का हिंदुस्तान के लोगों के पास पहुंचने का रास्ता एक ही है और वह मीडिया है. आज हालत ऐसी है, एक नया मीडिया, विजुअल मीडिया आया है, सोशल मीडिया आया है.

मैंने एक-दो बात सच्ची कही, उपसभापति जी, मैं आपसे कह नहीं सकता कि सोशल मीडिया किस तरह से बढ़ा है, उसमें कई तरह की अफवाह चल रही है, लेकिन किस तरह से गाली-गलौज चल रही है, उसका कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है.

मजीठिया कमीशन कब से मीडिया के लिए बना हुआ है. आज ये सारा मीडिया- हम लोकतंत्र में चुनाव सुधार की बात कर रहे हैं कि चुनाव सुधार कैसे हो? इस चुनाव सुधार की सबसे बड़ी बात है- हमारी लोकशाही और लोकतंत्र कहां जा रहा है, इसको वहां पहुंचाने वाले कौन लोग हैं? वह तो मीडिया ही है, जिसको चौथा खंभा कहते हैं, वही है ना? उसकी क्या हालत है?

पत्रकार के लिए मजीठिया कमीशन बना हुआ है. याद रखना मीडिया और पत्रकारिता का मतलब है पत्रकार और वह उसकी आत्मा है.

यह लोकशाही या लोकतंत्र जो खतरे में हैं, उसका एक कारण यह है कि हमने पत्रकार को ठेके में नहीं डाल दिया, बल्कि हायर एंड फायर एक नई चीज़ यूरोप से आई है यानी सबसे ज्यादा हायर एंड फायर का शिकार यदि कोई है, तो वह पत्रकार है. मैं बड़े-बड़े पत्रकार के साथ रहा हूं, मैं बड़े-बड़े लोगों के साथ रहा हूं.

हमने पहले भी मीडिया देखा है, आज का मीडिया भी देखा है. उसकी सबसे बड़ी आत्मा कौन है? सच्ची खबर आए कहां से? राम गोपाल जी, जब पिछला चुनाव विधानसभा का हो रहा था, तो मैंने खुद जाकर चुनाव आयोग को कहा था कि यह पेड न्यूज है.

आज जो पत्रकार है, वे बहुत बेचैन और परेशान हैं, पत्रकार के पास ईमान भी है, लेकिन वह लिख नहीं सकता. मालिक के सामने उसे कह दिया जाता है कि इस लाइन पर लिखो, इस तरह से लिखो. उसका अपना परिवार है, वह कहां जाए? वह सच्चाई के लिए कुछ लिखना चाहता है.

हमारे लोकतंत्र में बाजार आया, खूब आए लेकिन यह जो मीडिया है, इसको हमने किनके हाथों में सौंप दिया है? यह किन-किन लोगों के पास चला गया है? एक पूंजीपति है इस देश का, उसने 40 से 60 फीसदी मीडिया खरीद लिया है. इस देश का क्या होगा?

अब हिंदुस्तान टाइम्स भी बिकने वाला है. कल बिक गया? कैसे चलेगा यह देश? यह चुनाव सुधार, यह बहस, ये सारी चीजें कहां आएंगी? कोई यहां पर बोलने के लिए तैयार नहीं है?

निश्चित तौर पर मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जो मीडिया है, लोकशाही में, लोकतंत्र में, यह आपके हाथ में है, इस पार्लियामेंट के हाथ में है. कोई रास्ता निकलेगा या नहीं निकलेगा? ये जो पत्रकार है, ये चौथा खंभा है, उसके मालिक नहीं हैं और हिंदुस्तान में जब से बाजार आया है, तब से तो लोगों की पूंजी इतने बड़े पैमाने पर बढ़ी है.

मै आज बोल रहा हूं, तो यह मीडिया मेरे खिलाफ तंज कसेगा, वह बुरा लिखेगा. लेकिन मेरे जैसा आदमी, जब चार-साढ़े चार साल जेल में बंद रहकर आजाद भारत में आया, तो अगर अब मैं रुक जाऊंगा तो मैं समझता हूं कि मैं हिंदुस्तान की जनता के साथ विश्वासघात कर के जाऊंगा.

सर, आज सबसे ज्यादा ठेके पर लोग रखे जा रहे हैं और पूरे हिंदुस्तान में लोगों के लिए कोई नौकरी या रोजगार नहीं पैदा हो रहा है. सब जगह पूंजीपति और सारे प्राइवेट सेक्टर के लोग हैं.

अखबार में सबसे ज्यादा लोगों को ठेके पर रखा जाता है. इस तरह मजीठिया कमीशन कौन लागू करेगा? इनके कर्मचारियों को कोई यूनियन नहीं बनाने देता है. आप किसी पत्रकार से सच्ची बात कहो, तो वह दहशत में आ जाएगा क्योेंकि उसका मालिक दूसरे दिन उसे निकाल कर बाहर करेगा. तो यह मीडिया कैसे सुधरेगा?

