अनिवार्य हाज़िरी पर छात्रों से लिए गए हलफ़नामे पर अमल नहीं करे जेएनयू: अदालत

दिल्ली हाईकोर्ट ने जेएनयू प्रशासन से कहा कि जब अनिवार्य अटेंडेंस का मामला न्यायालय में विचाराधीन है तो फिर छात्रों से हलफ़नामा लेने की क्या ज़रूरत थी.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: शोम बसु)

दिल्ली हाईकोर्ट ने जेएनयू प्रशासन से कहा कि जब अनिवार्य अटेंडेंस का मामला न्यायालय में विचाराधीन है तो फिर छात्रों से हलफ़नामा लेने की क्या ज़रूरत थी.

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: शोम बसु)
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: शोम बसु)

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से कहा कि वह छात्रों से लिए गए उस हलफनामे पर अमल नहीं करे जिसमें छात्रों से कहलवाया गया था कि वे हाजिरी को लेकर यूनिवर्सिटी के नियमों का पालन करेंगे या नतीजे भुगतेंगे.

न्यायालय ने कहा कि जेएनयू प्रशासन इस हलफनामे पर तब तक अमल नहीं करे जब तक 75 फीसदी अनिवार्य हाजिरी के लंबित मुद्दे पर फैसला नहीं हो जाता.

जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल ने जेएनयू से कहा कि जब यह मुद्दा न्यायालय में विचाराधीन है तो फिर छात्रों से हलफनामा लेने की क्या जरूरत थी. उन्होंने कहा कि यदि छात्रों के लिए 75 फीसदी अनिवार्य हाजिरी के नियम को बरकरार रखा जाता है तो यह स्वत: ही लागू हो जाएगा.

जेएनयू के वकील ने न्यायालय को बताया कि वे छात्रों के खिलाफ कोई दमनात्मक कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.

हाई कोर्ट जेएनयू के कई छात्रों की ओर से दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आरोप लगाया गया है कि पाठ्यक्रम में पंजीकरण या पुन: पंजीकरण कराने के समय पर छात्रों से हलफनामा लेकर यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने जानबूझकर उच्च न्यायालय के 16 जुलाई के आदेश की अवज्ञा की है.

बीते 16 जुलाई को न्यायालय ने जेएनयू को निर्देश दिया था कि वह अनिवार्य हाजिरी संबंधी नीति से जुड़े किसी भी मामले को लेकर छात्रों के खिलाफ अगले आदेश तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करे.

कुछ महीने पहले जेएनयू प्रशासन द्वारा छात्र-छात्राओं की क्लास में उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया गया था. विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस संदर्भ में 22 दिसंबर को एक सर्कुलर जारी किया था.

इस सर्कुलर में कहा गया है कि अकादमिक काउंसिल ने एक दिसंबर को आयोजित अकादमिक काउंसिल की 144वीं बैठक में सभी पंजीकृत छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है. शीतकालीन सत्र 2018 से अनिवार्य उपस्थिति सभी विभागों मतलब बीए, एमए, एमफिल और पीएचडी के छात्र-छात्राओं के लिए ज़रूरी होगी.

हालांकि इसे लेकर सभी दलों के छात्र संगठनों ने भारी विरोध किया था. हालांकि ये मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है.

(समाचार एजेंसी भाषा की इनपुट के साथ)

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