बिहार बालिका गृह यौन शोषण: लड़कियों की आपबीती रोंगटे खड़े कर देती है

बिहार सरकार के फंड से मुज़फ़्फ़रपुर में चल रहे बालिका गृह में रहने वाली 42 बच्चियों में से अब तक 34 बच्चियों से रेप व यौन शोषण की पुष्टि हो चुकी है.

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Muzaffarpur: Police personnel escort children out of a government-funded shelter, in Muzaffarpur, on Monday, July 23, 2018. A girl of a government shelter home has alleged that one of her fellow inmates was beaten to death and buried at the premises of the facility, and several were raped. (PTI Photo)(PTI7_23_2018_000192B)

बिहार सरकार के फंड से मुज़फ़्फ़रपुर में चल रहे बालिका गृह में रहने वाली 42 बच्चियों में से अब तक 34 बच्चियों से रेप व यौन शोषण की पुष्टि हो चुकी है.

Muzaffarpur: Police personnel escort children out of a government-funded shelter, in Muzaffarpur, on Monday, July 23, 2018. A girl of a government shelter home has alleged that one of her fellow inmates was beaten to death and buried at the premises of the facility, and several were raped. (PTI Photo)(PTI7_23_2018_000192B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

बिहार सरकार के फंड से मुज़फ़्फ़रपुर के साहू रोड में चल रहे बालिका गृह में रहने वाली 42 बच्चियों में से अब तक 34 बच्चियों से रेप व यौन शोषण की पुष्टि हो चुकी है. मुज़फ़्फ़रपुर एसएसपी हरप्रीत कौर ने कहा कि अब तक 34 बच्चियों से रेप व यौन शोषण की पुष्टि हुई है.

बच्चियों को मोकामा, पटना व अन्य जगहों पर स्थित बालिका गृहों में रखा गया है और मनोरोग चिकित्सकों की मदद से उनकी काउंसलिंग की जा रही है. यहां बता दें कि समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (टिस) को बिहार के करीब 100 बाल व बालिका गृहों का सोशल ऑडिट करने को कहा था.

टिस की टीम ‘कोशिश’ ने 6-7 महीने तक सभी गृहों का दौरा किया और साथ ही बच्चे-बच्चियों से बातचीत भी की. टीम ने 27 अप्रैल को समाज कल्याण विभाग को ड्राफ्ट रिपोर्ट सौंपी और रिपोर्ट पर चर्चा करने के लिए वक्त मांगा.

समाज कल्याण विभाग के मुताबिक, टीम ‘कोशिश’ ने 5 या 7 मई को चर्चा करने का वक्त मांगा था, तो 7 मई को चर्चा करने की तारीख मुकर्रर हुई. सात मई की चर्चा के बाद 9 मई को टीम की तरफ से करीब 100 पेज की अंतिम रिपोर्ट सौंपी गई. टिस की रिपोर्ट में 15 गृहों में यौन शोषण व दुर्व्यवहार की बात कही गई है.

समाज कल्याण विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘सोशल ऑडिट की कई प्रतियां छपवाईं गईं और 26 मई को जिला स्तरीय अधिकारियों को रिपोर्ट देकर कहा गया कि वे रिपोर्ट के आधार पर अविलंब कार्रवाई करें.’

रिपोर्ट जब मुज़फ़्फ़रपुर की बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक दिवेश शर्मा के पास पहुंची, तो उन्होंने 31 मई को मुज़फ़्फ़रपुर के महिला थाने में एफआईआर दर्ज कराई.

एफआईआर के आधार पर इस मामले में अब तक एनजीओ के मुखिया ब्रजेश ठाकुर, बालिका गृह में काम करने वाली किरण कुमारी, मंजू देवी, इंदू कुमारी, मीनू देवी, चंदा कुमारी, हेमा मसीह के साथ ही डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर रवि कुमार रोशन और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के सदस्य विकास की गिरफ्तारी हो चुकी है.

इस पूरे मामले में राज्य के समाज कल्याण विभाग की मंत्री कुमारी मंजू वर्मा के पति का नाम भी सामने आ रहा है. मंत्री ने इस संबंध में कहा कि अगर उनके पति दोषी पाये जाते हैं, तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगी.

इस बीच, राज्य सरकार की अपील पर सीबीआई ने आधिकारिक तौर पर मामला अपने हाथ में ले लिया और नए सिरे से जांच शुरू कर दी है.

