पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे 94 वर्षीय करुणानिधि ने चेन्नई के कावेरी अस्पताल में मंगलवार शाम ली आख़िरी सांस. लंबे समय से थे बीमार. मरीना बीच पर स्मारक बनाने को लेकर शुरू विवाद हाईकोर्ट पहुंचा.
चेन्नई: पिछले 11 दिन से अस्पताल में भर्ती तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और द्रमुक प्रमुख एम. करुणानिधि का मंगलवार शाम चेन्नई में निधन हो गया. वे 94 वर्ष के थे.
पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि बीती 28 जुलाई को रक्तचाप में गिरावट के बाद से चेन्नई के कावेरी अस्पताल में भर्ती थे. मंगलवार को अस्पताल द्वारा प्रेस रिलीज़ में बताया गया कि तमाम प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका. शाम 6:10 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली.
तमिलनाडु की राजनीति के करिश्माई व्यक्तित्व वाले नेता का राजनीतिक जीवन करीब सात दशक लंबा रहा. उनके परिवार में दो पत्नियां और छह बच्चे हैं. द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन उनके पुत्र और राज्यसभा सदस्य कनिमोई उनकी पुत्री हैं.
अस्पताल के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर अरविंदन सेल्वाराज की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, ‘हमें बड़े दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि हमारे प्रिय कलैंग्नर एम. करुणानिधि का सात अगस्त, 2018 को शाम छह बजकर दस मिनट पर निधन हो गया. डॉक्टरों और नर्सों की हमारी टीम के सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका.’
विज्ञप्ति के अनुसार, ‘हम भारत के कद्दावर नेताओं में से एक के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं और परिवार के सदस्यों तथा दुनिया भर में बसे तमिलवासियों का दुख साझा करते हैं.’
करुणानिधि को दफनाने की जगह को लेकर विवाद पैदा हुआ, मामला हाईकोर्ट पहुंचा
तमिलनाडु सरकार ने आज विपक्षी द्रमुक को उसके दिवंगत नेता पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि को दफनाने के लिए मरीना बीच पर जगह देने से इनकार कर दिया और उसे इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री सी. राजगोपालचारी और के. कामराज के स्मारकों के समीप जगह देने की पेशकश की. सरकार के इस कदम पर विवाद पैदा हो गया है.
द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन ने करुणानिधि के लंबे सार्वजनिक जीवन को याद करते हुए मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी को पत्र लिखा था और उनसे मरीना बीच पर दिवंगत नेता के मार्गदर्शक सीएन अन्नादुरई के समाधि परिसर में जगह देने की मांग की थी.
स्टालिन ने अपने पिता के निधन से महज कुछ ही घंटे पहले इस संबंध में मुख्यमंत्री से भेंट भी की थी.
सरकार ने एक बयान जारी कर कहा है कि वह मद्रास उच्च न्यायालय में लंबित कई मामलों और कानूनी जटिलताओं के कारण मरीना बीच पर जगह देने में असमर्थ है अतएव सरकार राजाजी और कामराज के स्मारकों के समीप सरदार पटेल रोड पर दो एकड़ जगह देने के लिए तैयार है.
कुछ खबरों में कहा गया है कि सरकार मरीना बीच पर करुणानिधि को दफनाने के लिए इसलिए जगह देने को अनिच्छुक है क्योंकि वह वर्तमान मुख्यमंत्री नहीं थे.
पूर्व मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन और उनकी बेहद करीबी जे. जयललिता मरीना बीच पर ही दफन किए गए थे और वहीं उनके स्मारक बनाए गए. ये दोनों राजनीति में करुणानिधि के कट्टर विरोधी थे.
करुणानिधि के पूर्ववर्ती अन्नादुरई का जब निधन हुआ था, तब वह मुख्यमंत्री थे.
द्रमुक कार्यकर्ताओं ने तत्काल ही प्रदर्शन किया और नारेबाजी की. उन्होंने मरीना बीच पर करुणानिधि को दफनाने के लिए जगह की मांग की.
इस बीच ख़बर मिली है कि मरीना बीच पर उनका स्मारक बनाने के लिए विवाद भी शुरू हो गया है. करुणानिधि के समर्थकों का कहना है कि सारे नेताओं के समाधि स्थल मद्रास के मरीना बीच पर बनाए गए हैं, इसलिए उनका भी स्मारक बनाना चाहिए.
ये मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंच चुका है. रात में ही इस मामले की सुनवाई होगी.
निधन की सूचना फैलते ही दुकानें बंद, सड़कें ख़ाली
वैसे तो सैकड़ों की संख्या में द्रमुक समर्थक और कलैनार के प्रशंसक अस्पताल परिसर में पहले से ही मौजूद थे, लेकिन मंगलवार शाम साढ़े चार बजे की बुलेटिन में हालत बिगड़ने की सूचना मिलने के बाद उनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ी.
