कोबरापोस्ट स्टिंग: दो बांग्ला अख़बारों का हिंदुत्ववादी प्रोपेगेंडा से इनकार

जब कोबरापोस्ट के स्टिंग में देश के प्रमुख मीडिया संस्थान बिकने को बेताब दिखे, वहीं पश्चिम बंगाल के बर्तमान पत्रिका और दैनिक संबाद अख़बारों ने कोबरापोस्ट की पेशकश यह कहते हुए ठुकरा दी कि इस तरह का कंटेंट प्रकाशित करना कंपनी पॉलिसी और संस्थान की आत्मा के ख़िलाफ़ है.

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जब कोबरापोस्ट के स्टिंग में देश के प्रमुख मीडिया संस्थान बिकने को बेताब दिखे, वहीं पश्चिम बंगाल के बर्तमान पत्रिका और दैनिक संबाद अख़बारों ने कोबरापोस्ट की पेशकश यह कहते हुए ठुकरा दी कि इस तरह का कंटेंट प्रकाशित करना कंपनी पॉलिसी और संस्थान की आत्मा के ख़िलाफ़ है.

Bartaman Dainik Sambad Collage
(बाएं) बर्तमान पत्रिका और दैनिक संबाद (दाएं) (फोटो साभार: संबंधित ई-पेपर)

नई दिल्ली: 25 मई को कोबरापोस्ट के स्टिंग ‘ऑपरेशन 136’ का दूसरा हिस्सा जारी किया गया. इस तहकीकात में दावा किया गया है कि 27 मीडिया संस्थान पैसों के एवज में ख़बरों का सौदा करने को तैयार दिखे, लेकिन इसमें दो संस्थान ऐसे भी थे, जिन्होंने अंडरकवर रिपोर्टर द्वारा श्रीमद भगवद गीता प्रचार समिति के नाम पर ‘हिंदुत्व’ की ख़बरें फैलाने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया.

इस तहकीकात में देश के बड़े-बड़े मीडिया संस्थान कोबरापोस्ट के राजनीतिक विचारधारा के पक्ष में बड़े बजट के विज्ञापन, जिंगल्स और चलाने को तैयार दिखे. कोबरापोस्ट के रिपोर्टर ने ‘आचार्य अटल’ बनकर कई मीडिया संस्थानों से बात की थी. इसी कड़ी में वे पश्चिम बंगाल के चर्चित अख़बारबर्तमान पत्रिका  के सीनियर जनरल मैनेजर (विज्ञापन) आशीष मुखर्जी से मिले.

बाकी मुख्यधारा के मीडिया संस्थानों के उलट, आशीष ने किसी भी तरह का धार्मिक कंटेंट प्रकाशित करने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कोबरापोस्ट के रिपोर्टर को मीडिया के आदर्श समझाते हुए कहा कि उन्हें यह पूर्व संपादक सेनगुप्ता ने सिखाया था कि यह ‘संस्थान की आत्मा’ के विरुद्ध है.

उन्होंने कहा कि सेनगुप्ता कहते थे कि आशीष बाबू, वो विज्ञापन, जो खुद (या किसी अन्य के) भगवान, अच्छा या सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करते हैं, को छोड़कर आप हर विज्ञापन लेंगे.

यहां आशीष मुखर्जी जिन सेनगुप्ता की बात कर रहे हैं, वो बरुन सेनगुप्ता हैं, जो इस अख़बार के संस्थापक थे. उन्होंने आपातकाल के समय इंदिरा गांधी द्वारा मीडिया को दिए आदेश मानने की बजाय उसके खिलाफ होकर जेल जाना पसंद किया था.

मुखर्जी इस रिपोर्टर द्वारा फैलाये गए जाल में नहीं फंसे, जो खुद को साधु बताते हुए इस बातचीत को छिपाए हुए कैमरा पर रिकॉर्ड कर रहा था. जब मुखर्जी उसकी बात नहीं मानते तब वह अख़बार के लिए अपना विज्ञापन बजट 1.5 करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़ कर देने की बात कहता है, जिस पर मुखर्जी कहते हैं, बिल्कुल भी नहीं… ऐसा हो ही नहीं सकता.’

इसके बाद कोबरापोस्ट के इस रिपोर्टर ने पश्चिम बंगाल के एक अन्य अख़बारदैनिक संबाद  के एक अधिकारी से संपर्क किया, जिसे उन्होंने 2019 के आम चुनाव के मद्देनज़र ‘हिंदुत्व एजेंडा’ से जुड़े जिंगल्स प्रकाशित करने की बात की. यह अधिकारी किसी भी धार्मिक मकसद का कोई भी विज्ञापन प्रकाशित करने से इनकार करते हुए कहते हैं, ‘यही हमारी पालिसी है, ये सभी लोगों के लिए है.’

इस मामले पर कोबरापोस्ट की रिपोर्ट कहती हैं, ‘उन्होंने हमारे द्वारा बताए गए संगठन का नाम सुनते ही किसी भी तरह के विज्ञापन से मना कर दिया, जो व्यापारिक मामले में भी मीडिया संस्थान के मूल सिद्धांतों पर टिके रहने को दिखाता है.’

कोबरापोस्ट की रिपोर्ट में दोनों अख़बारों के इस कदम पर आश्चर्य जताया गया है, साथ ही इनकी सराहना भी की गयी है. खासकरदैनिक बर्तमान  के संदर्भ में, उनके एक बड़ी रकम के लिए भी पत्रकारिता के अपने सिद्धांत ताक पर न रखने पर कोबरापोस्ट ने कहा कि ऐसे अख़बार उम्मीद की एक किरण की तरह हैं जो बताते हैं कि भारतीय मीडिया अभी पूरी तरह नहीं बिका है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए के यहां क्लिक करें.

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