इस पूरे मामले का आरोपी ब्रजेश ठाकुर है और जिस तरह के नियमों की अनदेखी करके बालिका गृह का संचालन बिना रोकटोक चल रहा था और सरकारी फंड भी मिल रहा था, उससे पता चलता है कि उसकी पैठ सियासी गलियारों से लेकर ब्यूरोक्रेसी के कॉरिडोर तक है. उनकी मदद से वह हर चीज को मैनेज कर लिया करता था.

एनजीओ के साथ ही वह एक हिंदी अखबार प्रातः कमल, उर्दू अखबार हालात-ए-बिहार और अंग्रेजी दैनिक न्यूज नेक्स्ट भी चलाता है. इसका दफ्तर बालिका गृह के प्रांगण में ही है.

दिलचस्प बात तो यह है कि टिस की रिपोर्ट के बाद उसके एनजीओ को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था, इसके बावजूद उसे भिखारियों के लिए आवास बनाने के वास्ते हर महीने 1 लाख रुपये का प्रोजेक्ट दिया गया था. हालांकि, बाद में इस प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया गया.

ब्रजेश ठाकुर के रसूख का अंदाजा इस बात से भी लग जाता है कि 2013 में ही उसके एनजीओ को लेकर समाज कल्याण विभाग को नकारात्मक रिपोर्ट भेजी गई थी, इसके बावजूद एनजीओ को हर साल निर्बाध रूप से फंड मिलता रहा.

इंडियन एक्सप्रेस ने एक जिला स्तरीय अधिकारी के हवाले से लिखा है कि पटना दफ्तर में एनजीओ को लेकर नकारात्मक रिपोर्ट दी गई थी क्योंकि बालिका गृह सघन आबादी वाले इलाके में स्थित था और उसकी सीढ़ियां भी बेहद संकरी थी. इसके साथ ही प्रातः कमल अखबार का दफ्तर भी उसी प्रांगण में, जो कि नहीं होना चाहिए, लेकिन पटना के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने जुबान बंद रखने को कहा.

यही नहीं, बालिका गृह की दयनीय हालत को लेकर बिहार स्टेट कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स की तरफ से भी तत्कालीन डीएम को रिपोर्ट सौंपी थी और बालिका गृह की बच्चियों को वहां से हटाने को कहा था.

कमीशन की चेयरपर्सन डॉ. हरपाल कौर ने द वायर को बताया, ‘हमने जिले के आला अफसरों के साथ बैठक कर कहा था कि बालिका गृह को स्थानांतरित किया जाए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.’ उन्होंने कहा, ‘जब मैं बच्चियों से मिली थी, तो वे रोने लगीं और कहा कि वे अपने घर जाना चाहती हैं.’

बताया जाता है कि साहू रोड में स्थित बालिका गृह के अलावा ब्रजेश ठाकुर चार और एनजीओ चलाता था जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से हर साल 1 करोड़ रुपये दिए जाते थे.

ब्रजेश ठाकुर के अखबारों का प्रसार तो वैसे बहुत कम था, लेकिन सरकारी विज्ञापन नियमित मिलते थे. यही नहीं, प्रातः कमल, हालात-ए-बिहार और न्यूज नेक्स्ट के कम से कम 9 पत्रकारों को एक्रेडिटेशन कार्ड मिला हुआ है. और तो और प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो के एक्रेडिटेड पत्रकारों में ब्रजेश ठाकुर भी शामिल है.

ब्रजेश ठाकुर की बेटी निकिता आनंद का कहना है कि उनके पिता निर्दोष हैं और उन्हें फंसाया जा रहा है. पुलिस ने निकिता आनंद के आरोप को खारिज किया है. मामले की जांच अधिकारी रहीं ज्योति कुमारी ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘पूरे मामले में बिना सबूत के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया गया है.’

Patna: Rashtriya Janata Dal, Congress and Communist Party of India legislators stage a protest against the Bihar shelter home case during the ongoing Monsoon Session, outside Bihar Assembly in Patna on Tuesday, July 24, 2018. (PTI Photo)(PTI7_24_2018_000026B)
पटना में घटना के विरोध में होते प्रदर्शन की एक तस्वीर. (फोटो: पीटीआई)

उन्होंने कहा, ‘जिन-जिन लोगों पर संदेह था, उन सबकी तस्वीर बच्चियों को दिखाई गई. उनके बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग कराई गई और तस्वीरों से शिनाख्त करने के बाद आरोपितों को गिरफ्तार किया गया.’

