‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार फिलहाल संभव नहीं: मुख्य चुनाव आयुक्त

मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए सभी राजनीतिक दलों में सहमति होना ज़रूरी है. वहीं, एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में भाजपा की दलील है कि देश हमेशा चुनावी मोड में नहीं रह सकता.

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मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत. (फोटो: पीटीआई)

मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए सभी राजनीतिक दलों में सहमति होना ज़रूरी है. वहीं, एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में भाजपा की दलील है कि देश हमेशा चुनावी मोड में नहीं रह सकता.

मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत. (फोटो: पीटीआई)
मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के मुद्दे पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि चुनाव एक साथ कराना फिलहाल संभव नहीं है. बीते दिनों मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान भी उन्होंने ऐसा कहा था. वहीं, मंगलवार को भी उन्होंने अपनी बात दोहराई है.

मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ओपी रावत ने कहा कि कानूनी ढांचे के बिना लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना संभव नहीं है क्योंकि विधानसभाओं के कार्यकाल में विस्तार या कटौती करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी.

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए भाजपा के ताजा प्रयास के एक दिन बाद सीईसी ने यह बात कही.

कानूनी ढांचे की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए उन्होंने लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव निकट भविष्य में एक साथ कराए जाने की संभावना से वस्तुत: इनकार किया.

इस सवाल पर कि क्या लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव निकट भविष्य में एक साथ कराए जा सकते हैं, रावत ने कहा, ‘यदि कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल में विस्तार या कटौती की आवश्यकता होगी तो इसके लिए एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी.’

वहीं, उन्होंने एक साथ चुनाव की स्थिति में आने वाली चुनौतियों पर बात करते हुए कहा कि वीवीपैट मशीनों की 100 प्रतिशत उपलब्ध्ता जैसे प्रबंध करने में कठिनाई होगी.

उन्होंने कहा कि ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के मुद्दे पर निर्वाचन आयोग ने 2015 में खुद ही इनपुट और सुझाव दिए थे. कहा था कि अतिरिक्त पुलिस बल, चुनाव कर्मियों की भी आवश्यकता होगी.’

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि जब भी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल खत्म होगा, निर्वाचन आयोग चुनाव कराने की अपनी जिम्मेदारी निभाना जारी रखेगा.

निर्वाचन आयोग 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नयी ईवीएम और वीवीपैट खरीदने की प्रक्रिया में है.

रावत ने पूर्व में कहा था कि सभी आवश्यक ईवीएम, 13.95 लाख मतदान यूनिट और 9.3 लाख नियंत्रण यूनिट, 30 सितंबर तक उपलब्ध हो जाएंगी. नवंबर खत्म होने से पहले 16.15 लाख वीवीपैट भी उपलब्ध हो जाएंगी. मशीनों के खराब होने और उस समय उनकी जगह दूसरी मशीन लगाने के मद्देनजर कुछ अतिरिक्त वीवीपैट भी खरीदी जा रही हैं.

उनके मुताबिक, यदि 2019 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो लगभग 24 लाख ईवीएम की जरूरत होगी. यह संख्या किसी संसदीय चुनाव के लिए आवश्यक ईवीएम की संख्या से दुगुनी है.

हालांकि, उन्‍होंने कहा कि 11 राज्यों में एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं. लेकिन इसके लिए सभी राजनीतिक दलों में सहमति होना जरूरी है.

भाजपा एक साथ चुनाव के पक्ष में, कहा- देश हमेशा चुनावी मोड में नहीं रह सकता

वहीं, कुछ वर्गों की ओर से इन संकेतों के बीच कि लोकसभा का चुनाव अगले वर्ष के शुरू में 10-11 विधानसभाओं के चुनाव के साथ कराने को लेकर प्रयास किए जा सकते हैं, भाजपा ने ‘खर्च पर अंकुश’ के लिए एक साथ चुनाव कराने पर सोमवार को जोर दिया. अगर ऐसा होता है तो साल के अंत में होने वाले भाजपा शासित तीन राज्यों के चुनावों को विलंबित किया जा सकता है और 2019 में बाद में होने वाले कुछ राज्यों के चुनाव पहले कराए जा सकते हैं.

हालांकि, भाजपा सूत्रों ने कहा कि राज्यों का चुनाव विलंबित करने या पहले कराने को लेकर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है और इस विचार पर पार्टी के भीतर औपचारिक रूप से चर्चा नहीं की गई है क्योंकि ऐसे कदमों की संवैधानिक वैधता को ध्यान में रखना होगा.

ऐसे में जब मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ विधानसभाओं का कार्यकाल अगले वर्ष जनवरी में समाप्त हो रहा है, पार्टी के नेताओं ने संकेत दिए कि भाजपा शासित इन राज्यों के लिए कुछ समय के लिए राज्यपाल शासन की संभावना तलाशी जा सकती है ताकि वहां विधानसभा चुनाव अगले वर्ष के शुरू में लोकसभा चुनाव के साथ हों.

उन्होंने यद्यपि स्पष्ट किया कि अभी कोई ठोस प्रस्ताव तैयार नहीं किया गया है. कांग्रेस शासित मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल भी इस वर्ष दिसंबर में समाप्त हो रहा है.

पूर्व लोकसभा महासचिव एवं संवैधानिक विशेषज्ञ पीडीटी अचार्य ने यद्यपि उन राज्यों में राज्यपाल शासन लगाने की विधिक वैधता पर सवाल उठाया जहां विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से पहले होने हैं.

एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुला सकती है सरकार

वहीं, लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर आम सहमति बनाने के लिए सरकार इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने पर भी विचार कर रही है. यह बैठक विधि आयोग द्वारा इस मामले में कानूनी ढांचे की सिफारिश के बाद आयोजित की जा सकती है.

सरकारी सूत्रों ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर नेताओं के बीच चर्चा का दायरा बढ़ाने के लिए आगामी दिनों में सर्वदलीय बैठक बुलाई जा सकती है.

लेकिन, बैठक बुलाने को लेकर अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है.

सूत्रों ने कहा कि सरकार विधि आयोग की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है जो दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए कानूनी ढांचा पेश करेगी. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट सरकार के पास आने के बाद उस पर चर्चा के विस्तृत बिंदु होंगे.

चुनाव एक साथ कराने की व्यावहारिकता की जांच कर रहे आयोग ने इससे पहले अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले राजनीतिक दलों से नजरिया पूछा था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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