कहां गईं मध्य प्रदेश की 23 लाख गर्भवती महिलाएं?

कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में पिछले पांच सालों में तकरीबन 93.7 लाख गर्भवती महिलाओं ने प्रसव पूर्व देखभाल के लिए अपना पंजीकरण करवाया था पर प्रसव सिर्फ 69.8 लाख के हुए. ऐसे में सवाल उठता है कि बाकी 23.9 लाख गर्भवती महिलाओं का क्या हुआ?

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A mother carries her son to a health centre in Kushbari village, about 315 km (195 miles) north of the eastern Indian city of Kolkata, November 11, 2008. Every year, about 78,000 mothers die in childbirth and from complications of pregnancy in India, according to the United Nations Children's Fund (UNICEF). Picture taken November 11, 2008. To match feature INDIA-MATERNALDEATHS. REUTERS/Parth Sanyal (INDIA) - RTR23VG3

कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में पिछले पांच सालों में तकरीबन 93.7 लाख गर्भवती महिलाओं ने प्रसव पूर्व देखभाल के लिए अपना पंजीकरण करवाया था पर प्रसव सिर्फ 69.8 लाख के हुए. ऐसे में सवाल उठता है कि बाकी 23.9 लाख गर्भवती महिलाओं का क्या हुआ?

प्रतीकात्मक फोटो (साभार: रॉयटर्स/पार्थ सान्याल)

विधानसभा में 24 मार्च को पेश की गई कैग की इस रिपोर्ट में राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ताहाल स्थिति उजागर होती है. हिंदुस्तान टाइम्स की ख़बर के अनुसार, कैग की रिपोर्ट के मुताबिक 2011 से 2016 के दौरान हुए प्रसव संबंधी आंकड़ों में पाई गई यह गड़बड़ी राज्य में बिगड़ते लिंग अनुपात का कारण भी हो सकती है. गौरतलब है कि राज्य में लिंगानुपात लगातार बिगड़ता जा रहा है. रिपोर्ट में दिए गए सालों के दौरान यह अनुपात 52:48 का है.

स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे एक एनजीओ ‘जन स्वास्थ्य अभियान’ से जुड़े अमूल्य निधि कहते हैं कि इस रिपोर्ट से राज्य सरकार के स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए सुधारों के दावे की सच्चाई सामने आ गई है.

वे कहते हैं, ‘उन 23 लाख गर्भवती महिलाओं का क्या हुआ? जिस तरह यह डेटा दिखा रहा है क्या उस हिसाब से यह समझा जाए कि लड़के की चाहत में गर्भ गिरा दिया गया? या फिर प्रशासन ने एक बार प्रसव पूर्व देखभाल के लिए पंजीकृत हुई गर्भवती महिला की दोबारा कोई सुध लेने की ज़रूरत ही नहीं समझी?’

2011 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में लिंगानुपात 1000 लड़कों पर 912 लड़कियों का था. लगातार गिर रहे इस आंकड़े की वजह जन्म और उसके बाद लड़कियों की ठीक से देखरेख न होना भी है. हालांकि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा इस बारे में काम किया गया है, पर इसके बावजूद 2011-12 और 2015-16 के बीच 35.89 लाख लड़कों की तुलना में 33.36 लाख लड़कियां ही पैदा हुईं.

कैग की इस रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि इस तरह बिगड़ते लिंगानुपात पर ध्यान देने की ज़रूरत है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि राज्य के प्रमुख स्वास्थ्य सचिव के अनुसार, ‘इन 23 लाख गर्भवतियों के गायब होने’ के आंकड़े का सच जानने के लिए घर और निजी अस्पतालों में हुए प्रसवों की बेहतर जानकारी के लिए सरकार को रिपोर्टिंग तकनीक बेहतर करनी चाहिए.

रिपोर्ट में लिखा है, ‘प्रमुख स्वास्थ्य सचिव के इस जवाब को स्वीकार नहीं किया गया है क्योंकि 2012 से 2015-16 के बीच लिंगानुपात में किसी तरह का कोई सुधार नहीं हुआ है. प्रसव पूर्व देखभाल के लिए पंजीकृत हुई गर्भवती महिलाओं की संख्या और कुल प्रसवों की संख्या में बहुत बड़ा अंतर है. यह प्रसव पूर्व देखभाल के पंजीकरण और उसके बाद की देखभाल के लिए काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों और उनके जांच अधिकारियों की कमी को दिखाता है.’

इस रिपोर्ट में शामिल कमियों में राज्य का शिशु मृत्यु दर में अन्य राज्यों से पिछड़ना भी है. राज्य में यह आंकड़ा प्रति 1000 पर 52 का है, जबकि देश में यह 1000:40 का अनुपात है. वहीं माता और शिशु की देखभाल से जुड़ा एक और खराब आंकड़ा भी सामने आया है.

प्रसव पूर्व देखभाल के लिए पंजीकृत हुई 93.7 महिलाओं में से मात्र 56 प्रतिशत (52 लाख) महिलाओं ने ही गर्भावस्था की पहली तिमाही के अंदर पंजीकरण करवाया था, वहीं लगभग 21 फीसदी महिलाओं का बाकी दो तिमाहियों में होने वाला चेकअप हुआ ही नहीं.

रिपोर्ट में राज्य सरकार की मध्य प्रदेश स्वास्थ्य सेवा गारंटी योजना पर भी सवाल उठाए गए हैं. इस योजना के तहत सरकार को हर तरह के स्वास्थ्य केंद्रों पर न्यूनतम आवश्यक दवाइयां और लैब से जुड़ी सुविधाएं मुहैया करवानी थीं पर रिपोर्ट के अनुसार जिन स्वास्थ्य केंद्रों पर जांच की गई वहां योजना में बताई गई सुविधाएं और लैब सुविधाएं नहीं पाई गईं.

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