अपने नेता के बिगड़ते स्वास्थ्य की ख़बर सुनकर प्रशंसकों और कार्यकर्ताओं के चेहरे की रंगत उड़ गयी. कुछ बेहोश हो गए तो कुछ अपनी छाती पीटने लगे.
अस्पताल की ओर से निधन की घोषणा के बाद वहां शमशान सा सन्नाटा पसर गया. भीड़ में से कुछ लोगों ने अपने मोबाइल फोन का टॉर्च जलाकर कलैनार को श्रद्धांजलि दी.
द्रमुक प्रमुख के निधन की सूचना फैलते ही दुकानें बंद हो गई और सड़के खाली हो गईं. अधिकारियों ने बताया कि ऐहतियात के तौर पर सबको सचेत कर दिया गया है और कानून-व्यवस्था संबंधी किसी भी परेशानी से निपटने के लिए पूरी तैयारी है.
इससे पहले कावेरी अस्पताल में शाम को एक बुलेटिन जारी कर कहा था, ‘पिछले कुछ घंटों में कलैनार एम. करुणानिधि की नाज़ुक हालत में काफी गिरावट आई है. अधिकतम चिकित्सीय मदद के बावजूद उनके महत्वपूर्ण अंगों की स्थिति बिगड़ती जा रही है.’
करुणानिधि यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन से ग्रसित थे और आयु संबंधी समस्याएं भी थीं. बीते 28 जुलाई को मूत्रनली में संक्रमण के बाद बुखार से पीड़ित करुणानिधि को रक्तचाप में कमी आने के बाद चेन्नई के गोपालपुरम स्थित आवास से कावेरी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. पहले वह वार्ड में भर्ती थे, बाद में हालत बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया था.
करुणानिधि के अस्पताल में भर्ती होने की ख़बर सुनकर पार्टी कार्यकर्ता अस्पताल के पास एकत्र हो गए थे. इतना ही नहीं पार्टी समर्थकों की भीड़ बीते 29 जुलाई को अनियंत्रित हो गई थी, जिसकी वजह से पुलिस को लाठीचार्ज भी करना पड़ा. इसके बावजूद समर्थक अस्पताल के बाहर डटे रहे थे.
मंगलवार दोपहर से अस्पताल के बाहर पुलिस बढ़ा दी गयी थी.
द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) के दिग्गज नेता 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे और अपने जीवनकाल में 13 बार विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने के बाद कभी नहीं हारे थे.
तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित अन्य नेताओं ने शोक जताया है.
कोविंद ने ट्वीट किया है, ‘एम. करुणानिधि के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ. ‘कलैनार’ के नाम से लोकप्रिय वह एक सुदृढ़ विरासत छोड़ कर जा रहे हैं जिसकी बराबरी सार्वजनिक जीवन में कम मिलती है. उनके परिवार के प्रति और लाखों चाहने वालों के प्रति मैं अपनी शोक संवेदना व्यक्त करता हूं.’
वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने शोक जताते हुए लिखा है कि करुणानिधि ना सिर्फ क्षेत्रीय आकांक्षाओं बल्कि राष्ट्र की प्रगति के लिए भी हमेशा खड़े रहे.
मोदी ने तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के निधन पर कई ट्वीट कर अपना शोक जताया. उन्होंने प्रत्येक ट्वीट के साथ करूणानिधि और अपनी तस्वीरें भी साझा की.
प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया है, ‘कलैनार करुणानिधि के निधन से बहुत शोकाकुल हूं. वह भारत के वरिष्ठतम नेताओं में से एक थे. कलैनार करुणानिधि क्षेत्रीय आकांक्षाओं सहित देश की प्रगति के लिए भी खड़े रहे. वह हमेशा तमिलों के कल्याण के प्रति समर्पित रहे और सुनिश्वित किया कि तमिलनाडु की आवाज प्रभावकारी तरीके से सुनी जाए.’
मोदी बुधवार को करुणानिधि को श्रद्धांजलि देने चेन्नई पहुंचेंगे.
तमिलनाडु में सात दिन का शोक घोषित
तमिलनाडु सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री और द्रमुक अध्यक्ष एम. करुणानिधि के निधन पर मंगलवार को सात दिन के शोक की घोषणा की.
मुख्य सचिव गिरिजा वैद्यनाथन ने बताया कि इस दौरान तिरंगा आधा झुका रहेगा और सारे सरकारी कार्यक्रम रद्द रहेंगे.
उन्होंने एक बयान में कहा कि दिग्गज द्रमुक नेता के निधन के बाद मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी ने यह आदेश जारी किया.
उन्होंने बताया कि सरकार ने करुणानिधि के अंतिम संस्कार को लेकर बुधवार के लिए छुट्टी घोषित की है. उनका पार्थिव शरीर अति विशिष्ट और आमजनों के अंतिम दर्शन के लिए राजाजी हॉल में रखा जाएगा.