Indian press photographers stand behind a fence for security reasons as they take pictures of Belgium's Queen Paola in a school in Mumbai November 6, 2008. Belgium's King Albert II and Queen Paola are on a official state visit to India. REUTERS/Francois Lenoir (INDIA)
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

अगर वह नहीं सुधरेगा तो चुनाव सुधार की यह बहस यहीं मर जाएगी. ये भी उसे छांट-छांटकर देंगे. उसका मालिक बोलेगा कि किस का देना है, किस का नहीं देना है.

हम रोज यहां बोलते हैं और ये रोज बोलता है कि हमारे जैसे आदमी को मत छापो क्योंकि यह सच बोल रहा है और सच ही इस बैलेट पेपर का ईमान है. इस ईमान को चारों तरफ से पूंजी ने घेर लिया है. बड़े पैसे वालों ने घेर लिया है और अब सब से बड़ी मुश्किल यह है कि बहस करें तो कैसे करें?

सर यह देश बहुत बड़ा है, एक कांटिनेंट है, लेकिन हमारी बहस और हमारी बात कहीं जाने को तैयार नहीं है, कहीं पहुंचने को तैयार नहीं है. ये अखबार के पूंजीपति मालिक कई धंधे कर रहे हैं.

इन्होंने बड़ी-बड़ी जमीनें ले ली हैं और कई तरह के धंधे कर रहे हैं. वे यहां भी घुस आते हैं. इनको सब लोग टिकट दे देते हैं. मैं आपसे कह रहा हूं इस तरह यह लोकतंत्र कभी नहीं बचेगा.

सर, इसके लिए एक कानून बनना चाहिए कि अगर कोई मीडिया हाउस चलाता है या अखबार चलाता है , तो वह कोई दूसरा धंधा नहीं कर सकता है. सर, इस देश में क्रास होल्डिंग बंद होनी चाहिए. यह कानून पास करो, फिर देखेंगे कि कैसे हिंदुस्तान नहीं सुधरता?

हमारे जैसे कई लोग हिंदुस्तान में हैं जिन्होंने सच को बहुत बगावत के साथ बोला है. पहले भी हिंदुस्तान को बनाने में ऐसे लोगों ने काम किया है. मैं नहीं मानता कि आज ऐसे लोग नहीं है. ऐसे बहुत लोग हैं जो सच को जमीन पर उतारना चाहते हैं लेकिन कैसे उतारें?

यानी इस चौथे खंबे पर आपातकाल लग गया है. हिंदुस्तान में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है. यह जो पत्रकार ऊपर बैठा हुआ है, वह कुछ नहीं लिख सकता है क्योंकि उसके हाथ में कुछ नहीं है. यही जब सूबे में जाता है तो मीडिया वहां की सरकार की मुट्ठी में चला जाता है.

जो पत्रकार सच लिखते हैं उसे निकालकर बाहर कर दिया जाता है. फिर यह देश कैसे बनेगा? आप कैसे सुधार कर लोगे? मैं आप से ही नहीं सब से पूछना चाहता हूं कि सुधार कैसे होगा?

सर, इस देश में मीडिया के बारे में बहस क्यों नहीं होती? इस देश में ऐसा कानून क्यों नहीं बनता कि कोई भी व्यापार या किसी तरह की क्रास होल्डिंग नहीं कर सकता? तब हिंदुस्तान बनेगा. सर, हिंदुस्तान जिस दिन आजाद हुआ था, तो इसी तरह था. गणेश शंकर विद्यार्थी थे, जिन्होंने हिंदुस्तान के लिए जान दे दी थी.

मैं इस पार्लियामेंट में रविशंकर प्रसाद जी आप से निवेदन करना चाहता हूं कि आज आप वहां हैं, हम यहां हैं, कल चले जाएंगे, लेकिन आने वाले हिंदुस्तान के गरीब, मजदूर, किसान से लोकतंत्र दूर हट गया है. आप कितने ही तरीके से स्टैंड-अप करिए, आप कितनी भी तरह की योजनाएं, लेकिन वह दूर हटता जाएगा.

हम सभी ने बहुत ताकत लगाई है, लेकिन वह गरीब तक नहीं पहुंच पाता है. सर, जब इनके यहां चुनाव हो रहा था, तो मैं तीन अखबारों के पास गया था. उन अखबार में मेरा कहा नहीं छप रहा था.

मै महीने भर से कंप्लेंट कर रहा था, लेकिन उनमें मेरे बारे में एक लाइन नहीं आई. वे आज भी नहीं छापेंगे क्योंकि वहां मालिक बैठा हुआ है. वे सारे पत्रकार मेरी बात को हृदय से जब्त करेंगे, लेकिन उसका मालिक उसकी तबाही करेगा.

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