बिहार में ​फिर बाढ़ की आहट, पिछले साल के प्रभावितों को अब तक नहीं मिला मुआवज़ा

बिहार में एक बार फिर कई नदियां उफान पर हैं. पिछले साल राज्य के 17 जिलों में बाढ़ आई थी. इससे करीब 1.71 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे. 8.5 लाख लोगों के घर टूट गए थे और करीब 8 लाख एकड़ फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई थी.

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बिहार में एक बार फिर कई नदियां उफान पर हैं. पिछले साल राज्य के 17 जिलों में बाढ़ आई थी. इससे करीब 1.71 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे. 8.5 लाख लोगों के घर टूट गए थे और करीब 8 लाख एकड़ फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई थी.

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मुज़फ्फरपुर में बूढ़ी गंडक का जलस्तर 36 घंटों में साढ़े तीन हाथ बढ़ा है. पानी लगातार बढ़ रहा है. तस्वीर मुज़फ्फरपुर के अखाड़ा घाट की है, जहां नदी के किनारे बने घरों में पानी प्रवेश कर चुका है. (फोटो: Special Arrangement)

38 वर्षीय मुकेश साहनी इन दिनों बूढ़ी गंडक की ओर देखते हैं, तो डर के मारे सिहर उठते हैं. बूढ़ी गंडक इस साल भी उफान पर है. नदी के गुस्से से बचने के लिए मुकेश के पास विस्थापन के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.

वह अपने बीबी-बच्चों के साथ मुजफ्फरपुर में सिकंदरपुर बांध के किनारे छोटे से घर में रहते हैं. मुकेश की तरह ही बूढ़ी गंडक के किनारे रहनेवाले हजारों लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं.

मुकेश बताते हैं, ‘बुधवार से शुक्रवार तक बूढ़ी गंडक में साढ़े तीन हाथ पानी बढ़ चुका है. नदी की जो मूल धारा है उसकी छोर से पानी ऊपर आ गया है.’ पानी अगर इसी रफ्तार से बढ़ता रहा, तो तीन-चार दिनों में घरों में पानी घुस जाएगा.

मुकेश कहते हैं, ‘पानी बढ़ने की जो रफ्तार है, उसे देखकर लगता है कि इस साल भी बाढ़ हमारा घर उजाड़ देगी.’ पिछले साल बाढ़ आई थी, तो मुकेश को अपने बाल-बच्चों संग सिकंदरपुर बांध पर शरण लेनी पड़ी थी, इस साल भी वह यही करेंगे.

बूढ़ी गंडक का पानी अखाड़ा घाट और आसपास के इलाकों में घुस चुका है. मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से जानकारी मिली है कि 5 ब्लॉक के करीब 5 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं.

बूढ़ी गंडक पश्चिम चंपारण से बहती हुई पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर होते हुए खगड़िया जाकर गंगा में मिल जाती है. अतः बूढ़ी गंडक में जलस्तर बढ़ने से मुजफ्फरपुर के साथ ही पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण और समस्तीपुर भी प्रभावित होगा.

पूर्वी और पश्चिमी चंपारण में एक-एक पल गुजरने के साथ बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है. प्रशासन ने इन दोनों जिलों में रहने वाले लोगों को अलर्ट किया है. नदियों के जलस्तर पर निगरानी रखने के लिए होमगार्ड को लगाया गया है. जिन क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा दिख रहा है, वहां से लोगों को हटाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने को कहा गया है.

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गंगा नदी में इतना पानी नहीं था. पिछले तीन-चार दिनों से लगातार पानी बढ़ रहा है. (फोटो: Special Arrangement)

गुरुवार को पश्चिमी चंपारण के नरकटियागंज सब-डिविजन में औरैया नदी से नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स की टीम ने एक शव भी बरामद किया. शव की शिनाख्त साधु यादव के रूप में हुई है. बताया जाता है कि वह औरैया नदी से संलग्न नाले से गुजर रहा था, तभी डूब गया.

दूसरी तरफ, बागमती में भी जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और मुजफ्फरपुर के कटरा ब्लॉक में प्रवेश कर चुका है.

‘बिहार का शोक’ कही जाने वाली कोसी नदी में भी दिनोंदिन पानी बढ़ रहा है. कोसी का जलस्तर बढ़ने से कोसी के तटबंधों के भीतर रहने वाली 10 लाख आबादी को विस्थापन का दंश झेलना पड़ेगा. इसके अलावा बाढ़ से घर बर्बाद होंगे और मवेशी मारे जाएंगे, वह नुकसान अलग होगा.

सुपौल में कोसी तटबंध के भीतर मंगुरार गांव में रहनेवाले लक्ष्मी प्रसाद यादव अब तक बाढ़ के कारण सात बार विस्थापित हो चुके हैं. वह कहते हैं, ‘नदी की पेटी पूरी तरह भर चुकी है. बाढ़ कब आ जाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता है.’

पहले की बाढ़ के दौरान आई कठिनाइयों को याद करते हुए वह कहते हैं, ‘बाढ़ आती है, तो कोसी तटबंध पर जाना पड़ता है या फिर बांध की दूसरी तरफ शरण लेनी पड़ती है. खाने से लेकर पीने के पानी तक के लिए जूझना पड़ता है. सबसे बुरी हालत तो मवेशियों की होती है. उनके लिए चारे का इंतजाम भी मुश्किल होता है.’

लक्ष्मी प्रसाद यादव आगे बताते हैं, ‘बाढ़ में घर टूटने व मवेशियों के मरने पर कोई मुआवजा नहीं मिलता है. हां, अगर फसल बर्बाद हुई, तो कुछ रुपये मिल जाते हैं.’

