दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म में पढ़ाई करने आए विद्यार्थी प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?

दिल्ली विश्वविद्यालय में दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म के छात्र-छात्राओं का आरोप है कि मोटी फीस वसूलने के बाद भी प्रशासन उन्हें बेहतर शिक्षा और संसाधन उपलब्ध कराने में असफल रहा है.

/
(फोटो: सुमन शेखर)

दिल्ली विश्वविद्यालय में दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म के छात्र-छात्राओं का आरोप है कि मोटी फीस वसूलने के बाद भी प्रशासन उन्हें बेहतर शिक्षा और संसाधन उपलब्ध कराने में असफल रहा है.

Delhi School of Journalism
दिल्ली स्कूल आॅफ जर्नलिज़्म. (फोटो: सुमन शेखर)

दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले साल जुलाई में दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म (डीएसजे) विभाग का उद्घाटन किया गया था. इसके तहत पत्रकारिता में पांच वर्षीय एकीकृत कोर्स शुरू किया गया था.

इसमें तीन साल स्नातक स्तर का कोर्स है और दो साल का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम है. तीन साल का पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद छात्र-छात्राओं के पास ये विकल्प होता है कि वह आगे की दो साल की पढ़ाई जारी रखे या नहीं.

इस कोर्स को शुरू हुए अब एक साल पूरा हो चुका है लेकिन पिछले एक साल से लगातार छात्र-छात्राओं का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन बहुत अधिक फीस ले रहा है और उन्हें उसके अनुसार बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जा रही है.

बैचलर आॅफ जर्नलिज़्म (बीजे) के दूसरे साल के छात्र सुमन का कहना है, ‘दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म को शुरू हुए अब एक साल बीत गया है. हम लगातार यहां सुविधाओं की मांग कर रहे हैं. विभाग की समस्याओं को लेकर कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं. यहां हिंदी और अंग्रेजी माध्यम के कोर्स में साठ-साठ बच्चे हैं पर हैरानी की बात है कि दोनों विभागों में बस एक-एक स्थायी शिक्षक हैं.’

सुमन कहते हैं, ‘मैं खुल के कहूंगा एक शिक्षक ऐसे हैं जिनका पढ़ाया हममें से किसी को समझ नहीं आता. मीडिया लैब के लिए हमसे हर साल 4500 रुपये वसूले जाते हैं लेकिन मीडिया लैब और कम्प्यूटर लैब अब तक बना ही नहीं है. लाइब्रेरी की भी कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में हर साल 67 हज़ार रुपये की फीस किस बात के लिए ली जाती है.’

वे आगे कहते हैं, ‘कहने को तो दिल्ली विश्वविद्यालय इस विभाग की तुलना कोलम्बिया स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म से करता है पर यहां व्यवस्था के नाम पर कुछ भी नहीं किया जा रहा है.’

डीएसजे के छात्र-छात्राओं ने विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश त्यागी को पत्र लिखकर कॉलेज में बुनियादी सुविधाओं की समस्याओं के बारे में शिकायत की है. उन्होंने पत्र में लिखा है, ‘हमारे पास लाइब्रेरी की सुविधा तक नहीं है. उसकी जगह हमें ‘रीडिंग रूम’ दिया गया है जिसमें सिर्फ़ 10 लोग ही बैठ सकते हैं.’

पत्र के अनुसार, ‘पिछले सेमेस्टर में सिर्फ़ दो स्थायी शिक्षक उपलब्ध कराए गए थे बाकी सब गेस्ट फैकल्टी हैं. इस साल भी सेमेस्टर शुरू हो गया है और अब तक स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है.’

पत्र में कहा गया है, ‘लेआउट और डिज़ाइनिंग नाम का विषय हमारे पाठक्रम में है लेकिन अब तक मीडिया लैब और स्टूडियो तक की व्यवस्था नहीं है. साथ ही पिछले साल दिए गए लैपटॉप भी वापस ले लिए गए हैं.’

डीएसजे में बीजे दूसरे साल के छात्र रोहित शुक्ला ने बताया, ‘बीते दो अगस्त को हमारे साथ अन्य छात्र-छात्राओं ने सत्रारंभ कार्यक्रम के दौरान विरोध प्रदर्शन किया. विश्वविद्यालय प्रशासन यहां के मुद्दों को भटकाने की कोशिश कर रहा है. हमें एक बार फिर प्रशासन द्वारा मात्र आश्वासन दिया गया है. फिर हमने अपनी मांगों का चार्टर जमा किया.’

वे कहते हैं, ‘हम अभी भी उन पर विश्वास कर रहे हैं लेकिन अब हमारा उनके प्रति विश्वास तेज़ी से घट रहा है.’