मुख्य सचिव ने बताया कि करुणानिधि का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा और पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा जाएगा. पलानीस्वामी ने निर्देश दिया है कि राज्य गजट में शोक संदेश प्रकाशित किया जाए.
करुणानिधि: फिल्मों की कहानियां और संवाद लेखन से राजनीति तक का सफ़र
दक्षिण भारत की कम से कम 50 फिल्मों की कहानियां तथा संवाद लिखने वाले करुणानिधि की पहचान एक ऐसे राजनीतिज्ञ के तौर पर थी जिसने अपनी लेखनी से तमिलनाडु की तक़दीर लिखी.
तेज़ तर्रार, बेहद मुखर करुणानिधि ने जब द्रविड़ राज्य की कमान संभाली तो उन्होंने कई दशक तक रूपहले पर्दे पर अपने साथी रहे एमजी रामचंद्रन तथा जे. जयललिता को राजनीति में पछाड़ दिया.
उनके अंदर कला तथा राजनीति का यह मिश्रण शायद थलैवर (नेता) और कलैग्नार (कलाकार) जैसे उन संबोधनों से आया जिससे उनके प्रशंसक उन्हें पुकारते थे.
करुणानिधि का राजनीति प्रभाव केवल उनके राज्य तक ही सीमित नहीं था. उनकी ताकत की धमक राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में सत्ता के गलियारों तक थी और इसी के बल पर उन्होंने कभी कांग्रेस के साथ तो कभी भाजपा के साथ गठबंधन करके उसे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. हालांकि इसके लिए उन्हें कटु आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा. आलोचकों ने उन्हें मौकापरस्त तक कह दिया.
मुथुवेल करुणानिधि के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1938 में तिरुवरूर में हिंदी विरोधी प्रदर्शन के साथ शुरू हुई. तब वह केवल 14 साल के थे. इसके बाद सफलता के सोपान चढ़ते हुए उन्होंने पांच बार राज्य की बागडोर संभाली.
ईवी रामसामी ‘पेरियार’ तथा द्रमुक संस्थापक सीएन अन्नादुरई की समानाधिकारवादी विचारधारा से बेहद प्रभावित करुणानिधि द्रविड़ आंदोलन के सबसे भरोसेमंद चेहरा बन गए.
इस आंदोलन का मक़सद दबे कुचले वर्ग और महिलाओं को समान अधिकार दिलाना था, साथ ही यह आंदोलन ब्राह्मणवाद पर भी चोट करता था.
फरवरी 1969 में अन्नादुरई के निधन के बाद वीआर नेदुनचेझिएन को मात देकर करुणानिधि पहली बार मुख्यमंत्री बने. उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में एमजी रामचंद्रन ने अहम भूमिका निभाई थी.
वर्षों बाद हालांकि दोनों अलग हो गए और एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की.
करुणानिधि 1957 से छह दशक तक लगातार विधायक रहे. इस सफ़र की शुरुआत कुलीतलाई विधानसभा सीट पर जीत के साथ शुरू हुई तथा 2016 में तिरुवरूर सीट से जीतने तक जारी रही.
सत्ता संभालने के बाद ही करुणानिधि जुलाई 1969 में द्रमुक के अध्यक्ष बने और अंतिम सांस लेने तक वह इस पद पर बने रहे.
इसके बाद वह 1971, 1989, 1996 तथा 2006 में मुख्यमंत्री बने. उन्हें सबसे बड़ा राजनीतिक झटका उस वक़्त लगा जब 1972 में एमजीआर ने उनके ख़िलाफ़ विद्रोह करते हुए उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया तथा उनसे पार्टी फंड का लेखा जोखा मांगा.
इसके बाद उस साल एमजीआर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की और आज तक राज्य की राजनीति इन्हीं दो पार्टियों के इर्द-गिर्द ही घूम रही है.
एमजीआर की अगुवाई में अन्नाद्रमुक को राज्य विधानसभा चुनावों में 1977, 1980 और 1985 में जीत मिली. एमजीआर का निधन 1987 में हुआ और तब तक वह मुख्यमंत्री रहे.
इस दौरान करुणानिधि को धैर्य के साथ विपक्ष में बैठना पड़ा. इसके बाद 1989 में उन्होंने सत्ता में वापसी की.
राजनीति में न तो स्थाई दोस्त होते हैं और न ही दुश्मन, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए करुणानिधि ने कई बार कांग्रेस को समर्थन दिया. केंद्र की संप्रग सरकार में द्रमुक के अनेक मंत्री रह चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने भाजपा की अगुवाई वाले राजग को भी समर्थन दिया तथा अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट में भी उनके कई मंत्री थे.
उन्होंने अपनी पहली फिल्म राजकुमारी से लोकप्रियता हासिल की. उनके द्वारा लिखी गई पटकथाओं में राजकुमारी, अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलावरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम, मनोहरा आदि शामिल हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)