आरटीआई अधिनियम में बदलाव की तैयारी में सरकार, विरोध शुरू

केंद्र सरकार ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 में बदलाव का नया मसौदा तैयार कर लिया है, इसके लिए 15 अप्रैल तक आम जनता की राय मांगी गई है.

(​फोटो साभार: विकिपीडिया)

केंद्र सरकार ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 में बदलाव का नया मसौदा तैयार कर लिया है. इसके लिए 15 अप्रैल तक आम जनता की राय मांगी गई है.

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नरेंद्र मोदी सरकार ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) क़ानून में बड़ा बदलाव करने जा रही है. सरकार की योजना आरटीआई आवेदन के दौरान अधिकतम 500 शब्दों के नियम के साथ आवेदनकर्ता से अभी लिए जाने वाली फीस को भी बढ़ाने की है.

सरकार ने क़ानून में बदलाव का मसौदा तैयार कर लिया है और 15 अप्रैल तक आम जनता से इस पर राय भी मांगी है. समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, कार्मिक एवं प्रशिक्षण (डीओपीटी) ने अपनी वेबसाइट पर जनता के सुझाव प्राप्त करने के लिए इंतज़ाम किया है.

आरटीआई कार्यकर्ता इस बदलाव से काफ़ी नाराज़ हैं और सरकार पर आरटीआई क़ानून को कमज़ोर करने का भी आरोप लगा दिया है. आरटीआई कार्यकर्ता लोकेश बतरा ने पीटीआई को बयान दिया है कि सरकार की नीयत साफ़ है, उसने आम जनता के लिए सूचना का अधिकार पाना मुश्किल कर दिया है.

आरटीआई को लेकर नए मसौदे में यह भी कहा गया है कि आवेदनकर्ता की मृत्यु के बाद आरटीआई आवेदनकर्ता का मामला आयोग के सामने ख़त्म माना जाएगा. सरकार के प्रस्‍तावित बदलाव के मुताबिक, सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन (सीआईसी) को यह अधिकार दिया जाएगा कि वह किसी भी शिकायत को दूसरी अपील का दर्जा दे सकता है.

नए मसौदे के अनुसार, आयोग अपने विवेक से शिकायत में संशोधन को भी स्वीकार कर सकता है. जिनमें मौजूद उपचारों के समाप्त होने पर शिकायत को दूसरी अपील में बदलना शामिल है. नए नियम के अनुसार अब ऑनलाइन आवेदन करने का भी प्रावधान है.

आरटीआई के नए नियम के अनुसार, आवेदनकर्ता आरटीआई के जवाब के 135 दिनों के भीतर ही शिकायत दर्ज कर सकता है, साथ ही देरी होने पर माफ़ी मांगनी पड़ सकती है. नए नियम में आवेदनकर्ता अपना आवेदन वापस भी ले सकता है.

आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी और सूचना के लिए अब आवेदनकर्ता को प्रति कॉपी 2 रुपये चुकाने पड़ेंगे. वहीं, आर्थिक सर्वे और नेशनल सैम्पल्स सर्वे के आंकड़ों के लिए ज्यादा क़ीमत चुकानी पड़ेगी.