यहां पढ़ने वाले अम्बुज भारद्वाज कहते हैं, ‘दूर-दूर से आने वाले गरीब घर के छात्र-छात्राओं के लिए यहां पढ़ना असंभव सा हो गया है. भारी फीस के मुद्दे पर दिलासा देने के लिए प्रशासन फीस में मामूली छूट देने का दिलासा दिया जाता है. यह हमारे साथ एक भद्दा मज़ाक है. यह सिर्फ़ मेरी नहीं, मेरे जैसे तमाम छात्र-छात्राओं की समस्या है.’

Delhi School of Journalism
बुनियादी सुविधाओं के लिए बीते दो अगस्त को दिल्ली स्कूल आॅफ जर्नलिज़्म के छात्र-छात्राओं ने प्रदर्शन किया. (फोटो: सुमन शेखर)

इस बारे में दिल्ली स्कूल आॅफ जर्नलिज़्म की विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) डॉ. एमएम योगी ने बताया, ‘छात्र-छात्राएं बिना चीज़ों को समझें आरोप लगा रहे हैं. अभी हमारा विभाग शुरू हुए मात्र एक साल ही हुआ है. चीज़ों को बनने में कुछ तो समय लगता है. बच्चे को भी बड़े होने में समय लगता हैं. काम चल रहा है और बहुत अच्छे से चल रहा है.’

एक अन्य छात्र अलीशान बताते हैं, ‘हम बुनियादी सुविधाओं को लेकर लगातार शिकायत कर रहे हैं. हमें अभी तक मीडिया लैब की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है. हमें डिज़ाइनिंग के चार सॉफ़्टवेयर पढ़ने हैं. हम ऐसी स्थिति में कैसे इस कोर्स को पूरा कर पाएंगे. कक्षाओं में वेंटिलेशन की भी समस्या है. पिछले साल सुविधाओं के अभाव में हमें कैंटीन में क्लास करनी पड़ी थी. डीएसजे तो कुलपति का ड्रीम प्रोजेक्ट था वे आख़िर इसे कब पूरा करेंगे. हमें हॉस्टल तक की सुविधा नहीं दी जाती.’

दूसरे साल में पढ़ने वाले छात्र मखनून कहते हैं, ‘हमसे वादा किया गया था कि दूसरे साल की शुरुआत से पहले मीडिया लैब बन जाएगी लेकिन यह वादा अभी तक पूरा नहीं किया गया था. हममें से कुछ को ज़बरदस्ती एबिलिटी एनहांसमेंट कंपल्सरी कोर्स (एईसीसी) के पेपर में हिंदी लेने को मजबूर किया गया था जिसके कारण मैं और मेरे दो दोस्त फेल हो गए थे. हमें क्षेत्रीय भाषा चुनने के लिए सिर्फ़ बंगाली और संस्कृत के विकल्प दिए गए थे. हममें से कइयों ने कहा कि वे उर्दू लेना चाहते हैं. लेकिन हमसे कहा गया मुस्लिम छात्रों को उर्दू नहीं दी जाएगी वरना वो टॉप कर लेंगे.’

भाषा के विषय पर छात्र-छात्राओं द्वारा लगाए गए आरोपों पर ओएसडी डॉ. योगी ने कहा, ‘नियमों के अनुसार हर बच्चे को एक विदेश और एक क्षेत्रीय भाषा चुननी होती है. पर हमारे नियमों में स्पष्ट है कि किसी भी छात्र को उसकी मातृभाषा नहीं दी जाएगी क्योंकि फिर वो बाकी बच्चों के मुकाबले फायदे में रहेगा.’

जब यह पूछा गया कि उर्दू किस आधार पर नहीं दी जाती तो वे कहती हैं, ‘नियमों के अनुसार हमने हर कक्षा में न्यूनतम संख्या बनानी होती है. पिछले साल बस सात-आठ बच्चों ने उर्दू मांगी थी. बाकी 60 बच्चों ने बंगाली चुनी थी और 32 ने संस्कृत. इसी कारण से हम नहीं दे पाए.’

छात्रों-छात्राओं का आरोप है कि पूरे दिल्ली विश्वविद्यालय में सबसे अधिक फीस लेने के बावजूद डीएसजे में बुनियादी सुविधाओं की कमी बनी हुई है और पर्याप्त शिक्षक भी नहीं हैं. साथ ही छात्र-छात्राओं ने लाइब्रेरी, किताबों और डिजिटल लैब की सुविधा न उपलब्ध कराने का आरोप लगाया है.

छात्र नील माधव का कहना है, ‘एक तो सुविधाएं नहीं दी जा रहीं हैं और दूसरा सवाल पूछने पर छात्र-छात्राओं को टारगेट किया जा रहा है. प्रशासन महत्वपूर्ण सवालों को लेकर चलाए जा रहे अभियान को बार-बार छात्र-छात्राओं के वैचारिक झुकाव, धर्म और अन्य कई अप्रासंगिक लाइनों पर लेबल करने की कोशिश कर रहा है. पिछले एक साल में शिकायतों के बावजूद यहां जो स्थिति हमने देखी है अब हमें झूठे वादों पर कोई भरोसा नहीं है. मुझे तो अब भी डर है कि प्रशासन इस बार के प्रदर्शन के बाद भी मुझे टारगेट करेगा.’

