फ्रांस से आगे निकला भारत लेकिन प्रति व्यक्ति जीडीपी फ्रांस से 20 गुना कम

भारत की आबादी एक अरब 37 करोड़ है और फ्रांस की साढ़े छह करोड़. फ्रांस की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत से 20 गुना ज़्यादा है. ये आपको अरुण जेटली नहीं बताएंगे क्योंकि इससे हेडलाइन की चमक फीकी हो जाती है.

(फोटो: रॉयटर्स)

भारत की आबादी एक अरब 37 करोड़ है और फ्रांस की साढ़े छह करोड़. फ्रांस की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत से 20 गुना ज़्यादा है. ये आपको अरुण जेटली नहीं बताएंगे क्योंकि इससे हेडलाइन की चमक फीकी हो जाती है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

विश्व बैंक की नई रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है. भारत के पहले फ्रांस छठे स्थान पर हुआ करता था. जून 2017 के अंत तक भारत की जीडीपी 2.597 ट्रिलियन की हो गई है, फ्रांस की जीडीपी 2.582 ट्रिलियन है. पांचवें नंबर पर ब्रिटेन है जिसकी जीडीपी 2.622 ट्रिलियन डॉलर की है. ट्रिलियन का अरब ख़रब आप ख़ुद कर लें, मैं करता हूं तो कभी-कभी ग़लती हो जाती है. पांच, छह और सात रैंक के देशों की जीडीपी में ख़ास अंतर नहीं है. फिर भी लिस्ट में भारत फ्रांस से आगे है.

भारत की आबादी एक अरब 37 करोड़ है और फ्रांस की साढ़े छह करोड़. इससे भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इसका मतलब भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी फ्रांस की प्रति व्यक्ति जीडीपी का मामूली हिस्सा भर है. फ्रांस की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत से 20 गुना ज़्यादा है. ये आपको अरुण जेटली नहीं बताएंगे क्योंकि इससे हेडलाइन की चमक फीकी हो जाती है. टाइम्स आॅफ इंडिया की एक ख़बर में यह विश्लेषण मिला है.

अमेरिका की जीडीपी है 19.39 ट्रिलियन डॉलर, चीन की जीडीपी 12.24 ट्रिलियन डॉलर, जापान की जीडीपी 4.87 ट्रिलियन, जर्मनी की जीडीपी 3.68 ट्रिलियन डॉलर, ब्रिटेन 2.62 ट्रिलियन, भारत 2.597 ट्रिलियन है.

11 जुलाई के इकोनॉमिक टाइम्स की अनुभूति विश्नोई ने लिखा है कि मुकेश अंबानी ख़ुद जियो इंस्टिट्यूट का प्रस्ताव लेकर कमेटी के सामने पेश हुए थे. उनके साथ विनय शील ओबरॉय शिक्षा सलाहकार बन कर गए थे. इस ख़बर के मुताबिक मुकेश अंबानी ने ही सारे सवालों के जवाब दिए और उनका यह सपना पिछली सरकार के समय भी मंत्रालय के सामने रखा गया था.

मुकेश अंबानी के शिक्षा सलाहकार विनय शील ओबरॉय मंत्रालय में उच्च शिक्षा सचिव थे जब 2016 के बजट में इंस्टीट्यूट आॅफ एमिनेंस की घोषणा हुई थी. 2016 के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय और मानव संसाधन मंत्रालय के बीच इसकी रूपरेखा को लेकर कई बार चर्चाएं होती रही हैं.

फरवरी 2017 में विनय शील रिटायर हो जाते हैं. सितंबर 2017 में इंस्टीट्यूट आॅफ एमिनेंस की नियमावलियों की घोषणा होती है. इंस्टीट्यूट आॅफ एमिनेंस के लिए कमेटी की घोषणा फरवरी में ही होती है.

आईएएस के लिए नियम है कि रिटायर होने के एक साल बाद ही कोई कमर्शियल नौकरी का प्रस्ताव स्वीकार कर सकते हैं. ऐसा लगता है कि उन्होंने एक साल के बाद ही अंबानी के समूह को ज्वाइन किया है.

