प्रणब का संघ मुख्यालय जाकर भाषण देना इतिहास की महत्वपूर्ण घटना: लालकृष्ण आडवाणी

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि इस प्रकार खुलेपन की भावना और आपसी सम्मान के साथ विचारों के आदान-प्रदान से सहिष्णुता और सौहार्द की भावना तैयार करने में मदद मिलेगी.

लाल कृष्ण आडवाणी. (फोटो साभार: यूट्यूब)

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि इस प्रकार खुलेपन की भावना और आपसी सम्मान के साथ विचारों के आदान-प्रदान से सहिष्णुता और सौहार्द की भावना तैयार करने में मदद मिलेगी.

लाल कृष्ण आडवाणी. (फोटो साभार: यूट्यूब)
लाल कृष्ण आडवाणी. (फोटो साभार: यूट्यूब)

नई दिल्ली: भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय जाने और भारतीय राष्ट्रवाद पर विचार व्यक्त करने को देश के समसामयिक इतिहास की महत्वपूर्ण घटना बताया है.

उन्होंने कहा कि इस प्रकार खुलेपन की भावना और आपसी सम्मान के साथ विचारों के आदान-प्रदान से सहिष्णुता और सौहार्द की भावना तैयार करने में मदद मिलेगी.

आडवाणी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का निमंत्रण स्वीकार करने के लिए प्रणब मुखर्जी और उन्हें आमंत्रित करने के लिये सरसंघचालक मोहन भागवत की सराहना की. प्रणब मुखर्जी कांग्रेस से कई दशकों तक जुड़े रहे.

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि दोनों के विचार अपने आप में महत्वपूर्ण विषय को परिलक्षित करते हैं.

आरएसएस के आजीवन स्वयंसेवक आडवाणी ने कहा कि उनका मानना है कि प्रणब मुखर्जी और भागवत ने विचारधाराओं एवं मतभेदों से परे संवाद का सही अर्थो में सराहनीय उदाहरण पेश किया है.

उन्होंने कहा कि दोनों ने भारत में एकता के महत्व को रेखांकित किया जो बहुलतावाद समेत सभी तरह की विविधता को स्वीकार एवं सम्मान करती है.

आडवाणी ने मोहन भागवत की ओर से वार्ता के माध्यम से देश के विभिन्न वर्गो तक पहुंच बनाने के प्रयासों की सराहना की.

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘इस प्रकार खुलेपन की भावना और आपसी सम्मान के साथ विचारों के आदान-प्रदान से सहिष्णुता, सौहार्द और सहयोग की भावना तैयार करने में मदद मिलेगी जो हमारे साझा सपनों के भारत के निर्माण में सहायक होगा.’

प्रणब मुखर्जी की सराहना करते हुए आडवाणी ने कहा कि उन्होंने आरएसएस का निमंत्रण स्वीकार करके विनम्रता और सदाचार का परिचय दिया है.

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक जीवन में उनके लंबे और व्यापक अनुभव ने उन्हें एक राजनेता बनाया है जो विभिन्न विचारधाराओं और राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों के बीच चर्चा परिचर्चा एवं सहयोग की जरूरत को समझता है.

मालूम हो कि प्रणब मुखर्जी के संघ मुख्यालय जाकर कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर पिछले कुछ दिनों चर्चा और बहस जारी थी.

अहमद पटेल, जयराम रमेश, सीके जाफ़र शरीफ़ समेत कई कांग्रेस नेताओं ने भी उन्हें लिखा जबकि आनंद शर्मा समेत कुछ नेता मुखर्जी को नागपुर नहीं जाने के लिए उन्हें मनाने भी गए थे.

कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद शर्मा ने ट्वीट कर कहा, ‘वरिष्ठ नेता और विचारक प्रणब मुखर्जी की आरएसएस मुख्यालय में तस्वीरों से कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ता और भारतीय गणराज्य के बहुलवाद, विविधता एवं बुनियादी मूल्यों में विश्वास करने वाले लोग दुखी हैं.’

प्रणब मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर उनकी बेटी और कांग्रेस नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी सवाल उठाए थे.

शर्मिष्ठा ने कहा था कि वह (प्रणब) नागपुर जाकर भाजपा एवं आरएसएस को फ़र्ज़ी ख़बरें गढ़ने और अफवाहें फैलाने की सुविधा मुहैया करा रहे हैं.

दिल्ली कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता शर्मिष्ठा ने ट्वीट किया, ‘आशा करती हूं कि प्रणब मुखर्जी को आज (बुधवार) की घटना से इसका अहसास हो गया होगा कि भाजपा का डर्टी ट्रिक्स विभाग किस तरह काम करता है.’

इस कार्यक्रम के बाद कांग्रेस की ओर से कहा गया कि प्रणब मुखर्जी ने संघ के कार्यक्रम में शामिल होकर अपने भाषण से उसे आईना दिखाया है.

पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से कहा, ‘पूर्व राष्ट्रपति का आरएसएस मुख्यालय का दौरा बड़ी चर्चा का विषय बन गया था. देश की विविधता और बहुलता में विश्वास करने वाले चिंता व्यक्त कर रहे थे. लेकिन आज मुखर्जी ने आरएसएस को सच का आईना दिखाया.’

सुरजेवाला ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी सरकार को भी राजधर्म की याद दिलाई.

उन्होंने कहा, ‘मुखर्जी ने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में आरएसएस को सच का आईना दिखाया है. उनको बहुलवाद, सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता और समग्रता के बारे में पाठ पढ़ाया है.’

मालूम हो कि सात जून को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर में संघ मुख्यालय पर हुए कार्यक्रम में शरीक हुए और राष्ट्रवाद पर भाषण दिया था.

अपने भाषण में उन्होंने बहुलतावाद एवं सहिष्णुता को ‘भारत की आत्मा’ क़रार देते हुए गुरुवार को कहा कि धार्मिक मत और असहिष्णुता के माध्यम से भारत को परिभाषित करने का कोई भी प्रयास देश के अस्तित्व को कमज़ोर करेगा.

उन्होंने कहा था, ‘हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को सभी प्रकार के भय एवं हिंसा, भले ही वह शारीरिक हो या मौखिक, से मुक्त करना होगा. प्रति दिन हम अपने आसपास बढ़ी हुई हिंसा देखते हैं. इस हिंसा के मूल में भय, अविश्वास और अंधकार है.’

मुखर्जी ने कहा कि असहिष्णुता से भारत की राष्ट्रीय पहचान कमज़ोर होगी. उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्रवाद सार्वभौमवाद, सह-अस्तित्व और सम्मिलन से उत्पन्न होता है.

इससे पहले मुखर्जी जब संघ मुख्यालय आए तो उन्होंने संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को ‘भारत माता का महान सपूत’ बताया. हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की थी.

मुखर्जी ने अपने संबोधन से पहले संघ की आगंतुक पुस्तिका में लिखा, ‘मैं भारत माता के एक महान सपूत के प्रति अपनी श्रद्धा एवं सम्मान व्यक्त करने यहां आया हूं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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