अदालत में ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के लिए लंबे समय से की जा रही मांग को सुप्रीम कोर्ट ने मंज़ूर कर लिया है. शीर्ष अदालत ने बिना आवाज़ रिकॉर्डिंग करने वाले कैमरे लगाने के लिए सभी हाईकोर्ट को आदेश दिए हैं.
पारदर्शिता की दिशा में एक कदम उठाते उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि हर राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश में कम से कम दो जिलों में अदालत परिसरों में दो महत्वपूर्ण स्थानों पर सीसीटीवी कैमरा लगाया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने देशभर के उच्च न्यायालय को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि जिला और सत्र न्यायालय तीन महीने के अंदर अदालत कक्षों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं लेकिन उन्हें श्रव्य रिकार्डिंग न हो.
शीर्ष अदालत ने लेकिन यह स्पष्ट किया कि सीसीटीवी फुटेज आरटीआई के तहत उपलब्ध नहीं होगा और संबंधित उच्च न्यायालय की अनुमति के बगैर वह किसी को नहीं दिया जाएगा.
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे प्रयोग की रिपोर्ट कैमरे लगाए जाने के महीने भर के अंदर संबंधित उच्च न्यायालयों के महापंजीयक द्वारा उच्चतम न्यायालय के महासचिव को सौंपी जाए जो उसे तालिकाबद्ध कर शीर्ष अदालत के समक्ष पेश करेंगे.
इस मामले की अगली सुनवाई 9 अगस्त को होगी.
प्रद्युम्न बिष्ट नामक एक व्यक्ति ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर निचली अदालतों की सुनवाई की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए उसकी दृश्य श्रव्य रिकार्डिंग करने का निर्देश देने की मांग की है.
अदालतों की कार्यवाही रिकॉर्ड करने के लिए लंबे समय से मांग उठती रही है. अगस्त, 2013 में भी कानून मंत्री ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा था कि वे अदालत की कार्यवाही को रिकॉर्ड करने की मंजूरी दें.
इस संबंध में न्याय विभाग ने हलफनामे में कहा है कि वो ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के हमेशा पक्षधर रहा है. इससे न्यायालय की पारदर्शिता बनी रहती है और कार्यवाही का इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड भी रहता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)