पत्रकार अनुभूति विश्नोई ने रिलायंस और विनय शील ओबेरॉय को सवाल भेजे थे मगर जवाब नहीं मिला. अनुभूति ने लिखा है कि उसने रिलायंस के प्रस्ताव देखे हैं जिसमें कहा गया है कि पांच साल में वह 6000 करोड़ रिसर्च पर ख़र्च करेगी और दुनिया की शीर्ष 50 यूनिवर्सिटी से करार करेगी. शिक्षा को लेकर अपने अनुभवों में रिलायंस ने यही लिखा है कि उसके कई स्कूल चलते हैं जिसमें 13000 छात्र पढ़ते हैं. खुद भी मुकेश अंबानी आईआईएम बेंगलुरु से जुड़े रहे हैं.

11 जुलाई के ही बिजनेस स्टैंडर्ड में जियो इंस्टिट्यूट के बारे में नितिन सेठी और अदिती फड़नीस की रिपोर्ट छपी है. इसमें लिखा है कि इंस्टीट्यूट आॅफ एमिनेंस के नियम कायदे बनने के दो सप्ताह के भीतर RFIER( Reliance Foundation Institution of Education Research) रिलायंस समूह का हिस्सा हो गया. यह कंपनी महाराष्ट्र में जियो इंस्टिट्यूट बनाएगी.

इंस्टीट्यूट आॅफ एमिनेंस के लिए दो नियमों ने खासतौर से रिलायंस की बहुत मदद की. एक था कि जो व्यक्ति यूनिवर्सिटी का प्रस्ताव लेकर आएगा उसकी अपनी आर्थिक हैसियत 50 अरब रुपये से अधिक की होनी चाहिए. दूसरा प्रावधान था कि उस समूह का किसी भी क्षेत्र में योजना को ज़मीन पर उतारने के मामले में शानदार रिकॉर्ड होना चाहिए.

20 अगस्त 2017 को नए प्रावधानों की अधिसूचना जारी हुई थी. 12 सितंबर 2017 को कंपनी बनी जिसके सदस्य बने नीता धीरुभाई अंबानी और मुकेश धीरूभाई अंबानी. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नए नियमों ने रिलायंस के लिए रास्ता खोल दिया.

अप्लाई करने की तीन श्रेणियां थीं, सरकारी, प्राइवेट और ग्रीनफील्ड. रिलायंस ने ग्रीनफील्ड की श्रेणी में अप्लाई किया था. इस श्रेणी में ज़मीन के बारे में बताना ज़रूरी नहीं था. इसी श्रेणी के आवेदनकर्ताओं से पूछा ज़रूर गया कि ज़मीन है या नहीं. बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि वह यह पता नहीं लगा सका कि रिलायंस ने इस सवाल का क्या जवाब दिया है. वैसे इस योजना के तहत प्राइवेट संस्थान को सरकार एक पैसा नहीं देगी.

बिजनेस स्टैंडर्ड की वीणा मणी की इस रिपोर्ट को पढ़िए. नोटबंदी के तुरंत बाद ख़बर आई थी कि सवा दो लाख शेल कंपनियां हैं, जिनमें 3 लाख निदेशक हैं. उन ख़बरों में इन सभी शेल कंपनियों को ऐसे पेश किया गया जैसे ये काला धन को सफेद करने का ज़रिया हों. बीच-बीच में इससे संबंधित कई ख़बरें आती रहीं मगर मैं ख़ुद भी ट्रैक नहीं रख सका और इससे संबंधित बातें समझ में भी नहीं आती थी. वीणा की रिपोर्ट में इससे संबंधित भी कुछ जानकारियां हैं.