ज्योति कुमारी बताती हैं, ‘एफआईआर में केवल दो लोग नामजद थे. बच्चियों की शिनाख्त पर दो लोगों के अलावा 8 और आरोपितों को गिरफ्तार किया गया. एक आरोपित अभी भी फरार है. उसके आवास पर नोटिस चस्पां की गई है.’

राजनेताओं के इसमें शामिल होने के सवाल पर केस से जुड़े रहे एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘अभी तक पता नहीं चला है कि कोई नेता इसमें सीधे शामिल रहा है कि नहीं.’

मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड की लगातार रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं, ‘राजनेताओं का इसमें सीधा रोल नहीं है, लेकिन हां, एनजीओ को संचालित करने और नियमित फंड मिलने में कुछ नेताओं की भूमिका रही है. पता तो यह भी चला है कि ब्रजेश ठाकुर इन नेताओं को पैसे दिया करता था ताकि उसका एनजीओ चलता रहे.’

बच्चियों की आपबीती

बालिका गृह से निकाली गई बच्चियों का बयान पॉक्सो कोर्ट के मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया गया है. लड़कियों ने मजिस्ट्रेट के समक्ष जो आपबीती सुनाई है, वह रोंगटे खड़े कर देती है.

बच्चियों ने मजिस्ट्रेट के सामने कहा है कि उन्हें रोज पीटा जाता था, नशीली दवाइयां दी जाती थीं और उनसे रेप किया जाता था. एक बच्ची ने ब्रजेश ठाकुर की तस्वीर की शिनाख्त की और कहा कि होम में उसे ‘हंटरवाला अंकल’ कहा जाता था. उक्त बच्ची ने कहा, ‘वह जब कमरे में दाखिल होते, तो हमारी रूह कांप जाती थी.’

एक अन्य किशोरी ने मजिस्ट्रेट के सामने कहा कि उसे रात में नशीली दवाइयों का गहरा डोज दिया जाता था और जब वह सुबह जगती, तो उसके निजी अंगों में बेइंतहा दर्द होता था और जख्म के निशान भी दिखते. किशोरी यह भी बताया कि वह बालिका गृह की महिला कर्मचारी को यह बात बताती थी, लेकिन वह उसकी बात अनसुनी कर देती.

बच्चियों ने अपने बयान में किरण कुमार और नेहा कुमारी का खौस तौर पर जिक्र करते हुए कहा है कि ब्रजेश के खिलाफ वे कुछ बोलती, तो उन दोनों के अलावा दूसरे स्टॉफ भी उन्हें मारते-पीटते थे.

कुछ बच्चियों ने यह भी बताया है कि जब वे विरोध करती थीं, तो उन्हें कई दिनों तक भूखा रखा जाता था. लड़कियों का यह भी कहना है कि कुछ बच्चियों को रात को बाहर ले जाया जाता था और दूसरे दिन सुबह उन्हें वापस लाया जाता.

बालिका गृह में रात के अंधेरे में आनेवाले बाहरी लोगों का नाम पता तो बच्चियों को नहीं मालूम था, मगर उनकी दरिंदगी ने बच्चियों के जेहन में उनकी शक्ल-ओ-सूरत को चस्पा कर दिया था. सूत्रों के अनुसार, बच्चियां उनकी शिनाख्त ‘तोंदवाला अंकल’, ‘मूंछवाला अंकल’ और ‘नेताजी’ के रूप में करती थी.

सोशल ऑडिट के दौरान बच्चियों से बातचीत करने वाले टिस की टीम ‘कोशिश’ की एक पदाधिकारी ने कहा, ‘बच्चियों की आपबीती ने हमें सदमाग्रस्त कर दिया था. उनकी बातें बेहद परेशान करने वाली थीं. हम भी उस सदमे से उबरने की कोशिश कर रहे हैं.’

समाज कल्याण विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, ‘बच्चियों के साथ दरिंदगी हुई है, उससे वे मानसिक तौर पर बहुत परेशान हैं. इसके साथ ही एक के बाद मजिस्ट्रेट से लेकर महिला आयोग अन्य संगठनों की पूछताछ से भी उन पर मानसिक असर पड़ा है. हम लोग हैदराबाद से मनोरोग चिकित्सकों को बुला कर बच्चियों की काउंसलिंग करा रहे हैं.’