दूसरी ओर, गंगा नदी के जलस्तर में भी तेजी से इजाफा हो रहा है. पटना के दीघा घाट में 1.71 मीटर और गांधी घाट पर 67 सेंटीमीटर पानी बढ़ा है. भागलपुर में गंगा नदी के किनारे बसे गांव कागजीटोला के लोगों ने बताया कि पानी में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है, जिससे बाढ़ की आशंका बढ़ गई है.

कागजीटोला निवासी योगेंद्र साहनी कहते हैं, ‘जिस रफ्तार से जलस्तर बढ़ रहा है, उसे देखकर लगता है कि इस साल भी बाढ़ का कहर बरपेगा.’ भागलपुर में गंगा के किनारे 100 से अधिक गांव बसे हैं और बाढ़ के कटाव के कारण हर साल कुछ घर गंगा में दफ्न हो जाते हैं.

योगेंद्र साहनी बताते हैं, ‘गंगा में बाढ़ के कारण होनेवाले कटाव से पिछले 20-30 सालों में कागजीटोला के 100 घर गंगा में समा चुके हैं. इस साल बाढ़ आएगी, तो कुछ और घर नदी में चले जाएंगे.’

बताया जा रहा है कि पिछले दिनों उत्तर बिहार और नेपाल में भारी बारिश तथा दो बराजों से कोसी में पानी छोड़े जाने के कारण कोसी, बागमती, बूढ़ी गंडक, गंगा, घाघरा, कमला बालान, महानंदा आदि नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी हो रही है.

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नेपाल में भारी बारिश और बराज से पानी छोड़ने के कारण कोसी का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है. कोसी तटबंध के भीतर रहनेवाले लोगों का कहना है कि जिस तरह कोसी में पानी बढ़ रहा है, कभी भी बाढ़ आ सकती है. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

नेपाल सीमा से रक्सौल व अन्य इलाके जलमग्न हो चुके हैं. बागमती का जलस्तर बढ़ने से उसका पानी पूर्वी चंपारण और शिवहर को जोड़ने वाली सड़क से होकर गुजर रहा है, जिस कारण लोगों को रोड पार करने के लिए नावों का सहारा लेना पड़ रहा है.

पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज में भी बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. पूर्णिया और अररिया के तो कई हिस्सों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर चुका है.

पिछले साल भी बिहार में बाढ़ ने कोहराम मचाया था. राज्य के 17 जिलों में बाढ़ का पानी घुस गया था. बाढ़ से करीब 1.71 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे.

बाढ़ के कारण 8.5 लाख लोगों के घर टूट गए थे और उत्तर बिहार में 514 लोगों की मौत हो गई थी. बाढ़ के कारण फसलों को भी नुकसान हुआ था. आंकड़ों के अनुसार, करीब 8 लाख एकड़ में लगी खरीफ की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई थी.

वहीं, उत्तर बिहार में 700 किलोमीटर स्टेट हाईवे और डेढ़ दर्जन नेशनल हाईवे बाढ़ से क्षतिग्रस्त हो गए थे. रोड बर्बाद होने से करीब 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.

बाढ़ का हवाई सर्वेक्षण करने गए नीतीश कुमार ने बाढ़ पीड़ितों को न केवल समुचित आर्थिक मदद का भरोसा दिया था. उन्होंने यह भी आश्वासन दिया था कि अगले साल से प्रशासन पहले से जरूरी कदम उठाएगा, ताकि जान-माल का कम से कम नुकसान हो.

आर्थिक मदद के आश्वासन को लेकर पिछले साल बाढ़ से प्रभावित हुए लोगों का कहना है कि उन्हें अब तक सरकारी सहायता का इंतजार है.

मुजफ्फरपुर के मुकेश साहनी कहते हैं, ‘मैंने खेत में फसल लगा रखी थी, वो बर्बाद हो गई थी, लेकिन मुआवजा नहीं मिला. हमारे टोले में रहने वाले ज्यादातर लोगों की रोजी-रोटी मछलियों पर निर्भर है. पिछले साल की बाढ़ में मोहल्ले की आठ से ज्यादा नावें व मछली पकड़ने के लिए रखे जाल बह गए थे.’

वह आगे बताते हैं, ‘10 से 15 लोगों की क्षमता वाली एक नाव बनवाने में 35 हजार रुपये खर्च होते हैं. सरकार ने चवन्नी तक नहीं दी.’

बहरहाल, अब तक कई जिलों में बाढ़ का पानी घुस जाने के बावजूद बिहार सरकार ने बाढ़ प्रभावित जिलों के बारे में कोई घोषणा नहीं की है. अलबत्ता, सरकार की तरफ से यह आश्वासन जरूर मिल रहा है कि राज्य सरकार बाढ़ से निबटने को पूरी तरह तैयार है.

बाढ़ग्रस्त इलाकों में रहनेवाले लोग सरकार के इस आश्वासन को खूब समझते हैं. कोसी क्षेत्र में रहनेवाले 65 वर्षीय मंगल प्रसाद यादव कहते हैं, ‘हमें सरकार के आश्वासन का मतलब मालूम है. हर साल सरकार यही आश्वासन देती है और हर साल बाढ़ तबाही मचाती है.’

उन्होंने कहा, ‘बाढ़ की चपेट में आने वाले लोगों को अब सरकारी मशीनरी पर कोई भरोसा नहीं और न ही उनके आश्वासन पर. सरकार जब कहती है कि हमने पूरी तैयारी की है, तो इसका अर्थ यह है कि इस साल बाढ़ से राहत के नाम पर खूब लूटखसोट होने वाली है.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पटना में रहते हैं.)