वीणा मनी ने लिखा है कि 13,993 शेल कंपनियां फिर से रजिस्ट्रार आॅफ कंपनी के यहां पंजीकृत हो गईं हैं. नोटबंदी के बाद इनका पंजीकरण रद्द कर दिया गया था. यही नहीं करीब 30,000 लोग फिर से निदेशक बनने के योग्य करार दे दिए गए हैं. इनके नाम भी शेल कंपनियों के ख़िलाफ़ चल रही कार्रवाई के दौरान हटा दिए गए थे. इस ख़बर में यह भी लिखा है कि मंत्री शेल कंपनियों की बेहतर परिभाषा तय करने पर भी काम कर रही हैं.

बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि ऐसी कंपनियों की पहली सूची में पाया गया कि ये कंपनियां सालाना रिपोर्ट और आयकर रिटर्न नहीं भरती हैं. इनकी जांच का काम अभी पूरा नहीं हुआ है. इनमें से कई हज़ार कंपनियों के पास पैन नंबर तक नहीं हैं. अभी तक सरकार के पास सिर्फ 73,000 कंपनियों के ही लेन-देन के रिकॉर्ड आ सके हैं.

नोटबंदी के समय इन कंपनियों में 240 अरब रुपये जमा थे. आय़कर विभाग जांच कर रहा है कि कोई गड़बड़ी तो नहीं हुई है. पिछले साल नवंबर में शेल कंपनियों पर बने टास्क फोर्स की बैठक के दौरान कॉरपोरेट मामलों के महानिदेशक ने सुझाव दिया था कि विभाग को रजिस्ट्रार आफ कंपनी से बात करनी चाहिए ताकि इनमें राजस्व की कमाई के लिए इन कंपनियों को फिर से जीवित किया जा सके.

भारत में 11 लाख कंपनियां पंजीकृत हैं. इनमें से 5 लाख ही पूरी तरह संचालित हैं, शेल कंपनियों के अलावा गायब होने वाली कंपनियां भी हैं. 400 ऐसी कंपनियों का कुछ पता नहीं चल रहा है. किसी को पता नहीं कि ढाई लाख शेल कंपनियों से कितना काला धन मिला मगर इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई भर को ऐसे पेश किया जाता है जैसे काला धन मिल गया है. बार-बार 15 लाख के लिए अपने खाते को देखने की ज़रूरत नहीं है, इधर उधर से ख़बरों की खोजबीन भी करते रहिए.

बिजनेस स्टैंडर्ड में ही एक कॉलम आता है STATSGURU, इसमें आर्थिक आंकड़े होते हैं. इसकी पहली लाइन है कि हाल के आर्थिक आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक वातारण काफी कमज़ोर हो गया है. औद्योगिक गतिविधियां सात महीने में सबसे कम पर हैं. भारत का व्यापार घाटा पांच साल में सबसे अधिक हो गया है. मई 2018 में भारत के नियार्त की वृद्धि दर 20.2 प्रतिशत थी जो जून में घट कर 17.6 प्रतिशत पर आ गई. दूसरी तरफ जून में तेल का आयात बढ़कर 21.3 प्रतिशत हो गया. इस हिसाब से भारत जितना निर्यात कर रहा है उससे अधिक आयात कर रहा है. मई में व्यापार घाटा 14.62 अरब डॉलर था जो जून में बढ़कर 16.61 अरब डॉलर ह गया.

हिंदी के अख़बारों और चैनलों में ये सारी जानकारी नहीं होती है. हिंदी के चैनलों और अख़बारों के पास ऐसी ख़बरों को पकड़ने के लिए जिस निरंतरता और अनुभवी रिपोर्टर की ज़रूरत होती है, वो अब उनके पास नहीं हैं. टीवी चैनलों के पास तो बिल्कुल नहीं होते हैं. इसलिए आपके लिए दोनों अख़बारों में छपी ख़बरों का अनुवाद किया है. ख़ुद के लिए भी और हिंदी के तमाम पाठकों के लिए मुफ्त में यह जनसेवा करता रहता हूं ताकि हमें कुछ अलग संदर्भ और परिप्रेक्ष्य मिले.

यह लेख मूलतः रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.