डीसीपीयू व सीडब्ल्यूसी पर था नियमित जांच का जिम्मा

वर्ष 2009 में बिहार में डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट (डीसीपीयू) की स्थापना हुई थी. उस वक्त बिहार अपने इस कदम के लिए सुर्खियों में था. कारण यह था कि बिहार देश का इकलौता राज्य था जहां जिला स्तर पर चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट स्थापित हुआ था.

इस यूनिट में डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर (डीसीपीओ) समेत कई अधिकारियों को रखा गया था. डीसीपीयू को हर महीने बाल व बालिका गृहों में जाकर हालात का जायजा लेने का जिम्मा दिया गया था.

टिस की रिपोर्ट के बाद डीसीपीओ रवि कुमार रोशन जेल में हैं. बच्चियों ने मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए अपने बयान में रवि कुमार रोशन का जिक्र करते हुए कहा है कि चंदा आंटी उन्हें उनके (रोशन) पास भेजती थी.

Muzaffarpur: Police investigate the site where a rape victim was allegedly buried, at a government shelter home in Muzaffarpur, on Monday, July 23, 2018. A girl of the home has alleged that one of her fellow inmates was beaten to death and buried at the premises of the facility, and several were raped. (PTI Photo)(PTI7_23_2018_000186B)
आरोप था कि इस बालिका गृह में एक लड़की की हत्या कर उसका शव जमीन में गाड़ दिया गया है. हालांकि खुदाई में कुछ नहीं मिला. (फाइल फोटो: पीटीआई)

डीसीपीयू के अलावा हर हफ्ते चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के पदाधिकारी भी बालिका गृह में आते थे. उनका काम बच्चियों की काउंसलिंग करना था, लेकिन बच्चियों का आरोप है कि चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के पदाधिकारी भी उन पर यौन अत्याचार किया करते थे. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के आरोपित पदाधिकारी फरार हैं.

डीसीपीयू और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के अलावा डीएसपी हेडक्वार्टर में एक स्पेशल जुवेनाइल पुलिस अफसर की भी नियुक्ति है, जिनका दायित्व बाल व बालिका गृह की नियमित जांच करना है.

पूरे मामले में जो बातें सामने आ रही हैं, उससे यही लगता हैं कि डीसीपीयू और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के पदाधिकारियों ने अपने दायित्व का निर्वाह तो किया नहीं, उल्टे कथित तौर पर अपराध में बराबर के भागीदार बने.

समाज कल्याण विभाग का आंतरिक जांच से इनकार

पूरे मामले में समाज कल्याण विभाग का कामकाज संदेह के घेरे में है क्योंकि इन गृहों को फंड इसी विभाग से जारी किया जाता था. इससे साफ हो जाता है कि इसमें समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत थी.

लेकिन, अब तक इस विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की न तो शिनाख्त हुई है और न ही कोई कार्रवाई. समाज कल्याण विभाग के डायरेक्टर (सोशल वेलफेयर) राज कुमार ने सीधे तौर पर ऐसी किसी कार्रवाई से इनकार किया.

उन्होंने बताया, ‘विभाग किसी भी तरह की आंतरिक जांच नहीं कर रहा है. मामला अब सीबीआई के पास है. सीबीआई तय करे कि कौन दोषी है. अगर समाज कल्याण विभाग के अधिकारी दोषी होंगे, तो सीबीआई कार्रवाई करेगी.’

दूसरी ओर, मामला उजागर होने के बाद अब समाज कल्याण विभाग एहतियाती कदम उठाने पर विचार कर रहा है.

विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम सभी गृहों पर सीसीटीवी कैमरे लगवा रहे हैं. इसके अलावा ऐसा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगाने की भी योजना बना रहे हैं, जिनके जरिए बच्चे-बच्चियां अपनी शिकायत रिकॉर्ड कर सकती हैं. वे जब शिकायत रिकॉर्ड करेंगी, तो वह टेक्स्ट फॉर्म में समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों तक पहुंच जाएगी. इसके अलावा नये सिरे से कोड ऑफ कंडक्ट भी तैयार करवा रहे हैं, जिसमें बाल व बालिका गृहों से जुड़े तमाम पदाधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पटना में रहते हैं.)

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