एक अन्य छात्र प्रकाश का कहना है, ‘डीएसजे कुलपति का ड्रीम प्रोजेक्ट है और वह अपने ही ड्रीम प्रोजेक्ट पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. हमसे इतनी अधिक फीस ली जाती है और स्कॉलरशिप की कोई सुविधा नहीं है.’

यहां दूसरे वर्ष की छात्रा शिवानी कहती हैं, ‘हमें हॉस्टल में ‘गेस्ट सुविधा’ दी गई है, जिसके कारण हमें हर साल लगभग 85 हज़ार रुपये अलग से देने पड़ते हैं. 67,000 रुपये फीस देने के बाद हॉस्टल के लिए अलग से इतनी अधिक फीस देना सभी के लिए मुश्किल है. कुलपति की तरफ से इस बार फिर आश्वासन ही मिला है. ये समस्या जब तक नहीं ठीक होती हम अपना विरोध-प्रदर्शन जारी रखेंगे.’

Delhi School of Journalism
दिल्ली स्कूल आॅफ जर्नलिज़्म. (फोटो साभार: सुमन शेखर)

छात्र-छात्राओं का आरोप है कि एडमिशन के बाद जो लैपटॉप उन्हें दिए गए थे वो वापस ले लिए गए हैं. इन लैपटॉप में उनके कोर्स के लिए ज़रूरी सॉफ़्टवेयर भी नहीं चलाए जा सकते थे.

विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर इस कोर्स की जानकारी देते हुए लिखा गया है, ‘दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म महत्वाकांक्षी पत्रकारों की पहचान और पोषण करने का संकल्प करता है इस कोर्स के ज़रिये छात्र-छात्राओं को सैद्धांतिक दृष्टिकोण, तकनीकी कौशल और सेवा के लिए पेशेवर नैतिकता प्रदान की जाएगी.’

वहीं छात्र-छात्राओं का कहना है इस कोर्स को शुरू करने से पहले जो वायदे किए गए थे उन्हें पूरा नहीं किया गया. इस कोर्स की फीस 67 हज़ार रुपये प्रति साल है जो दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी भी कोर्स से बहुत अधिक है. इसके अलावा एडमिशन लेते समय 10 हज़ार रुपये कॉशन मनी अलग से जमा करनी होती है.

छात्र-छात्राओं से पता चला है कि विभाग ने पिछले साल मिले फंड में से लगभग 46 लाख रुपये का उपयोग ही नहीं किया है. वे बताते हैं कि ख़राब बुनियादी सुविधाओं के कारण कक्षाओं को कुछ दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया है. बीते दो अगस्त को भी छात्र-छात्राओं ने नए बैच के सत्रारंभ कार्यक्रम के दौरान विरोध प्रदर्शन किया था.

छात्र-छात्राओं का कहना है कि प्रशासन बुनियादी सुविधाओं की कमी की बात पर हमेशा फंड न होने की बात कहता है. छात्र-छात्राओं ने डीएसजे के प्रशासन पर पिछले साल के बजट में से 46 लाख रुपये नहीं ख़र्च करने का आरोप भी लगाया है.

ओएसडी डॉ. एमएम योगी से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘हमने कभी नहीं कहा कि फंड की कमी है पर हम हर चीज़ सरकार और प्रशासन के नियमों के अनुसार जीईएम (गवर्नमेंट ई-मार्केटिंग) से ख़रीद सकते हैं. हर दिशा में कार्य चल रहा है.’

छात्र-छात्राओं ने दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर वेंकैया नायडु और वाइस चांसलर योगेश त्यागी को ज्ञापन भेज कर विभाग की ख़राब स्थिति के बारे में बताया है.

ज्ञापन के अनुसार, बस दो स्थायी शिक्षकों के भरोसे इस विभाग को चलाया जा रहा है. बाकी अतिथि शिक्षक हैं. कुल 120 बच्चों के लिए क्लास और कुर्सियों की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है.

छात्र सुमन बताते हैं कि हमारे प्रॉस्पेक्टस में हमसे हॉस्टल का वादा किया गया था लेकिन लड़कों तो कोई हॉस्टल मिला ही नहीं. लड़कियों को हॉस्टल गेस्ट के तौर पर दिया गया जिसके कारण उन्हें बहुत अधिक फीस देनी पड़ती है.’

छात्र-छात्राओं ने बताया कि विरोध प्रदर्शन के चलते कॉलेज बीते दिनों कुछ दिन के लिए बंद कर दिया गया था इस बारे में पूछने पर डॉ. एमएम योगी ने बताया, ‘ऐसा कुछ नहीं है कुछ तकनीकी कारणों से कॉलेज बंद किया गया है.’

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25