गुजरात: अडानी के अस्पताल में पांच महीनों में 111 शिशुओं की मौत

अस्पताल द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 के शुरुआती पांच महीनों में अस्पताल में जन्मे या जन्म के बाद भर्ती कराए गए 777 नवजातों में से 111 की मौत हो गई. सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं.

गुजरात के भुज स्थित जीके जनरल हॉस्पीटल (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

अस्पताल द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 के शुरुआती पांच महीनों में अस्पताल में जन्मे या जन्म के बाद भर्ती कराए गए 777 नवजातों में से  111 की मौत हो गई. सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं.

गुजरात के भुज स्थित जीके जनरल हॉस्पीटल (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)
गुजरात के भुज स्थित जीके जनरल हॉस्पीटल (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

भुज: गुजरात सरकार ने शुक्रवार को एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन द्वारा संचालित भुज के जीके जनरल हॉस्पिटल में पांच महीने में 111 नवजात शिशुओं की मौत की जांच का आदेश दिया है.

अस्पताल द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2018 के पहले पांच महीनों (20 मई तक) में 111 शिशुओं की मौत हुई. जहां अस्पताल प्रबंधन ने इन मौतों के पीछे के कारण शिशुओं को अस्पताल में देरी से भर्ती कराया जाना या कुपोषण को बताया है, तो वहीं सरकार ने जांच के लिए विशेषज्ञों की एक टीम गठित कर दी है.

गुजरात स्वास्थ्य आयुक्त जयंती रवि ने कहा, ‘हमने मौतों के कारणों का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम गठित की है. टीम के रिपोर्ट सौंपने के बाद हम उचित कदम उठाएंगे.’

अस्पताल अधीक्षक जीएस राव द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी से 20 मई के बीच 777 नवजात शिशुओं (अस्पताल में जन्मे और जन्म के बाद अस्पताल में भर्ती कराए गए) में से  111 की मौत हो गई, जो 14 प्रतिशत की मृत्यु दर दिखाता है.

तो वहीं, 2017 में अस्पताल में 258 नवजातों की मौत हुई थी. जबकि, 2015 और 2016 में अस्पताल में क्रमश: 184 और 164 नवजात मारे गए थे.

राव ने बताया, ‘2015 में अस्पताल में भर्ती कुल बच्चों पर मृत बच्चों का प्रतिशत 19 था, 2016 में 18 और 2017 में 21 था, जो वर्तमान वर्ष से अपेक्षाकृत अधिक है. इस साल मई तक 111 बच्चों की मौत हुई है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मृत्यु दर चूंकि 14 प्रतिशत है, इसलिए मुझे लगता है कि यह पिछले सालों से कम है और जिस तरीके से हम काम कर रहे हैं, यह साल के अंत में सबसे कम ही रहेगी.’

उनके अनुसार, ‘मौतों का एक बड़ा कारण बच्चों को अस्पताल पहुंचाने में देरी है. क्योंकि महत्वपूर्ण समय कच्छ जिले के अंदरूनी हिस्सों से बच्चों को भुज लाने में ही बर्बाद हो जाता है. अगर एक परिवार 250 किलोमीटर का सफर तय करके यहां आता है, तो यात्रा में लगी देरी निश्चित रूप से बच्चे के बचने की संभावनाओं पर असर डालती है. हमारा स्टाफ नियमित तौर पर अपने बीच इन मुद्दों पर चर्चा करता है और हम मौतों में कमी लाने पर काम कर रहे हैं.’’

राव ने कहा, ‘मौतों का एक कारण समय पूर्व जन्म भी है. एक अन्य कारण कुपोषण है क्योंकि मां उचित आहार नहीं ले पाती हैं जो गर्भ में बच्चे के वजन बढ़ाने में सहायक होता है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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